एक लम्बे समय से मैं आध्यात्मिक और योग गुरु रवि शंकर के बारे में सुनता और पढता आ रहा हूँ. उनके आर्ट आफ लिविंग कार्यक्रम की महानगरों के सम्पन्नता की ओर अग्रसर युवाओं के बीच खासी लोकप्रियता है, और यह निरन्तर बढ़ रही है. पिछले वर्षों में उनकी लोकप्रियता भारत की सीमा को लांघ कर विदेशों में बसे संपन्न निवासियों के बीच तो पहुँच ही गयी है साथ ही विदेशी लोग भी आर्ट आफ लिविंग को अपना रहे हैं. अपने चाहने वालों के बीच वे श्री श्री जी के नाम से जाने जाते हैं.
इन दिनों आर्ट आफ लिविंग कार्यक्रम 155 देशों में सिखाया जाता है और इसके अनुनायियों की संख्या यही कोई 37 करोड़ बतायी जाती है. वर्ष में रवि शंकर जी अपना समय समय फ्रांस की सीमा से सटे दक्षिण पश्चिम जर्मनी के खूबसूरत नगर बादेन बादेन अवस्थित आश्रम और कनाडा के मांट्रियल नगर से सटे आर्ट आफ लिविंग आश्रम में बिताते हैं , यही नहीं उनका काफी समय बेंगलोर के मुख्य आश्रम और दिल्ली के राजनैतिक परिदृश्य के बीच भी गुजरता है. फिर देश विदेश के विभिन्न नगरों में कार्यक्रमों में भी जाते रहते हैं।
जहाँ रवि शंकर अपने अनुनायियों को तनाव मुक्त जीवन जीना सिखाते हैं वहीं उनका अपना दिन सुबह सबेरे ठीक 4 बजे ध्यान सेशन से शुरू होता है। इसके बाद लगातार अनुनायियों के साथ मेल मिलाप, समाचार और अन्य महत्वपूर्ण विषयों पर विचार विमर्श, प्रेस से बातचीत का सिलसिला जारी रहता है. सोने के लिए यही कोई 12 बजे जाते हैं और उससे पहले कई महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय काल और टेली कांफ्रेंस करना नहीं भूलते हैं!
श्री श्री जी का सपना एक हिंसा मुक्त और तनाव रहित बनाने का है, पर कई लोग उनके ध्यान कार्यक्रमों के बारे में सवाल उठाते हैं जिनकी लागत भारत में कोई 4000 रूपये और दुसरे देशों में 150 – 200 डॉलर होती है. लेकिन इसके पीछे तर्क यह दिया जाता है कि इनकी आय चैरिटी पर लगाई जाती है.
रवि शंकर जी संसार भर में शांति और सद्भावना की मुहीम छेड़े हुए हैं लेकिन समय समय पर उनका नाम विवादों के साथ भी जुड़ता रहता रहता है. 2001 में उनके विरुद्ध कर्नाटक उच्च न्यायालय में एक जन हित याचिका दायर की गयी थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि आर्ट आफ लिविंग फाउंडेशन ने एक जलमग्न क्षेत्र पर अनधिकृत निर्माण कर लिया है. जांच में पता लगा कि यह कोई 6.53 हेक्टेयर टैंक एरिया है. 2010 में एक अनिवासी ने उसकी बेंगलोर के कनकपुरा क्षेत्र में 15 एकड़ जमीन पर कब्जा करने का आरोप लगाया था. इन दोनों ही मामलों क्या हुआ पता नहीं है.
