इंडियन ओलम्पिक संघ (आईओए)द्वारा पिछले दिनों अभिनेता सलमान खान को ब्राज़ील के रियो डि जेनेरो राज्य में इस साल अगस्त में होने वाले रियो ओलंपिक गेम्स का गुडविल एंबैसडर बनाये जाने की बात को लेकर खेल-जगत की कई नामी-गिरामी हस्तियों ने अपना विरोध जताया है.विरोध प्रकट करने वाले व्यक्तियों का तर्क है कि रियो में होने वाली अंतर्राष्ट्रीय स्तर की खेल प्रतियोगिताओं के लिए हमारे देश से ‘सद्भावना राजदूत’ के रूप में यदि किसी ऐसे ख्यातिवान खिलाड़ी का मनोनयन किया जाता जिसने इस देश के लिए खेलकी दुनिया में नाम कमाया है,तो अच्छा रहता. मुझे लगता है कि विरोध करने वाले अपनी जगह पर सही हैं.सलमान फ़िल्मी दुनिया के आदमी हैं,खेल की दुनिया के नहीं.यह तो वैसी ही बात हो गयी कि किसी देश में होने वाली मुक्केबाजी की अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में हम वहां पर अपने यहाँ के किसी नामचीन संगीतकार को अपना पर्यवेक्षक अथवा ‘गुडविल एंबैसडर’ बनाकर भेजें और संगीत की किसी अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में अपने यहाँ के किसी आला-दर्जे के मुक्केबाज़ को ‘सद्भावना दूत’ बनाकर भेजें.
एक उदाहरण और देना चाहूँगा.गणित की पुस्तक का अनुवाद यदि किसी संगीतज्ञ से कराया जाय और संगीतशास्त्र की पुस्तक का एक गणितज्ञ से,तो अनुवाद कैसा होगा,इसका बखूबी अंदाज़ लगाया जा सकता है.कहने का तात्पर्य यह है कि जो जिस क्षेत्र का अधिकारी विद्वान या ज्ञाता है,उसे वही काम दिया जाना चाहिए और वैसा ही काम उस पर सुहाता भी है.सलमान को ऐसी महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी सौंपने से पूर्व इंडियन ओलम्पिक संघ को दस बार सोचना चाहिए था.
शिबन कृष्ण रैणा
अलवर/दुबई