लखनऊ से पधारे समकालीन हिंदी कविता के वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना ने साबित किया कि आज के दौर के वे बेमिसाल कवि हैं। रविवार 15 जनवरी 2023 की शाम को मृणाल गोरे हाल, केशव गोरे स्मारक ट्रस्ट, गोरेगांव में अपने जन्मदिन की पूर्व संध्या पर नरेश सक्सेना ने अपने आत्मीय काव्य पाठ से मुंबई महानगर के प्रमुख रचनाकारों और काव्य प्रेमियों को अभिभूत कर दिया। उनका कविता पाठ इतना असरदार था कि कई बार वाह-वाह हुई और कई बार तालियों की गूंज सुनाई पड़ी।
जीवन के 84 साल पूरा करने के उपलक्ष्य में चित्रनगरी संवाद मंच की ओर से कथाकार सूरज प्रकाश और कवि देवमणि पांडेय ने पुष्पगुच्छ भेंट करके कवि नरेश सक्सेना का अभिनंदन किया। दिल्ली, मुम्बई, बंगलौर के कई रचनाकार मित्रों की मौजूदगी से परम प्रसन्न कवि नरेश सक्सेना ने कहा – मेरे जन्म दिन का उत्सव कभी इतना शानदार नहीं रहा। इस अवसर पर प्रतिष्ठित कथाकार असग़र वजाहत (दिल्ली), कथाकार गंगाराम राजी (हिप्र), कवि डॉ विजय कुमार, कवि विनोद दास, कवि अनूप सेठी, कथाकार ओमा शर्मा, कथाकार विभा रानी, कथाकार रश्मि रवीजा, कवयित्री अनुराधा सिंह, कवयित्री रीतादास राम, कवयित्री संध्या यादव आदि कई प्रमुख रचनाकार उपस्थित थे।
कार्यक्रम की शुरुआत अभिनेता इरफ़ान पर लिखी हुई पुस्तक से हुई। इस पुस्तक के लेखक वरिष्ठ पत्रकार अजय ब्रह्मात्मज ने पुस्तक का परिचय देते हुए उद्घाटित किया कि इस पुस्तक में उन्होंने इरफ़ान के पारिवारिक सदस्यों और नज़दीकी मित्रों के ज़रिए इस अभिनेता के जीवन के कई अनछुए पहलुओं को उजागर किया है ।
सृजन सम्वाद में अपनी लेखन यात्रा की चर्चा करते हुए प्रतिष्ठित कथाकार सुधा अरोड़ा ने बताया कि उनकी पहली कहानी अगस्त 1965 में कलकत्ता की एक लघु पत्रिका #रूपांबरा में प्रकाशित हुई थी । श्रोताओं से संवाद करते हुए सुधा जी ने कई महत्वपूर्ण अनुभव साझा किए। उन्होंने अपने मेंटल ब्लॉक का भी ज़िक्र किया और बताया कि एक बार तो यह ब्लॉक तेरह साल के अंतराल के बाद ख़त्म हुआ। डॉ मधुबाला शुक्ला की फ़रमाइश पर सुधा जी ने अपनी लोकप्रिय कहानी #रहोगी_तुम_वही का पाठ किया। एक गृहिणी के जीवन पर केंद्रित उनकी यह कहानी बहुत पसंद की गई। श्रोताओं ने इससे संबंधित कई रोचक सवाल पूछे। सुधा जी ने इन सवालों के रोचक जवाब दिए। कवयित्री सविता दत्त ने जानना चाहा कि क्या इस कहानी से उनके पतिदेव का कुछ संबंध है? सुधा जी ने बताया कि इस कहानी में चार-पांच संवाद उनके पति के हैं और यह कहानी प्रकाशित होने पर उनके पति ने तीन दिन उनसे बात नहीं की। इस पर ज़ोरदार ठहाका लगा।
हिंदी कहानी के विविध आंदोलनों का ज़िक्र करते हुए सुधा जी ने कहा कि ऐसे आंदोलन पानी में बुलबुले की तरह थे। ये आंदोलन अपने ग्रुप को प्रचारित करने के लिए किए गए। अच्छी कहानियां कभी ऐसे आंदोलनों की मोहताज़ नहीं होतीं। कुल मिलाकर श्रोताओं के साथ सुधा जी का संवाद बहुत दिलचस्प रहा। कई बार तालियां बजी और कई बार ठहाके लगे।
दिल्ली से पधारे सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार सुभाष चंदर ने अपनी एक चर्चित कहानी का पाठ किया। इंसानियत का पैग़ाम देने वाली इस मार्मिक कहानी में उन्होंने व्यंग्य के तेवर का भी अच्छा इस्तेमाल किया। रायपुर से पधारे कवि आरडी अहिरवार ने अपनी एक ग़ज़ल पेश की। कार्यक्रम की शुरुआत में दिवंगत फ़िल्म लेखक संजय चौहान को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। अंत में शायर नवीन जोशी नवा ने आभार व्यक्त किया।
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