मुंबई। रेल पटरियों पर अवशिष्ट पदार्थों अर्थात मानव मल-मूत्र के निकासी को पूर्ण रूप से रोकने के लिए भारतीय रेलवे द्वारा सभी ट्रेनों में बायो टॉयलेट उपलब्ध कराये जाने की योजना है। इसके अंतर्गत पश्चिम रेलवे द्वारा 468 कोचों में बायो टॉयलेट लगाये जा चुके हैं तथा भविष्य में चरणबद्ध रूप से इन्हें अन्य कोचों में लगाया जायेगा।
बायो टॉयलेट सिस्टम में मानवजनित अवशिष्ट पदार्थ को विशेष बैक्टीरिया द्वारा नष्ट किया जा कर पानी, मिथेन तथा कार्बन डाईऑक्साइड में बदल दिया जाता है। अतः परम्परागत शौचालयों की तुलना में जो अवशिष्ट पदार्थों को रेलवे ट्रैक पर डिस्चार्ज करते हैं, बायो टॉयलेट सिस्टम में अवशिष्ट पदार्थों को कोच के नीचे लगे टैंक में उपचारित किया जाता है, जिससे वे पानी तथा हानिरहित गैसों में तब्दील हो जाते हैं। इससे बायो टॉयलेट टैंक में जो पानी बचता है, वह हानिकारक जीवाणुओं से रहित होता है।
बायो टॉयलेट न केवल पर्यावरण मित्रवत है, अपितु यह रेलवे ट्रैक को जंक तथा क्षरण से बचाता है। साथ ही यह रेलवे स्टेशन के वातावरण को समग्र रूप से बेहतर बनाता है। किन्तु कभी-कभी बायो टॉयलेट प्लास्टिक की बोतलों, चाय के कप, कपड़े के टुकड़ों, पॉलिथीन/प्लास्टिक की थैलियों, गुटखे के पाउचों, बच्चों की नैपी आदि के पें€के जाने के कारण जाम हो जाते हैं, जिससे यह अकार्यशील हो जाते हैं।
बायो टॉयलेट की सफलता के लिए यात्रियों की भूमिका अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। यह आवश्यकत है कि बायो टॉयलेट को कचरे की डिब्बे की तरह प्रयोग नहीं किया जाये तथा इसमें प्लास्टिक, पॉलिथीन, कागज, कपड़ा इत्यादि कोई भी वस्तु न डाली जाये। इनके लिए अलग से डस्टबिन उपलब्ध कराये गये हैं। साथ ही, जब ट्रेन स्टेशन पर खड़ी हो, तो शौचलयों का प्रयोग नहीं करें।
भारतीय रेलवे परम्परागत ट्रेन शौचालयों को हरित शौचालयों अर्थात बायो टॉयलेट से बदलने के दीर्घकालीन लक्ष्य को प्राप्त करने की ओर अग्रसर है।