आज 30 जून को आन्दोलनधर्मी जन कवि बाबा नागार्जुन का 105वां जन्मदिन है।उनकी पुण्य स्मृति को कोटिशः नमन!! कबीर,धूमिल और नागार्जुन मूलतः विपक्ष के कवि हैं जो वर्चस्व वादी सत्ता के विरुद्ध प्रतिरोध की संस्कृति को समृद्ध करते हैं। निराला शक्ति के उपासक हैं तो नागार्जुन लोकशक्ति के।
मुक्तिबोध के मन में उज्जैन और दिल्ली को लेकर ऊहापोह है-“क्या
करूं, कहाँ जाऊँ दिल्ली या उज्जैन”।
नागार्जुन पटना और दिल्ली दोनों सत्ता-केंद्रों को नकार कर भोजपुर के किसान आंदोलन की संघर्ष गाथा लिखने को प्रतिबद्ध हैं–
“मुन्ना मुझको पटना दिल्ली मत जाने दो
भूमिपुत्र के संग्रामी तेवर लिखने दो।
पुलिस दमन का स्वाद मुझे भी तो चखने दो।”
आज असहिष्णुता के अंधे दौर में नागार्जुन की राजनीतिक बोध की कविताएँ शिद्दत से याद आ रही हैं। जनहित के विरुद्ध काम करने वालों को उन्होंने कभी क्षमा नहीं किया चाहे सत्ता पक्ष के हों, विपक्ष के हों अथवा उनके अपने वाम पक्ष के ही क्यों न हों।नागार्जुन हिंदी के पहले कवि हैं जिन्होंने मायावती पर एक और फूलन देवी पर दो कविताएँ लिखीं।पहले कवि हैं जिसने आदि वासी जीवन की विडम्बनाओं पर दर्जनों कविताएँ लिखी जैसे”शालबनों के निविड़ टापू”।
तालाब की मछलियाँ स्त्री अस्मिता को रेखांकित क्र गुलामी से मुक्ति की छटपटाहट का सवाल उठाती है तो हरिजन गाथा दलित विमर्श के रूबरू होती है।राजनीतिक बोध की कुछ कविताएँ–
जनता मुझसे पूछ रही है क्या बतलाऊँ।
जनकवि हूँ मैं साफ़ कहूँगा क्यों हकलाऊं।
स्वाद मिला असली सत्ता का क्यों न मचाएं शोर
पूँछ उठाकर नाच रहे हैं लोकसभाई मोर।
आजादी के भृम में हमको बाइस-तेईस साल हो गए
आग उगलते थे जो साथी चिकने उनके गाल हो गए।
खेत हमारे भूमि हमारी , सारा देश हमारा है।
जिसका जाँगर उसकी धरती, यही एक बीएस नारा है।
बाल ठाकरे बाल ठाकरे!
कैसे फासिस्टी प्रभुओं की,गला रहा है दाल ठाकरे।
धन पिशाच के इंगित पाकर ऊँचा करता भाल ठाकरे
चला पूछने मुसोलिनी से अपने दिल का हाल ठाकरे
बर्बरता की ढाल ठाकरे
प्रजातन्त्र के काल ठाकरे।
दिल ने कहा दलित माँओं के सब बच्चे अब बागी होंगे
अग्निपुत्र होंगे वे,अंतिम विप्लव के सहभागी होंगे।
रामराज में अबकी रावण नंगा होकर नाचा है।
सूरत सकल वही है भैया बदला केवल ढांचा है।
हम भी मछली तुम भी मछली, दोनों ही उपभोग की वस्तु हैं
इसीलिए तो हमें इन्होंने कैद कर लिया तालाबों में
इसीलिए तो तुम्हें इन्होंने कैद कर लिया सात-सात डयोढ़ीयों वाली हवेलियों में।
बदल बदल कर घोड़े उड़ती/जिला बदलती ही रहती
फूलन देवी दुर्गा माता की बेटी है।
कारतूसों की मालाओं से हमने उसको पहचाना था
मैनपुरी के एक गाँव में ठाकुर के घर डटी हुई थी फूलन देवी
लगता था, हाँ, सिंह वाहिनी प्रकट हुई है। मैनपुरी के एक गाँव में।
इमरजेंसी लगाने वाली इंदिरा गांधी को तो उन्होंने कभी माफ़ नहीं किया।जनविरोधी कामों के लिए उनहोंने गांधी,नेहरू,विनोवा,बाल ठाकरे जैसे बड़े नेताओं को भी नहीं बक्शा।
इंदिरा पर तो उनकी ख़ास नज़र थी-
इंदू जी इंदू जी, क्या हुआ आपको
सत्ता की मस्ती में भूल गईं बाप को।
और बाप को भी कहाँ छोड़ा–
आओ रानी हम ढोएंगे पालकी
यही हुई है राय जवाहर लाल की।
आप चाहें तो इंदू जी और बाल ठाकरे शब्द को
मोदी से रिप्लेस भी कर सकते हैं!!!!!!!!!
जली ठूँठ पर बैठ कर गई कोकिला कूक।
बाल न बाॅका कर सकी शासन की ब॓ंदूक ।
लोक के जनकवि बाबा नागार्जुन को शत-शत नमन ।