<p><strong>Right to Reject</strong></p>
<p>देश की सर्वच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसला देकर भारतीय लोकतंत्र में नए प्राण फूंक दिए हैं।</p>
<p>पीपुल्स यूनियन फ़ॉर सिविल लिबर्टी (पीयूसीएल) की याचिका पर सुनवाई करते फैसला दिया कि राईट टू रिजेक्ट एक आम मतदाता का संवैधानिक अधिकार है। पीयूसीएल ने यह याचिका 2004 में दायर की थी।<br />
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फ़ैसला सुनाते हुए उन्होंने कहा कि एक जीवंत लोकतंत्र में मतदाताओं को 'इनमें से कोई नहीं' का विकल्प चुनने का अधिकार जरूर दिया जाना चाहिए। इस फ़ैसले का लाभ इस साल दिसंबर में दिल्ली, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मिजोरम में होने वाले विधानसभा चुनाव में मतदाताओं को मिलेगा। चुनाव में अब तक उम्मीदवारों को नकारने वाले वोटों को गिनने की कोई व्यवस्था नहीं है। इससे इसका चुनाव परिणाम पर असर भी नहीं पड़ता। सामाजिक कार्यकर्ताओं की मांग थी कि अगर किसी निर्वाचन क्षेत्र में हुए मतदान में पचास फ़ीसद से अधिक मतदाता 'राइट टू रिजेक्ट' का इस्तेमाल करते हैं तो, वहाँ दुबारा मतदान कराया जाना चाहिए।<br />
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मुख्तार अब्बास नकवी नकवी का कहना है कि चुनाव सुधार समय की जरूरत है। पीयूसीएल ने अपनी याचिका में मतदाताओं को सभी उम्मीदवारों को खारिज करने का अधिकार देने की मांग की थी। चुनाव आयोग भी इस मांग का समर्थन किया था। लेकिन क्लिक करें केंद्र सरकार इसके पक्ष में नहीं थी। उसका कहना था कि चुनाव का मतलब चुनाव करना होता है, खारिज करना नहीं।<br />
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सभी उम्मीदवारों को नकारने की वर्तमान व्यवस्था में मतदाता मतदान केंद्र पर जाकर पीठासीन अधिकारी से 49 ओ नाम के एक फ़ार्म की मांग करता है और उसे भर कर वापस कर देता है। लेकिन इस तरह के फार्म की गणना नहीं होती है। इस फ़ैसले के बाद भाजपा नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने एक टीवी चैनल से कहा कि चुनाव सुधार समय की जरूरत है। इसलिए सरकार की ओर इसकी ओर तत्काल ध्यान देना चाहिए।<br />
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'राइट टू रिजेक्ट' और ' राइट टू रिकॉल' यानी कि जनप्रतिनिधियों को वापस बुलाने की मांग को लेकर अभियान चलाने वाले और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले का स्वागत किया। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि इससे लोगों को बहुत अधिक उम्मीद नहीं करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि यह सही मायने में तभी सार्थक होगा जब इसके आधार पर चुनाव परिणाम तय हो।सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिए अहम फैसले में मतदाता को राइट टू रिजेक्ट का अधिकार देने पर अपनी मुहर लगा दी। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने इसके तहत चुनाव आयोग को वोटिंग मशीन में इसकी व्यवस्था करने के निर्देश दिए हैं।<br />
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इस फैसले के तहत अगर चुनाव में मतदाता को कोई भी उम्मीदवार पसंद नहीं आता तो उसे वोटिंग मशीन (ईवीएम) में 'नन ऑफ द एबव' यानी 'उपरोक्त में कोई नहीं' के विकल्प पर मुहर लगा सकता है। मुख्य न्यायाधीश पी। सतशिवम की अध्यक्षता वाली पीठ गैर सरकारी संगठन पीयूसीएल की ओर से दाखिल लोकहित याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा कि यदि एक व्यक्ति को संविधान वोट डालने का अधिकार और उसको खारिज करने का अधिकार भी उसकी अभिव्यक्ति को दर्शाता है।<br />
