नई दिल्ली। पूर्व मानव संसाधन मंत्री व सांसद प्रो. मुरली मनोहर जोशी ने आज कहा कि आधुनिक भौतिकी से लेकर स्टेम सेल के जीव वैज्ञानिक सिद्धांतों तक आधुनिक विज्ञान की खोजें मूल रूप से भारतीय वांग्मय में सदियों पहले स्थापित की जा चुकी हैं.
राजधानी के हरियाणा भवन स्थित सभागार में भारतीय-ज्ञान विज्ञान की वैश्विक परंपरा विषय पर केन्द्रित दो दिवसीय सम्मलेन के उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप मे बोलते हुए श्री जोशी ने कहा कि ज्ञान-विज्ञान को लेकर भारतीय अवधारणा हमेशा से जोड़ने वाली रही है जबकि वेस्ट चीजों को तोड़कर समझना चाहता है। उन्होने कहा कि “यत्पिंडे तत्ब्रह्मांडे” की अव्धारणा स्टेम सेल जैसी खोजो का दार्शनिक रूप है जबकि स्यादवाद व अनेकांतवाद जैसे दर्शन आधुनिक भौतिकी के आधार के रूप मे देखे जा सकते है.
भारतीय विज्ञान की प्राचीन परंपरा को रेखांकित करते हुए श्री जोशी ने कहा कि ब्रह्मांड को समझने के लिए खुद में ब्रह्म में समझ ना होगा। भारतीय अवधारणा को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि हमारी प्रकृति संस्टनेबल कंजंप्शन की रही है। इस मौके पर वे समय की उलझी गुत्थियों पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि काल ही ब्रह्म हैं। समय बदलाव का द्योतक है। इसके पूर्व अरूणाचल विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. कमलकांत द्विवेदी ने भारतीय ज्ञान परंपरा की गहराइयों को अपने प्रेजेंटेशन के माध्यम से प्रस्तुत किया भारतीय ज्ञान परंपरा में ब्रह्मा के जीवन-काल-गणना को जिस रूप में स्थापित किया गया है उसे संस्थापना से वर्तमान समय की अवधारणा की तुलना करते हुए कहा कि हमारे मनीषियों ने प्राचीन समय में जिन बातों को पुष्ट कर दिया है आज के विज्ञान का निष्कर्ष भी उसी दिशा में जा रहा है।
इस मौके पर अपनी बात रखते हुए हिन्दू परिषद् के संयुक्त महासचिव स्वामी विज्ञानानंद ने भारत की आर्थिक वैभवता व उसके वैज्ञानिक पक्ष को रेखांकित करते हुए कहा कि एक समय था जब वैश्विक जीडीपी में भारत की हिस्सेदारी 33 फीसद थी, इसका मतलब यह हुआ कि उन दिनों भारत आज की तुलना में ज्यादा समृद्ध था।और यह समृद्धि वैज्ञानिक संपन्नता के बिना संभव नहीं है।
इस मौके पर इंडियन मेटरोलोजिकल डिपार्टमेंट के डीजी डॉ. एल.एस राठोर ने भी भारतीय समझ की व्यापकता को रेखांकित किया।
इसके पूर्व कार्यक्रम की शुरूआत दीप प्रज्जवलन के साथ हुआ। स्वागत संबोधन दूरदर्शन के एडीजी मनोज पटेरिया ने कहा कि आज समय की जरूरत है कि हम अपनी ज्ञान-परंपरा व वैज्ञानिक दृष्टि को वैश्विक स्तर पर पुनर्स्थापित करें। इस दृष्टि से दो दिनों तक चलने वाले इस सेमिनार की बहुत महत्ता है। इस सत्र में धन्यवाद ज्ञापन मीडिया एक्टिविस्ट अनिल सौमित्र ने किया।
गौरतलब है कि इस सेमिनार का आयोजन इंडियन साइंस राइटर्स एसोसिएशन (इसवा), इंटरनेशनल सेंटर फॉर साइंस कम्यूनिकेशन (आईसीएससी),इंडियन साइंस कम्यूनिकेशन सोसायटी (आईएससीओएस) एवं स्पंदन के संयुक्त तत्वाधान में यह आयोजन किया जा रहा है। दो दिवसीय इस आयोजन में देश-विदेश के जाने-माने साइंटिस्ट व विविध क्षेत्र के विद्वान आए हुए हैं।
संपर्क
अनिल सौमित्र, सह संयोजक, आयोजन समिति
नई दिल्ली
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9868114548
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Ashutosh Kumar Singh
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