जब भी कभी आप किसी वित्तीय योजनाकार से सलाह लेंगे तो वे आपको बताएंगे कि हर किसी के निवेश पोर्टफोलियो में एक स्वास्थ्य बीमा योजना का होना अनिवार्य है। बाजार में इस समय 23 स्वास्थ्य बीमा कंपनियां और इनमें से किसी एक कंपनी की स्वास्थ्य बीमा योजना को चुनना इतना आसान काम नहीं है। अगर ग्राहक 6 से 8 बीमा कंपनियों की ओर से उपलब्ध कराई जा रही बीमा योजनाओं की तुलना भी कर ले तो वह उधेड़बुन में फंस जाएगा।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि जब भी कभी आप अपने लिए बीमा योजना खरीदने जाते हैं तो बीमा योजनाओं की लागत पर सबसे अधिक ध्यान देते हैं। पर बीमा योजनाओं को चुनते वक्त कुछ और बातों का ध्यान रखना भी जरूरी है।
पॉलिसी रिन्युअल की आखिरी सीमा: बीमा खरीदते वक्त ग्राहक शायद ही इस ओर ध्यान देते हैं कि किस उम्र तक पॉलिसी को रिन्यू कराया जा सकता है। दरअसल बीमा कंपनियां एक उम्र के बाद अपने पुराने ग्राहकों को भी पॉलिसी रिन्यू कराने की छूट नहीं देती हैं। उदाहरण के लिए आईसीआईसीआई लोंबार्ड अपने ग्राहकों को 70 साल की उम्र तक स्वास्थ्य बीमा योजनाएं रिन्यू कराने की छूट देती हैं। साफ है कि बीमा कंपनी जितनी अधिक उम्र तक बीमा योजना को रिन्यू कराने की छूट देंगी ग्राहकों के लिए उतना बेहतर होगा।
सह-भुगतान का विकल्प: आमतौर पर उम्र के साथ-साथ स्वास्थ्य से जुड़े जोखिम भी बढ़ते जाते हैं। ऐसे समय में ज्यादतार बीमा कंपनियां ग्राहकों को दी जाने वाली सुविधाओं में कटौती करने लगती हैं। उन्हें अधिक प्रीमियम तो भरना ही पड़ता है, साथ ही ग्राहकों को सह-भुगतान भी करना पड़ता है। कंपनियां अपने-अपने हिसाब से यह तय करती हैं कि कब वे किसी पॉलिसी के लिए सह-भुगतान का विकल्प देंगी।
उदाहरण के लिए स्टार हेल्थ इंश्योरेंस रिन्यूवल उम्र की सीमा के नजदीक पहुंचते ही सह-भुगतान का विकल्प ग्राहकों को देने लगती है। ग्राहक चाहें तो अपनी स्वास्थ्य बीमा योजना को सह-बीमा योजना में बदलकर बीमा कवरेज की अवधि बढ़वा सकती हैं। बजाज आलियांज जनरल इंश्योरेंस उस स्थिति में अपने ग्राहकों को सह-भुगतान के लिए कहता है अगर उसका इलाज ऐसे किसी अस्पताल में किया जा रहा हो जो बीमा कंपनी के नेटवर्क से बाहर हो।
बीमारियां शामिल नहीं: दरअसल हर बीमा योजना के साथ एक सूची जुड़ी होती है जिसके जरिए यह बताया जाता है कि किन-किन बीमारियों का इलाज उस योजना में शामिल नहीं है। उदाहरण के लिए अस्पातल के कैश प्लान में दंत चिकित्सा या फिर सर्जरी और गर्भाधान से जुड़ी बीमारियों और प्रसव को शामिल नहीं किया जाता है।
फ्यूचर जेनराली जनरल इंश्योरेंस के एमडी और सीईओ के जी कृष्णमूर्ति राव बताते हैं, ‘बीमा योजनाओं को इस आधार पर परखें कि इनमें किन बीमारियों के इलाज को शामिल किया गया है और किनको शामिल नहीं किया गया है। पॉलिसी के दस्तावेजों में इसका जिक्र किया गया होता है। और अगर किसी पॉलिसी विशेष में किसी खास बीमारी को शामिल नहीं किया गया है तो आप दूसरी योजनाओं को चुन सकते हैं या फिर साथ में कोई राइडर ले सकते हैं।
स्वास्थ्य बीमा योजनाओं की खरीदारी से पहले इस बात का भी खास ध्यान रखें कि योजना में पहले से मौजूद बीमारियों को शामिल किया गया है या नहीं। आजकल ज्यादातर बीमा कंपनियां कुछ शर्तों के साथ उन बीमारियों को भी कवर कर रही हैं जो पॉलिसी खरीदने से पहले से ग्राहक को हैं।
कई बार मुश्किल तो तब पैदा हो जाती है जब पॉलिसी के पहले 4 साल के दौरान पहले से मौजूद बीमारियों को कवर न किया गया हो। वरिष्ठï नागरिकों की स्वास्थ्य बीमा योजनाओं में कई सारी बीमारियों को शामिल नहीं किया जाता है और अक्सर इनके साथ राइडर खरीदना पड़ता है।
भुगतान की सीमा: कृष्णमूर्ति यह सलाह देते हैं कि स्वास्थ्य बीमा योजना खरीदने से पहले भुगतान की सीमा पर नजर डाल लें। स्वास्थ्य बीमा कंपनियां इलाज के दौरान केवल उतनी ही रकम का भुगतान करती हैं जिनका खर्च उन्हें सही लगता है। जब भी बीमा कंपनियों को लगता है कि अस्पताल इलाज के लिए बढ़ा-चढ़ाकर शुल्क वसूल रहे हैं तो वह पूरा भुगतान नहीं करती हैं। आमतौर पर पॉलिसी में कमरे के किराये, ऑपरेशन थिएटर, ऐंबुलेंस के शुल्क और दूसरें शुल्कों के लिए एक ऊपरी सीमा तय की जाती है। उदाहरण के लिए बजाज आलियांज हेल्थ गार्ड ऐंबुलेंस शुल्क के लिए केवल 1,000 रुपये तक का भुगतान करती है।
कमरे के किराये के अनुसार ही बाकी के खर्चों के लिए भी एक अधिकतम भुगतान सीमा तय की जाती है। दरअसल इसकी वजह यह है कि आप अस्पताल में जितना महंगा किराया चुनेंगे आपसे अस्पताल दूसरे खर्चों के लिए भी उसी हिसाब से शुल्क वसूलेगा। मगर बीमा कंपनियां अपनी इस तरह की नीति को खत्म करने की कोशिशों में जुटी हैं। उदाहरण के लिए आईसीआईसीआई लोंबार्ड फैमिली प्रोटेक्ट प्राइमर में कमरे के किराये के लिए कोई सीमा तय नहीं की गई है।
साभार- http://hindi.business-standard.com/से