2012 में उन्होंने आरोप लगा दिया था कि सरकारी स्कूल नक्सलवाद की जननी हैं. इसके ऊपर उन्हें एक्टिविस्ट और अकादमीशियन दोनों की आलोचना सहनी पडी थी. इस वर्ष दिल्ली में आयोजित उनके विश्व संस्कृति महोत्सव की भव्यता और स्केल की जहाँ सराहना हुई वहीं इस कार्यक्रम के लिए यमुना नदी के 1000 एकड़ संवेदनशील फ्लड – पैन के साथ छेड़ छाड के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय और राष्ट्रीय हरित ट्रिब्यूनल की आलोचना और जुर्माना दोनों ही झेलना पड़ा था. जब काम होंगे तो उनके साथ कुछ ना कुछ वाद विवाद तो चलते ही रहेंगे लेकिन यह भी सच है कि महत्वपूर्ण राष्ट्रिय मुद्दों पर रवि शंकरअपनी बेवाक राय रखते हैं और समस्या के समाधान के लिए सक्रिय रूप से आगे आ जाते हैं। वह चाहे आपसी सहमति से राम मंदिर विवाद को सुलझाने की उनकी पहल हो या फिर 2011 में एंटी करप्शन आंदोलन में बाबा रामदेव को उनका उपवास तोड़ने के लिए मना लेना या फिर सरकार और नक्सलवादियों के बीच में मध्यस्थता की बात हो देश ने प्रयास की सराहना की थी. हाल ही में महिलाओं को शनि शिंगलपुर मंदिर में प्रवेश को लेकर महिला एक्टिविस्ट और परम्परावादियों के बीच चल रहे विवाद में भी उनके मध्यस्थता को काफी गम्भीरता से लिया गया था.
इन दिनों रविशंकर अमरीका और कनाडा के 9 बड़े नगरों में अपने ध्यान शिविरों के लिए दौरे पर हैं. इसी क्रम में आज उनका प्रवास सिएटल में हुआ, यह नगर यहाँ माइक्रोसॉफ्ट और अमेजन के मुख्यालय के कारण भी सुर्ख़ियों में रहता है, इन दोनों ही कम्पनियों में भारतीयों की तादाद बहुत ज्यादा है, इस लिए रवि शंकर के दो दिवसीय कार्यक्रम को लेकर नगर में खासी सरगर्मी देखने को मिली, जगह जगह पोस्टर, नगर सेवा बसों पर भी इस कार्यक्रम का विज्ञापन काफी समय से शुरू हो गया था. बेलव्यू के मध्य में मेडेनव्यूर सेंटर में 1500 की संख्या वाले हाल की पूरी सीटें पहले से ही बुक हो जाना भी एक बड़ी घटना मानी जा रही थी.
मैंने आर्ट आफ लिविंग के अमरीका प्रमुख कुशल चौकसी से अनुरोध किया था क़ि वे हिन्दी मीडिया.इन के लिए एक सत्क्षाकार के लिए रवि शंकर जी का समय दिला दें. उनकी सहमति मिलते ही हमने बेलव्यू सेंटर स्थित वेस्टिन होटल की ओर रुख किया. जब हमने होटल की लॉबी में प्रवेश किया तो पाया कि वहां बैठने के लिए जगह ही नहीं थी, भारतीय प्रशंसकों के साथ ही काफी चीनी, यूरोप और अन्य देशों से भी लोग वहां रवि शंकर के दर्शन के लिए जमा थे. यही नहीं बेलेव्यू और रेडमंड के मेयर, सिएटल के पुलिस प्रमुख भी उनसे शिष्टाचार भेंट के लिए प्रतीक्षारत थे. इसलिए उनका पूरा शिड्यूल काफी पीछे चल रहा था. होटल में व्यवस्था को बनाये रखने के लिए काफी सारे फाउंडेशन वालंटियर मौजूद थे पता चला ये सब माइक्रोसॉफ्ट, अमेजन और अन्य स्थानीय कम्पनियों में कार्यरत हैं. शिकागो के विरमानी अपना पूरा काम काज छोड़ कर रवि शंकर के साथ साथ 9 नगरों के इस टूर पर चल रहे थे. वे हमें होटल की 18 वीं मंजिल पर लेकर गए जहाँ प्रेसिडेंशियल सूट में रवि शंकर प्रवास कर रहे थे. वे अपनी चिर परिचित सहज मुस्कान के साथ धवल कपड़ों में कुर्सी पर बैठे हुए थे. माथे पर चन्दन का बड़ा तिलक और लम्बे केश जो उनके व्यक्तित्व को औरों से अलग करता है. हमें आता हुआ देख कर रवि शंकर कुर्सी से उठे और हाथ जोड़ कर अभिवादन किया इसके बाद सवाल जवाब का सिलसिला शुरू हुआ. बाहर लोगों की लम्बी कतार थी जो संभवत तीन चार घंटे से केवल दर्शन के लिए इंतजार कर रहे थे इस लिए हमें अपने कुछ प्रश्नों को छोड़ना पड़ा.
