‘अच्छे दिन आने वाले हैं’ इन शब्दों को अगर 2014 के लोकसभा चुनावों का परिणाम तय करने वाले शब्द कहें तो गलत नहीं होगा। नरेंद्र मोदी ‘अच्छे दिनों’ का वादा करके जनता का भरोसा और वोट, पाने में कामयाब रहे। तब प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह पर चुटकी लेते हुए नरेंद्र मोदी ने कहा था, ”निराश होने की जरूरत नहीं, अच्छे दिन जल्द आने वाले हैं।” उनका इशारा, बीजेपी के नेतृत्व में बनने वाली केंद्रीय सरकार की ओर था। मगर नरेंद्र मोदी से बहुत पहले 1905 में ही हिन्दी साहित्यकार पं. गया प्रसाद शुक्ल ‘सनेही’ ने ‘अच्छे दिनों’ की परिभाषा सामने रख दी थी। ‘दिन अच्छे आने वाले हैं’ शीर्षक से उनकी यह कविता ‘सम्मेलन’ नाम की पत्रिका में छपी थी। भारतकोश के अनुसार, शुक्ल मुख्य रूप से ब्रज भाषा में कविता करते थे, हालांकि उर्दू और खड़ी बोली पर भी उनका समान अधिकार था।
जब दुख पर दुख हों झेल रहे, बैरी हों पापड़ बेल रहे,
हों दिन ज्यों-त्यों कर ढेल रहे, बाकी न किसी से मेल रहे,
तो अपने जी में यह समझो,
दिन अच्छे आने वाले हैं।
जब पड़ा विपद का डेरा हो, दुर्घटनाओं ने घेरा हो,
काली निशि हो, न सबेरा हो, उर में दुख-दैन्य बसेरा हो,
तो अपने जी में यह समझो,
दिन अच्छे आने वाले हैं।
जब मन रह-रह घबराता हो, क्षण भर भी शान्ति न पाता हो,
हरदम दम घुटता जाता हो, जुड़ रहा मृत्यु से नाता हो,
तो अपने जी में यह समझो,
दिन अच्छे आने वाले हैं।
जब निन्दक निन्दा करते हों, द्वेषी कुढ़-कुढ़ कर मरते हों,
साथी मन-ही-मन डरते हों, परिजन हो रुष्ट बिफरते हों,
तो अपने जी में यह समझो
दिन अच्छे आने वाले हैं।
बीतती रात दिन आता है, यों ही दुख-सुख का नाता है,
सब समय एक-सा जाता है, जब दुर्दिन तुम्हें सताता है,
तो अपने जी में यह समझो,
दिन अच्छे आने वाले हैं।
– गयाप्रसाद शुक्ल ‘सनेही’
गया प्रसाद शुक्ल ने कई मशहूर रचनाएं लिखी हैं, जिनमें प्रेम पच्चीसी, कुसुमांजलि, कृषक क्रंदन, त्रिशूल तरंग, राष्ट्रीय मन्त्र, संजीवनी, राष्ट्रीय वाणी, कलामे त्रिशूल, करुणा-कादम्बिनी आदि प्रमुख हैं।
शुक्ल का जन्म 1833 में उत्तर प्रदेश के उन्नाव में हुआ था। 20 मई, 1972 को 89 वर्ष की आयु में उन्होंने कानपुर में अंतिम सांस ली।
साभार-जनसत्ता से