Sunday, November 24, 2024
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पाकिस्तान,बांग्लादेश, अफगानिस्तान के हिन्दुओँ के अच्छे दिन लाएगी मोदी सरकार

अच्छी खबर है। कल गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने बैठक की और धर्म के कारण लुटे-पिटे हिंदुओं की नागरिकता के लिए नागरिकता एक्ट 1955 को बदलने पर विचार हुआ। मुमकिन है संसद के मानसून सत्र में मंजूरी के लिए इस कानून का संशोधन बिल पेश हो। कैबिनेट नोट बन गया है। इसी महीने यह मंजूर होना चाहिए। एक्ट बदले जाने से पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान आदि देशों से हिंदू होने के कारण लुटे–पिटे-भागे लोगों को भारत में नागरिकता मिल सकेगी।

यह अभिनंदनीय काम होगा। इसके लिए न केवल मोदी सरकार का हौसला बढ़ाना चाहिए बल्कि यदि कोई इसका विरोध करे तो उसके खिलाफ मुहिम चलनी चाहिए। भारत धर्मनिरपेक्ष भले हो मगर हिंदुओं का यह घर है। इस मिट्टी का, इस जमीन का आदि धर्म हिंदू है। इस धर्म से जो भी है उसका भारत वैसे ही नैसर्गिक घर है जैसे यहूदियों का इजराइल है! ‘भारतीय मूल के नागरिकों’ याकि पीआईओ से ज्यादा गहरा और भारत की जड़ों से ज्यादा जुड़ा मसला ‘भारतीय मूल के हिंदू नागरिकों’ का याकि पीएचआईओ का है। अपना मानना है कि धर्म के आधार पर हिंदू के साथ कहीं कोई भेदभाव, उत्पीड़न होता हो तो उसे भारत को अपना घर मानते हुए भारत आने का हक है। उसे भारत का पासपोर्ट मिला हुआ होना चाहिए। इसकी पक्की व्यवस्था हो। वह आए तो उसे नागरिकता अपने आप सामान्य औपचारिकताओं की पूर्ति के साथ मिलनी चाहिए।

हिसाब से यह व्यवस्था 1947 में ही हो जानी चाहिए थी। आखिर 15 अगस्त 1947 की रात साफ था कि धर्म के आधार पर घर बंटा है। मुसलमान के लिए पाकिस्तान बना है तो हिंदू के लिए भारत। गांधी-नेहरू-सरदार पटेल ने हिंदू बनाम मुसलमान के धर्म भेद के आधार पर हिंदुस्तान का बंटवारा माना था। संविधान बनाने, स्वीकारने से पहले भारत हिंदू देश था। यही सोच अंग्रेज दे गए। यही सोच नेहरू ने, गांधी ने अलग पाकिस्तान बनवा कर घर बंटने दिया और हिंदू घर का जिम्मा स्वीकारा। तभी नए नागरिकता कानून में हिंदू के होमलैंड के नाते यह व्यवस्था बनानी चाहिए थी कि लुट-पिट-भाग कर यदि कोई हिंदू भारत आए तो उसे आसानी से नागरिकता मिले।

मगर ऐसा नहीं हुआ तो बुनियादी वजह नेहरू के आईडिया ऑफ इंडिया की खामोख्याली, फितरत और धर्म के हिंदू खूंटे से कांग्रेस का भटका हुआ होना था।

