Sunday, June 30, 2024
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आम चुनावों में राष्ट्रीय विमर्श अब बहस का विषय ही नहीं

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। आम चुनाव के चार चरण समाप्त हो चुके हैं। आज पांचवे चरण का मतदान जारी है। लोकतंत्र में मतदान मौलिक अधिकार है। यह नागरिकों को चुनाव का अवसर देता है कि कौन सरकार में आए? सरकार कैसी हो? और उन पर कौन शासन करे? यह सत्ता के दावेदारों की विचारधारा, रीति, नीति और दृष्टिकोण को भी जांचने और इच्छानुसार मतदान करने का अवसर होता है। मतदान केवल अधिकार नहीं, उत्तरदायित्व भी है। मतदान से नागरिकों की राजनैतिक इच्छा प्रकट होती है। मतदाताओं के पक्ष को समझा जाता है। चुनाव में मतदाता के सामने भिन्न-भिन्न विचार वाले दल आश्वासन देते हैं। मतदाता उपलब्ध विचारों और वायदों में अपने सपनों वाली सरकार बनाने के लिए वोट देते हैं। मताधिकार मूल्यवान है। मताधिकारों की अंतर्राष्ट्रीय उद्घोषणा (1948) के द्वारा इसे संरक्षण दिया गया है।

सभी लोकतांत्रिक देशों में चुनाव के समय मुद्दा और विचार आधारित विमर्श चलते हैं। इसीलिए चुनाव महत्वपूर्ण लोकतंत्री उत्सव हैं। अमेरिकी संविधान में चुनाव तंत्र का उल्लेख नहीं है। अमेरिका में संघीय चुनाव कराने के लिए चुनाव नियम हैं। वे अमेरिकी कांग्रेस को चुनाव कराने की शक्ति देते हैं। अमेरिका में स्त्रियों को 1920 तक मताधिकार नहीं था। प्राचीन ग्रीक में मताधिकार केवल पुरुषों तक सीमित रहा है। ब्रिटेन में इसका धीरे-धीरे विकास हुआ। 1918 में महिलाओं को मताधिकार प्राप्त हुआ। भारत में 1950 के पहले से ही 21 वर्ष के ऊपर के सभी नागरिकों को मताधिकार था। बाद में मतदान की पात्रता की आयु 18 वर्ष की गई।

चुनाव राष्ट्रीय विमर्श के खूबसूरत अवसर होते हैं। बहस और विमर्श, वाद-विवाद और संवाद भारत की प्राचीन परम्परा है। प्राचीन काल में भी सभा और समितियां विमर्श का केन्द्र थीं। सम्प्रति पूरा देश सभा या संसद जैसा है। यहां प्रत्येक मतदाता अपनी इच्छा वाले देश और समाज के लिए सजग है।

राष्ट्रीय चिन्ता के सभी विषयों पर राष्ट्रीय विमर्श की आवश्यकता है। लेकिन वर्तमान चुनाव में बुनियादी सवालों पर राष्ट्रीय विमर्श का अभाव है। राष्ट्र सर्वोपरिता, राष्ट्रीय एकता और अखंडता, संविधान के प्रति निष्ठा व भारत की विश्व प्रतिष्ठा जैसे विषय आधारभूत हैं। यह विषय किसी न किसी रूप में हमेशा राष्ट्रीय विमर्श में रहते हैं। लेकिन वर्तमान चुनाव में पृष्ठभूमि में चले गए हैं। हम भारत के लोग संस्कृति के कारण दुनिया के प्राचीनतम राष्ट्र हैं। यहाँ विविधता और बहुलता सतह पर है। लेकिन इन सबको एक सूत्र में बांधे रखने वाली सांस्कृतिक एकता चुनावी विमर्श में नहीं है। राष्ट्र से भिन्न कोई भी अस्मिता अलगाववाद की प्रेरक होती है। साम्प्रदायिकता की चर्चा बहुधा होती रहती है। दल समूह एक दूसरे पर साम्प्रदायिक होने का आरोप लगाया करते हैं। लेकिन साम्प्रदायिकता की परिभाषा नदारद है। चुनावी विमर्श में साम्प्रदायिकता के निराकार और साकार खतरे पर विमर्श होना चाहिए था।

सेकुलर विदेशी विचार है। राजनीति में बहुधा इसका दुरुपयोग होता है। व्यावहारिक अर्थ में यह अल्पसंख्यकवाद का पर्याय है। छद्म सेकुलरवाद भी विमर्श में नहीं है। राष्ट्र के समग्र विकास में प्रशासनिक सेवाओं की मुख्य भूमिका है। वे सरकारी नीतियों का क्रियान्वयन करते हैं। प्रशासनिक सुधारों पर अनेक आयोग बन चुके हैं। लेकिन प्रशासन की गुणवत्ता प्रश्नवाचक रहती है। इसी तरह अर्थनीति सबसे महत्वपूर्ण विषय है। यह राष्ट्रीय समृद्धि की संवाहक होती है। महाभारत में नारद ने युधिष्ठिर से पूछा, ”क्या आप अर्थ चिन्तन करते हैं-चिन्तयसि अर्थम्?” अर्थनीति पर सतत् राष्ट्रीय विमर्श अनिवार्य है।

