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भोपाल। हस्तकला में सभी वर्ग के लोग शामिल हैं। जिनकी बनाई हुई वस्तुएं देश—विदेश में पसंद की जाती हैं। लेकिन किसी भी हस्तकला ‘हैंडीक्राफ्ट’ को किसी धर्म या जाति से जोड़ना घातक है क्योंकि धर्म या जाति से जुड़ने पर हस्तकला का उत्थान न होकर पतन ही होगा। समाज में हमें महिलाओं के प्रति उदार होने की जरूरत है। आज हम ये चाहते हैं हमारे घर की महिलाएं बाहर निकले और खुद को निर्भर बनाएं लेकिन जब हमे कोई इस बात के लिए समाज में टोक देता है तो पुरूषों के अहम को चोट चहुंच जाती है। पुरूषों को अपने घर की महिलाओं के प्रति रवैया को बदलना होगा, यह बात बुधवार को बरकतउल्ला विश्वविद्याले के महिला अध्ययन विभाग द्वारा अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित दो दिवसीय संगोष्टी में डॉ. आर के श्रीवास्तव ने कहीं।
मुख्य वक्ता कुसुम त्रिपाठी ने कहा चोदहवी शताब्दी में यूरोपियन देशों में महिलाओं द्वारा किए जा रहे उत्कष्ट हस्तकला संबंधी कार्यों पर पुरूषों ने कब्जा जमा लिया। इसी प्रकार भारतीय समाज में भी पुरूष उत्पादक रहे हैं और महिलाएं प्रजनक ‘पुनर्रूत्पादक’ रही हैं। मानव समाज में हस्तकला के विभिन्न शिल्पों को महिलाओं ने ही खोजा है। कालांतर में पितसत्ता का कब्जा हो गया है।
इस सत्र में पंद्रह शोध पत्र पढ़े गए तथा पोस्टर प्रतियोगिता में विजेताओं को पुरस्कार प्रदत्त किए गए। इस सत्र का संचालन प्रो. आशा शुक्ला और आभार प्रदर्शन डॉ.फूकन ने किया।
भारत में हस्तशिल्प पर प्रदर्शनी—जरी जरदोजी, बाघ प्रिंट, मधुबनी, भोपाली बटुआ, वर्ली, हस्तशिल्प की साड़ियों की प्रदर्शनी सलवार सूट और चिकन कारीगिरी तथा अस्सी वर्षीये शशीप्रभा श्रीवास्तव की फूल और पत्तियों से बनी चित्र प्रदर्शनी भी लगाई गई। जिसका उद्धघाटन पूर्व डीजीपी अरूण गुर्टू, पूर्व जिला जज श्रीमति रेनू शर्मा एवं कुलपति प्रो. एम डी तिवारी द्वारा किया गया।
पोस्टर प्रतियोगिता के निर्णयक मंडल में डाॅ. सुरेन्द्र षुक्ला एडवोकेट गोपाल कृष्ण छिब्बर, डाॅ. राजेश्वरी राना, डाॅ. विनिता भटनागर, डाॅ. भारती षुक्ला, श्री बसंत निर्गुणे थे।