हमने शुरुआत की, ‘आपने आध्यात्म का मार्ग क्यों चुना ?’
उनका सपाट उत्तर था,’ क्या आप किसी मछली के जीवन की कल्पना पानी के बिना कर सकते हैं ‘.
‘दुनिया भर में लोग आपके अनुनायी बन रहे हैं इसका क्या रहस्य है ?’
‘शुरुआत भारत से ही हुई थी, हमारे कार्यक्रमों में दूतावास और हाईकमीशनों से भी लोग भी आने लगे। कार्यक्रमों के बारे में बाहर भी खबर गयी , हमारे पास कार्यक्रम आयोजित करने के अनुरोध आने लगे इस तरह आर्ट आफ लिविंग भारत के बाहर पहुँचने लगा. लेकिन हमें किसी भी देश में सरकारी मदद नहीं मिली’.
‘अमरीका और अन्य देशों में आपको किसी किस्म के प्रतिरोध का सामना नहीं करना पड़ा?’
‘शुरुआत में हमें काफी प्रतिरोध का सामना करना पड़ा. पर अब स्थिति काफी बेहतर है। योग की स्वीकार्यता बढी है. इन दिनों तो कार कम्पनियां योग की मुद्राओं को कार बेचने के लिए अपने विज्ञापनों में इस्तेमाल कर रही हैं. ‘
‘क्या आप बताएँगे कि आर्ट आफ लिविंग का सार क्या है ?’
‘आर्ट आफ लिविंग प्रसन्नता कार्यक्रम है. यह जीवन को मजबूत बनाता है और मोक्ष की ओर ले जाता है. इसका सबसे महत्वपूर्ण भाग सरल श्वांस तकनीक है जिससे तनाव तेजी से पिघल जाता है, ऊर्जा का संचार होता है और मस्तिष्क फिर से सकरात्मक स्थिति में पहुँच जाता है.यही नहीं इससे मस्तिष्क की आदत समझने में मदद मिलती है , जीवन को बड़े परिपेक्ष्य में देखना आ जाता है, इस से तनाव, अवसाद और चिंता के कारक तत्वों को हैंडल करने में मदद मिलती है. लगातार इस तकनीक को अपनाने से आशावादी दृष्टिकोण विजिट होता है शरीर में कई सकारात्मक परिवर्तन परिलक्षित होने लगते हैं जैसे एंटीआक्सीडेंट एंजाइम बढ़ते हैं , प्रतिरोधात्मक शक्ति विकसित होती है और भावनाओं पर बेहतर नियंत्रण करना आ जाता है.’
”क्या आध्यात्म और आधुनिक विज्ञान में कोई मतभेद है ?’