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यह याचिका पिछले नौ सालों से सुप्रीम कोर्ट में लंबित थी और गत 29 अगस्त को कोर्ट ने सभी पक्षों की बहस सुनकर फैसला सुरक्षित रख लिया था। उम्मीदवार को नकारने के हक पर आए इस फैसले के बेहद दूरगामी परिणाम होंगे। याचिका में मांग की गई है कि वोटिंग मशीन ईवीएम में एक बटन उपलब्ध कराया जाए जिसमें कि मतदाता के पास 'उपरोक्त में कोई नहीं' पर मुहर लगाने का अधिकार हो। अगर मतदाता को चुनाव में खड़े उम्मीदवारों में कोई भी पसंद नहीं आता तो उसके पास उन्हें नकारने और उपरोक्त में कोई नहीं चुनने का अधिकार होना चाहिए।<br />
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चुनाव आयोग ने याचिका का समर्थन किया था जबकि सरकार ने विरोध किया था। अभी मौजूदा व्यवस्था में ऐसी कोई बटन ईवीएम में नहीं है। अगर किसी मतदाता को चुनाव में खड़ा कोई भी उम्मीवार पसंद नहीं आता है और वह बिना वोट डाले वापस जाना चाहता है तो उसे यह बात निर्वाचन अधिकारी के पास रखे रजिस्टर में दर्ज करानी पड़ती है।<br />
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याचिकाकर्ता का कहना था कि रजिस्टर में दर्ज करने से बात गोपनीय नहीं रहती। मतदान को गोपनीय रखने का नियम है। ईवीएम में बटन उपलब्ध कराने से मतदाता द्वारा अभिव्यक्त की गई राय गोपनीय रहेगी।<br />
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गौरतलब है कि मतदाताओं को राइट टू रिजेक्ट दिए जाने की मांग अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल करते रहे हैं। दो साल पहले अन्ना ने अनशन के दौरान भी यह मांग तेजी से रखी थी। उनका कहना था कि राइट टू रिकॉल और राइट टू रिजेक्ट जैसे अधिकारों से जनप्रतिनिधियों को सीधे तौर पर नियंत्रित किया जा सकता है।<br />
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गुजरात के मुख्यमंत्री और भाजपा की ओर से पीएम पद के उम्मीनदवार नरेंद्र मोदी भी राइट टू रिजेक्ट का समर्थन कर चुके हैं। उन्होंने हाल ही में गांधीनगर में यंग इंडिया कॉनक्लेव में कहा था कि मतदाताओं को नेताओं को खारिज करने के लिए राइट टू रिजेक्ट का अधिकार मिलना चाहिए। उन्होंने साफ कहा कि इस अधिकार के मिलने के बाद गंदी हो चुकी राजनीति में सुधार संभव है।<br />
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केंद्र सरकार भी इस प्रावधान के पक्ष में दिखती है। कानून मंत्री के तौर पर कुछ साल पहले सलमान खुर्शीद ने चुनाव सुधार के लिहाज से राइट टू रिजेक्ट दिए जाने को सही कदम बताया था। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा था कि यह व्यवस्था पूरी तरह समस्या का समाधान नहीं कर सकती।<br />
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चुनाव आयोग भी देश की चुनाव प्रणाली से अपराधी प्रवृत्ति वाले उम्मीदवारों को दूर करने के लिए राइट टू रिजेक्ट के पक्ष में है। निर्वाचन आयुक्त एच।एस। ब्रह्मा ने हाल ही में कहा था, चुनाव आयोग राइट टू रिजेक्ट पहल का स्वागत करता है लेकिन राइट टू रिकॉल का नहीं, क्योंकि यह राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने के साथ ही विकास की गतिविधियों को प्रभावित करेगा। उन्होंने कहा कि आयोग ने दिसम्बर 2001 में सरकार से इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) में इनमें से कोई नहीं विकल्प शामिल करने का प्रस्ताव दिया था ताकि मतदाता इसका इस्तेमाल कर सकें।</p>
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