आधार कार्ड को लेकर एक नया अनिश्चय खड़ा हुआ है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि आधार कार्ड में दिए गए नाम, लिंग, पता और जन्म तिथि को इन तथ्यों का ठोस सबूत नहीं माना जा सकता। साथ ही आपराधिक मामलों की जांच में संदेह होने पर इनकी पड़ताल की जा सकती है। जस्टिस अजय लाम्बा और जस्टिस राजीव सिंह की पीठ ने हाल में दिए गए एक फैसले में कहा कि साक्ष्य अधिनियम के तहत यह नहीं कहा जा सकता कि आधार कार्ड में दिए गए नाम, पता, लिंग और जन्मतिथि का विवरण उनके सही होने का ठोस सबूत हैं। इस विवरण पर अगर सवाल उठता है और खास तौर आपराधिक मामलों की जांच के दौरान, तो जरूरत पड़ने पर इनकी पड़ताल की जा सकती है। ध्यानार्थ है कि सरकार आधार कार्ड को परिचय का संपूर्ण या अंतिम दस्तावेज बताती रही है। सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ फैसले के बावजूद उसने अनेक स्थानों पर इस कार्ड की अनिवार्यता को खत्म नहीं किया है। लेकिन अब एक हाई कोर्ट ने कहा है कि आधार कार्ड में दर्ज तथ्य स्वयंसिद्ध नहीं माने जा सकते। तो फिर इस कार्ड की उपयोगिता क्या है? इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बहराइच के सुजौली थाना में दर्ज एक मामले की वैधता को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए ये निर्णय दिया। यह याचिका एक दंपत्ति ने दायर की थी। उन्होंने लड़की की मां के द्वारा लड़के और उसके परिवार के खिलाफ दायर आपराधिक मामलों को खारिज करने की मांग की थी।
अदालत में इस बात को साबित करने के लिए उन्होंने आधार कार्ड पेश किया था। उसके आधार पर ये दावा किया गया कि संबंधित व्यक्ति शादी करने की उम्र के हैं। आधार कार्ड में दर्ज याचिकाकर्ताओं की जन्म तिथि पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए अदालत ने भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) से जवाब मांगा था। इस मामले में आधार कार्ड में लड़के की जन्म तिथि एक जनवरी 1997 और लड़की की जन्म तिथि एक जनवरी 1999 अंकित थी। अपने हलफनामे में यूआईडीएआई ने कहा कि अगर किसी व्यक्ति के पास उसकी जन्म तिथि से संबंधित कोई वैध दस्तावेज नहीं होता है तो उसकी जन्म तिथि को घोषित या अनुमानित जन्म तिथि के आधार पर दर्ज कर दिया जाता है। तो क्या ऐसा ही अन्य व्यक्ति से संबंधित सूचनाओं के साथ भी होता है? अब ऐसे सवाल जरूर पूछे जाएंगे।
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