नतीजा सामने है। पिछले 68 सालों में पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान में हिंदू बुरी तरह लुटा-पिटा है। वहां जबरन धर्म परिवर्तन हुए। मानवता और मानवाधिकार के कायदे में भी कांग्रेस की सरकारों ने हिंदुओं के उत्पीड़न के मसले को न वैश्विक मंचों पर उठाया और न पाकिस्तान या बांग्लादेश या अफगानिस्तान को नतीजों की चेतावनी दी। हिंदुओं के साथ बलात्कार, हत्या जैसी तमाम ज्यादतियां हुईं। धर्म की वजह से हिंदुओं को ऐसी बुरी यातना झेली पड़ी कि असंख्य लोग धर्म परिवर्तन को मजबूर हुए। नतीजतन पाकिस्तान और बांग्लादेश में 1947 की आबादी में हिंदुओं का जो हिस्सा था वह घट-घट कर आज खत्म होने के कगार पर है। इन तीन देशों में पिछले 70 सालों में हिंदुओं को समूल जैसे नष्ट किया गया उसकी दास्तां वैसी ही दिल दहला देने वाली है जैसे अभी कुर्द आबादी के साथ इराक-तुर्की में हो रहा है या दूसरे महायुद्ध के वक्त यहूदियों के साथ हुआ था। हिटलर ने यहूदियों को पकड़वा कर गैस चैंबर में डाला था लेकिन पाकिस्तान ने तो बिना डाले उन्हें खत्म कर डाला!

हां, यह अतिरेक नहीं है। हकीकत है कि 69 सालों में पाकिस्तान में हिंदू रोज घुट-घुट कर, जलालत में मरे हैं। दुनिया में हिंदू जहां गया या था, उस हर देश में हिंदू आबादी बढ़ी है। मगर पाकिस्तान, अफगानिस्तान या बांग्लादेश याकि अपने को इस्लामी राष्ट्र घोषित किए हुए देशों में हिंदू खत्म हुआ है, मरा है या भागा है।

यह सफेद-काले जैसी तथ्यात्मक हकीकत है। इस हकीकत को कांग्रेस ने, कथित सेकुलर पार्टियों और उनकी सरकारों ने हमेशा अनदेखा किया। पिछली तमाम सरकारों ने इतना भी नहीं किया कि नागरिकता कानून 1955 के इस प्रावधान को ही हटा देते जिसमें जरूरी है कि जहां से आए हैं वहां की नागरिकता को छोड़ने का वह पहले सर्टिफिकेट पेश करें। नेहरू से ले कर आज तक सभी सरकारों ने यह अनिवार्य बनाए रखा है कि कोई हिंदू परिवार पाकिस्तान से भाग कर आए तो वह पहले पाकिस्तान सरकार का यह सर्टिफिकेट पेश करे कि उसे उसकी नागरिकता छोड़ने में कोई आपत्ति नहीं है। सोचें, जो पाकिस्तान से याकि अत्याचारी देश से भाग कर आया है वह कैसे वहां के रिन्यूनसेशन सर्टिफिकेट को पेश कर सकता है! मगर यह अनिवार्यता बनाई हुई थी। तभी पाकिस्तान से आए हिंदू भारत में बेघर रहे। इन्हें नागरिकता नहीं मिली।

सो मोदी सरकार का अभिनंदन। राजनाथ सिंह की गृह मंत्रालय की बैठक की खबर अनुसार फैसला हुआ बताते हैं कि भागे हिंदुओं को रिन्यूनसेशन सर्टिफिकेट नहीं देना होगा। उसकी जगह नागरिकता के आवेदन के साथ उसका शपथपत्र पर्याप्त होगा। रजिस्ट्रेशन फीस को पांच हजार रु से घटा सौ रु किया जा रहा है। आवेदन को जिले का डीएम और एसपी प्रोसेस कर आगे भेज सकेगा ताकि गृह मंत्रालय तक आवेदक को भटकना न पड़े। बैंक खाते, ड्राईविंग लाईसेंस, पैन कार्ड और आधार कार्ड बनवा सकने की सुविधाएं भी मिल जाएंगी।

एक आंकड़े के अनुसार भारत में ऐसे कोई दो लाख हिंदू हैं जो नागरिकता के लिए भटक रहे हैं। सो जुलाई के मानसून सत्र में संसद में नागरिकता कानून के संशोधन के बिल को पेश कर, उसे पास करवा यदि 15 अगस्त को नरेंद्र मोदी लाल किले पर इसकी डुगडुगी बजाएं तो वह वाहवाही वाली बात होगी। क्या नहीं?

लेखक http://www.nayaindia.com/ के प्रधान संपादक हैं।

साभार-http://www.nayaindia.com/

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