Wednesday, December 25, 2024
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मुख्यमंत्री डॉ. यादव की पहलः अब उज्जैन से होगा विश्व का सूर्योदय!

उज्जैन: मकर संक्रांति पर खगोलीय दुनिया में उज्जैन से एक नया सूर्योदय होने की उम्मीद जगी है। देश की घडिय़ां सूर्योदय के अनुसार चलेंगी। प्रदेश सरकार ने इसके लिए पहल शुरू कर दी है। अभी देश में रात 12 बजे से समय बदलता है। इस सिलसिले में सीएम डॉ. मोहन यादव डोंगला वेधशाला में वैज्ञानिकों से चर्चा कर पहल करेंगे। वेधशाला में देश का पहला अद्भुत कालगणना मंदिर बनने जा रहा है, जहां सूरज की धूप बताएगी कि सूर्य किस राशि पर हैं। डोंगला वेधशाला में कालगणना मंदिर बनाने की तैयारी शुरू हो गई है। इसकी योजना भी सीएम डॉ. यादव देखेंगे। यह मंदिर अनूठा होगा। मध्य में कर्क राशि का मुख्य मंदिर होगा और चारों तरफ अन्य ग्यारह राशियों के गोलाकार मंदिर होंगे।

सूर्य की किरणें जिस राशि के मंदिर पर दिखाई देंगी, उसी राशि पर आकाश में सूर्य भ्रमण कर रहा होगा। इसे प्रत्यक्ष देखा जा सकेगा। इसके साथ ही सरकार यह प्रयास भी करेगी कि समय की गणना सूर्योदय के अनुसार वापस शुरू की जाए। पुराने जमाने में सूर्योदय के अनुसार ही कालगणना होती थी। प्रदेश सरकार इसके लिए भी संभावना टटोलेगी। सीएम डॉ. यादव विधानसभा में राज्यपाल के अभिभाषण के जवाब में कह चुके हैं कि समय निर्धारण के लिए ग्लोबल रेफरेंस के रूप में इस्तेमाल की जाने वाली प्राइम मेरिडियन को इंग्लैंड के ग्रीनविच से उज्जैन लाने के लिए सरकार काम करेगी। सरकार यह सिद्ध करेगी कि उज्जैन ही प्राइम मेरिडियन है और दुनिया के समय को सही करने पर जोर दिया जाएगा।

भारतीय मानक समय को अपनाकर रात को समय बदलने की परंपरा को खत्म करने की कवायद शासन स्तर पर शुरू हो चुकी है। फ्रांस, जर्मन आदि इसके लिए तैयार हैं। अमेरिका और चीन को छोड़कर अन्य देशों से स्वीकृति भी मिल चुकी है। खगोलशास्त्रियों के अनुसार उज्जैन की भौगोलिक स्थिति विशिष्ट है। यह नगरी पृथ्वी और आकाश की सापेक्षता में ठीक मध्य में स्थित है इसलिए इसे पूर्व से ‘ग्रीनविच’ के रूप में भी जाना जाता है।19वीं शताब्दी में भारतीय शहरों में विक्रमादित्य के समय से चले आ रहे स्थानीय समय को सूर्य के मुताबिक तय किया जाता था लेकिन ब्रिटिश काल में भारत में सबकुछ बदल गया। खगोलविद पंडित भरत तिवारी कहते हैं अंतर्राष्ट्रीय कांग्रेस को स्टैंडर्ड टाइम बदलने का अधिकार है। सूर्योदय के आधार पर होने वाली गणना ही सही होती है।

इसलिए सरकार कर रही प्रयास…

भारत के मध्य में स्थित होने के कारण उज्जैन को नाभिप्रदेश अथवा मणिपुर चक्र भी माना गया है।
प्राचीन सूर्य सिद्धांत, ब्रह्मस्फुट सिद्धांत, आर्यभट्ट, भास्कराचार्य आदि ने उज्जयिनी के मध्यमोदय को ही स्वीकारा था।
गणित और ज्योतिष के विद्वान वराहमिहिर का जन्म उज्जैन जिले के कायथा ग्राम में लगभग शक् संवत 427 में हुआ था।
प्राचीन भारत के वे एकमात्र ऐसे विद्वान थे जिन्होंने ज्योतिष की समस्त विधाओं पर लेखन कर ग्रंथों की रचना की थी।
स्कंदपुराण के अनुसार ‘कालचक्र प्रवर्तकों महाकाल: प्रतायन:।Ó इस प्रकार महाकालेश्वर को कालगणना का प्रवर्तक भी माना गया है।
प्राचीन भारत की समय गणना का केंद्रबिंदु होने के कारण ही काल के आराध्य महाकाल हैं, जो भारत के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
वराहपुराण में उज्जैन को शरीर का नाभि देश और महाकालेश्वर को अधिष्ठाता कहा गया है।
भारत में विक्रमादित्य के शासनकाल में संपूर्ण भारत का समय उज्जैन से तय होता था।
यह समय सूर्योदय से लेकर अगले दिन के सूर्योदय तक एक दिन-रात पर आधारित था।
ग्रीक, फारसी, अरबी और रोमन लोगों ने भारतीय कालगणना से प्रेरणा लेकर ही अपने अपने यहां के समय को जानने के लिए अपने तरीके की वेधशालाएं बनाई थीं।
रोमन कैलेंडर भी भारत के विक्रमादित्य कैलेंडर से ही प्रेरित था।
प्राइम मेरिडियन और इतिहास प्राइम मेरिडियन सार्वभौमिक रूप से निर्धारित शून्य देशांतर है।
एक काल्पनिक उत्तर/दक्षिण रेखा जो दुनिया को दो भागों में विभाजित करती है।
यह रेखा उत्तरी ध्रुव से शुरू होती है, ग्रीनविच, इंग्लैंड में रॉयल वेधशाला से होकर गुजरती है और दक्षिणी ध्रुव पर समाप्त होती है।
ग्रीनविच लाइन की स्थापना 1884 में वाशिंगटन डीसी में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय मेरिडियन सम्मेलन में की गई थी।
सम्मेलन के समय, प्रत्येक देश की अपनी देशांतर रेखा थी जिसे वे मेरिडियन मानते थे।
काफी बहस के बाद, इंग्लैंड के ग्रीनविच में रॉयल वेधशाला से गुजरने वाली मध्याह्न रेखा को चुना गया।