राष्ट्र का आत्मविश्वास होता है राष्ट्रीय विमर्श। भूमण्डलीय ताप में वृद्धि अंतर्राष्ट्रीय समस्या है लेकिन उसका सम्बंध भारत से भी है। भारत ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना दायित्व निभाया है। लेकिन भूमण्डलीय ताप चुनाव विमर्श से बाहर है। जल और जीवन पर्यायवाची हैं। जल प्रदूषण राष्ट्रीय स्वास्थ्य का सबसे बड़ा शत्रु है। एक रिपोर्ट के अनुसार देश के 400 से अधिक जिलों का जल गंभीर रूप से प्रदूषित हो चुका है। भूजल में शीशा, आर्सेनिक, फ्लोराइड और क्रोमियम जैसे जानलेवा रसायन पाए गए हैं। हर साल लगभग ढाई करोड़ लोग जल प्रदूषण की बीमारियों का शिकार होते हैं। बच्चे विकलांग होते हैं। औद्योगिक इकाइयों का विषैला पानी और कचरे भूगर्भ जल में मिलते हैं। बोतल बंद ब्रांडेड पानी और भी खतरनाक है। जल में उपस्थित रसायन बोतल की प्लास्टिक से रासायनिक क्रिया करते हैं और जल जानलेवा हो जाता है। वायु प्रदूषण से भारत भी पीड़ित है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भी धूल भरी वायु लोगों के श्वसन तंत्र पर आक्रामक रहती है। ऐसे चिन्ताजनक मुद्दे भी चुनावी विमर्श में नहीं हैं।

कृषि भारत की आजीविका है और किसानों के लिए व्यवसाय भी है। ऋषि और कृषि भारतीय श्रम साधना के शीर्ष पर रहे हैं। चिकित्सा महत्वपूर्ण विषय है। जन स्वास्थ्य और आनंद साथ-साथ रहते हैं। राष्ट्रीय पौरुष का सम्बंध जन स्वास्थ्य से है। स्वस्थ जीवन के लिए उत्तम परिस्थितियां पाना मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 21) है। रूग्ण लोग राष्ट्रीय उत्पादन में भागीदार नहीं हो सकते। उत्पादन की दृष्टि से प्रत्येक व्यक्ति राष्ट्र का सक्रिय मानव संसाधन है। अन्य योजनाएं टाली जा सकती हैं। लेकिन चिकित्सा और स्वास्थ्य नहीं। निजी अस्पताल महंगे हैं। राष्ट्रीय संवेदना का अभाव है। गरीबों को 5 लाख तक की चिकित्सा उपलब्ध कराने में ‘आयुष्मान भारत‘ योजना की प्रशंसा होती है। इस दिशा में काफी काम हुआ है। लेकिन जन स्वास्थ्य और कृषि भी राष्ट्रीय विमर्श में नहीं हैं।

नवयुवकों में इंजीनियरिंग सहित अनेक प्रतियोगी परीक्षाओं में असफल होने पर आत्महत्या की प्रवृत्ति दिखाई पड़ रही है। यह राष्ट्रीय चिन्ता का विषय है। ऐसे विषय सरकार के अलावा सामाजिक उत्तरदायित्व से सम्बंधित हैं। भारतीय इतिहास का विरुपण पिछले 10-15 वर्षों से चर्चा का विषय है। इस इतिहास में वास्तविक तथ्य नहीं हैं। आर्य आक्रमण का सिद्धांत झूठा है। दुर्भाग्य से यह चुनाव में कोई मुद्दा नहीं है। समान नागरिक संहिता संविधान का नीति निदेशक तत्व है। पीछे कई बरस से यह राष्ट्रीय चर्चा का विषय है। लेकिन चुनावी विमर्श का मुद्दा नहीं है।

सारा काम सरकारें ही नहीं कर सकती। सामाजिक दायित्व बोध भी जरूरी है। सड़क, पानी, बिजली आदि के सवालों पर अनेक गाँवों में मतदान के बहिष्कार की घटनाएं हुई हैं। इसलिए महत्वपूर्ण मुद्दों पर विमर्श जरूरी है। संवैधानिक लोकतंत्र में अनेक संस्थाएं हैं। भारतीय लोकतंत्र अति प्राचीन है। जब भारत में लोकतंत्र फल-फूल रहा था तब प्लेटो जैसे विद्वान लोकतंत्री मूल्यों पर चिन्तन कर रहे थे।

प्लेटो ने लिखा है कि, ‘‘जनतंत्र का अविर्भाव तब होता है जब गरीब विरोधियों से शक्तिशाली हो जाते हैं। जनतंत्र शासन का आकर्षक रूप है। उसमें विविधता और अव्यवस्था होती है। यह समान और असमान को समान भाव से एक तरह की समानता प्रदान करता है।‘‘ (दि डायलॉग्स ऑफ प्लेटो, खण्ड 2-रिपब्लिक) प्लेटो के अनुसार जनतंत्र में अव्यवस्था है। भारतीय लोकतंत्र के लिए भी अव्यवस्था की बात कही जा सकती है। इसके लिए भी महत्वपूर्ण मुद्दों पर राष्ट्रीय विमर्श जरूरी है। संविधान निर्माताओं ने उद्देशिका में ही सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय के साथ प्रतिबद्धता व्यक्त की है। व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता अखण्डता सुनिश्चित करने वाली, बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प व्यक्त किया है। चुनाव इन सब पर चर्चा और विमर्श का महत्वपूर्ण अवसर है।

(लेखक भाजपा के वरिष्ठ नेता एवँ उत्तर प्रदेश विधान सभा के पूर्व अध्यक्ष हैं)

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