‘दरअसल भारतीय और पाश्चात्य आध्यात्म में बुनियादी अंतर है. हमारा आध्यात्म और आधुनिक विज्ञान परस्पर विरोधी नहीं हैं. वैदिक परम्परा को देख लें इस में आध्यात्म और विज्ञान के बीच अदभुत सहक्रियाशीलता देखने को मिलती है और मुझे नहीं लगता कि इन दोनों के बीच कोई विभाजक रेखा है.ये जो भी सत्य हैं वे उस विश्व और ब्रह्माण्ड के बारे में बताते हैं जिसका हम एक हिस्सा हैं. यह सत्य हमें हमारे मैटीरियल शरीर और फिर वहां से आध्यात्म में प्रवेश करने में मदद करते हैं.
‘ इस बदलते दौर में हम अपने पारिवारिक मूल्यों को कैसे बनाए रख सकते हैं?’
‘आजकल परिवारों की मुख्य समस्या तनाव है, अगर हम अपने आसपास के वातावरण को तनाव रहित रख सकें तो निश्चय ही बदलाव आयेगा. अगर हम बिना स्वार्थ के सेवा करें तब भी परिवर्तन होगा’
‘क्या आप वर्तमान समय में हमारे बच्चों की परवरिश के बारे में कुछ उपाय बताएँगे ?’
‘बच्चों को ध्यान में रख कर हमने काफी काम किया है। 8 वर्ष से लेकर 13 वर्ष के बच्चों के लिए हमने एक विशेष कार्यक्रम तैयार किया है. इस से बच्चे में अपने और साथ ही दूसरों के लिए एक सम्मान की भावना जागती है. इस कार्यक्रम में हम सरल श्वांस तकनीक सिखाते हैं , सुदर्शन क्रिया भी इसका एक अंग है. कार्यक्रम को करने से बच्चे को ईर्ष्या, चिंता, घबराहट जैसे नकरात्मक इमोशन को दूर करने में मदद मिलती है. पूरा कार्यक्रम फन, खेल और सरल एक्सरसाइजों पर आधारित है जिसमें बच्चे को कोई विशेष प्रयास नहीं करना पड़ता है. इससे मित्रवत व्यवहार , क्षमा और सम्मान भी करना आ जाता है. ‘
‘हमने सुना है कि आर्ट आफ लिविंग ने कुछ अन्य क्षेत्रों में भी पहल की है, उसके बारे में कुछ बताइये ?’
‘जी हाँ , हम लोग जेल की सजा काट रहे लोगों के लिए भी कार्यक्रम चलाते हैं , हमने पाया है कि इन कार्यक्रमों के बाद उनमें काफी परिवर्तन आया है. अमरीका में हमने अवकाश प्राप्त फौजियों (वार वेटरन ) के लिए भी कार्यक्रम प्रारम्भ किये हैं जिनका अच्छा परिणाम आया है.’
रवि शंकर जी के कार्यक्रमों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा योग है इस लिए हमने कुछ प्रश्न उनके योग के अनुभवों को लेकर भी पूछे. इस बारे में हमने उनसे पूछा ,’आप लोगों को योग के बारे में क्या बताना चाहेंगे ?’
उनका उत्तर था.’योग महासागर की तरह से है. या तो आप केवल ब्रीज का लुत्फ़ उठा लें या फिरआप इसमें आयल रिग ड्रिल करके तेल निकाल लें. ठीक इसी तरह से योग से भी भिन्न भिन्न किस्म के लोगों के लिए भिन्न भिन्न चीजें पायी जा सकती हैं.कास्मिक चेतना के साथ एकाकार होने से लेकर शारीरिक स्वास्थ , मानसिक शांति , आध्यात्मिक आनंद – यह सभी योग का हिस्सा हैं.
‘जब लोग कहते हैं कि योग केवल आसन हैं तो आप को कैसा लगता है?’
‘इसमें उनका दोष नहीं है. लेकिन जब वे आसन करना प्रारम्भ करते हैं तो उन्हें अंदाजा होता है कि इसके आगे भी बहुत कुछ है. यदि इससे ध्यान में रूचि जगती है तब तो वे सही मार्ग पर हैं. लेकिन अगर वे केवल एक्सरसाइज पर ही रुक गए हैं तब भी कुछ बुरा नहीं है, लेकिन वे लक्ष्य तक नहीं पहुँच पाएंगे.’
