वर्ष 2015 अक्तूबर 29 से 31 को कैरिबियन फ़्रैंच द्वीप ग्वाडालूप में एक सम्मेलन होने जा रहा है जिसमें प्रवासी भारतीयों की पारंपरिक भाषाओं के पीढ़ी-दर-पीढ़ी संरक्षण और प्रसारण विषय पर संसार के विभिन्न भागों से आए विद्वज्जन अपने लेख प्रस्तुत करेंगे और तद्विषयक गहन चर्चा में भाग लेंगे।
विभिन्न देशों में हिन्दी की स्थिति पर आधारित एक लेख मैं प्रस्तुत करूंगा। लेख का विषय होगा एक ऐसा प्रतिमान जिसके आधार पर कृशकाय भाषाओं में पुनः प्राणप्रतिष्ठा की जा सकती है। प्रौद्योगिकी और भूमण्डलीकरण के कारण आज परिस्थितियां बहुत अलग हैं और द्विभाषिकता के लाभों की ओर शिक्षित समाज आकर्षित हो रहा है। अमेरिका और कैनाडा में द्विभाषिकता सरकारी तंत्र की नीतियों का हिस्सा बन चुकी है और सरकारी नीतियों से समर्थित होकर द्विभाषिकता को अगली पीढ़ियों के लिए विद्यालयों से विश्वविद्यालयों तक के पाठ्यक्रमों का भाग बनाने की प्रक्रिया आरंभ हो चुकी है। अमेरिका में विश्व की कुछ महत्वपूर्ण भाषाओं का इस नीति के लिए चयन किया गया है और हिन्दी उन चयनित भाषाओं की सूची में सम्मिलित है।
भारत के संदर्भ में भी निर्बल होती भारतीय भाषाओं को सबल बनाने की आवश्यकता है। वहां काफ़ी सीमा तक तो पानी सर के ऊपर से निकल चुका है परंतु अभी भी स्थिति को संभाला जा सकता है। परंतु उसके लिए सरकारी स्तर से लेकर व्यक्तिगत स्तर तक की कटिबद्धता अनिवार्य है। अन्यथा भारतीय भाषाओं की उपेक्षा भारत की प्रगति में बाधक बनेगी और भारत एक मध्यम-स्तरीय देश बनकर रह जाएगा।
आशा है कि हिन्दी के वैश्विक मंचों पर भारत के बाहर और भारत में जन-जीवन के साथ सांस्कृतिक और संप्रेषणात्मक संबंध रखने वाली पारंपरिक भाषाओं को सबल और संपुष्ट करने के विषय पर सार्थक चर्चा हो सकेगी।
प्रेषक
वैश्विक हिंदी सम्मेलन की वैबसाइट -www.vhindi.in
'वैश्विक हिंदी सम्मेलन' फेसबुक समूह का पता-https://www.facebook.com/groups/mumbaihindisammelan/
संपर्क – vaishwikhindisammelan@gmail.com