‘योग के शास्त्रीय आठ अंग के बारे में लोग कब सोचते हैं ?’
‘दुर्भाग्य से लोग इन आठ अंगों को चरण मान लेते हैं. जब बच्चा जन्म लेता है तो उसके अंग एक के बाद एक विकसित नहीं होते हैं , यह सब एक ही साथ विकसित होते हैं. ठीक इसी प्रकार योग के आठ अंग भी एक दुसरे से जुड़े हुए हैं, यदि आप एक को खींचेंगे अन्य भी साथ में आ जाएंगे.’
‘कुछ लोग सोचते हैं कि यम और नियम पर महारथ हासिल करके अन्य को सीख सकते हैं ?’
‘जैसा कि मैंने कहा कि योग के अंग एक दूसरे से जुड़े हुए हैं वे क्रमवार नहीं हैं. इस लिए यदि अन्य अंगों पर भी ध्यान दिया गया तो यम और नियम का पालन करने में सहायता मिलेगी। जब हम जेल में कैदियों को ध्यान सिखाते हैं तो हम देखते हैं कि यदि उन्हें ध्यान लगाने में आनंद मिलता है तो इसी के साथ उनकी विचार प्रक्रिया और आचरण का तरीका भी बदलने लगता है. वे अहिंसा का मार्ग अपना लेते हैं, सच बोलने की प्रवृति विकसित होती है , धोखा देने की आदत गायब होने लगती है. इस लिए जब लोग ध्यान के रास्ते पर चल निकलते हैं तो उनके जीवन में यम नियम स्वयं ही आने लगते हैं.’
‘तो आपका आर्ट आफ लिविंग कार्यक्रम शास्त्रीय योग के आठ अंगों के बीच कहाँ फिट होता है ?’
‘योग तब तक अधूरा है जब तक उसका एक भी अंग भी अनुपस्थित है.
इसलिए हम कुछ एक्सरसाइज, कुछ प्राणायाम-श्वांस एक्सरसाइज -ध्यान एक साथ शुरू करते हैं जिससे समाधि की अवस्था यानि आठवें अंग तक पहुँच सकते हैं , यह कोई एक्सरसाइज नहीं है वरन चेतना की एक अवस्था है. ‘
‘धारणा और ध्यान योग के छठे और सातवें अंग हैं , इन दोनों के बीच क्या बारीक अंतर है ?’
‘ एक पर महारथ हासिल कर ली तो दूसरे पर पहुँच जाएंगे. धारणा किसी एक वस्तु विशेष पर ध्यान देने का नाम है वहीं ध्यान वह तरीका है जिससे मस्तिष्क जा कर समाधि में मिलने लगता है’.
‘बहुत सारे लोग धारणा को एकाग्रता समझते हैं क्या यह सही है ?’
‘ बिलकुल नहीं. एकाग्रता ध्यान का फलीभूत है. जहाँ धारणा अवधान है – वहीं एकाग्रता में तनाव है
‘इन दिनों भारत तरक्की के मार्ग पर अग्र्सर हो चला है, ऐसे में भारत की आध्यात्मिक परंपरा कैसे स्वीकार्य होगी ?’
‘अच्छी बात यह है कि नई पीढ़ी ही इसे अपना रही है. अबसे एक पीढ़ी पहले के लोग जरा संदेह करते थे. इसमें मीडिया का भी हाथ है. अब स्थिति इस लिए अलग है क्योंकि लोग इसका लाभ देखने लगे हैं.’
श्री श्री जी के सुइट के आगे दर्शनार्थियों की कतार काफी लम्बी हो चुकी थी इस लिए हमने अपने प्रश्नों को वहीं विराम दिया और उनसे विदा ली.
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Pradeep Gupta
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