1999 में रात के आकाश में प्राइम मेरिडियन के स्थान को चिह्नित करने के लिए वेधशाला में एक लेजर स्थापित किया गया था। ग्रीनविच मीन टाइम (जीएमटी), एक ऐसी इकाई जिससे दुनिया के समय का आकलन किया जाता है।

19वीं सदी के दौरान इंग्लैंड के हर शहर का अपना समय होता था। कोई राष्ट्रीय मानक नहीं था, जिससे कई तरह की परेशानियाँ आती थीं।

1850 के बाद इंग्लैंड स्थित छोटे बड़े शहरों की सार्वजनिक घडिय़ों को जीएमटी के आधार पर तय किया गया और 1880 तक इसे पूरी तरह स्वीकृति मिल गई।

द शेफर्ड़ गेट क्लॉक दुनिया की पहली ऐसी घड़ी थी जिसने पहली बार जीएमटी को सार्वजनिक रूप से दिखाया था।

अंग्रेज़ों के शासनकाल में भारत के दो टाइम ज़ोन हुआ करता थे। पहला कोलकाता के आधार पर और दूसरा मुंबई के आधार पर। अंग्रेजों के जाने के बाद आईएसटी (इंडियन स्टैंडर्ड टाइम) बना। यानी एक देश का एक ही मानक समय।

जिस राशि में सूर्य होगा, वहीं पर धूप की किरणें दिखेंगी

महाकाल मीन टाइम की योजना डोंगला वेधशाला के प्रकल्प अधिकारी घनश्याम रत्नानी के अनुसार महाकाल मीन टाइम की स्थापना ही हमारा लक्ष्य है। उज्जैन पुराने समय में कालगणना का केंद्र रहा है। यहां से गुजरने वाली शून्य रेखा को पुन: मानकर सूर्योदय के आधार पर तिथि आदि की गणना की जा सकती है। पुराने समय में प्रबलता के आधार पर ग्रीनविच को चुन लिया गया था। अब अंतराष्ट्रीय स्तर पर प्रयास करना होंगे।

सन् 1985 में डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर -आधुनिक यंत्रों के विना – ग्राम डोंगला (30 किमी वास्तव में 12.9 किमी) तहसील महिदपुर जिला उज्जैन मध्य प्रदेश उस स्थान को दर्शाया, जहाँ कर्करेखा और स्थानीय रेखांश (जिससे पुरातन काल में भारतीय समय को निश्चित किया जाताथा) एक दूसरीको काटती हैं।
[अक्षवृत्त 23° 26’ 42.91”उ ]
[रेखांश 75°45’ 43.31”पू]
समुद्र सतह से ऊँचाई 515 मीटर

यह वही स्थान है जहाँ ग्रीष्मऋतु में अयन काल में 21 जून को सूर्य बिल्कुल सिर के ऊपर होता है यह वह स्थान है जहाँ दोपहर 12 बजे सूर्य की किरणें भूमि पर 90° का अंश करती हैं। और अपनी छाया नहीं पड़ती।

यहाँ एक बात की ओर ध्यान देना चाहिए कि सदियों पहले कर्करेखा उज्जैन [23°11’] से गुजरती थी। शायद इसीलिए उज्जैन में कर्क राजेश्वर का मंदिर बनाया गया था।.

परंतु पृथ्वी के झुकाव के कारण धीरे धीरे कर्करेखा उत्तर में जाती रही। और अभी ग्राम डोंगला तहसील महिदपूर, जिला उज्जैन, मध्यप्रदेश (Mahidpur District of Madhya Pradesh.) से गुजरती है।

समय निर्धारण में डोंगला ग्राम का महत्त्व-वर्तमान में ग्रिनिच रेखांश (0°रेखांश) को मूल रेखांश याने आंतरराष्ट्रीय मानक रेखांश मानकर सारी दुनिया के समय का निर्धारण किया जाता है।

प्रश्न यह है कि क्या ग्रिनिच को कोई खगोलशास्त्रीय दृष्टि से महत्त्व है जिसके कारण उसे आंतर्राष्ट्रीय मानक रेखांश माना गया ? क्रिस्ट के बाद शून्य रेखांश तो पॅरिस के लूव्र म्युझियम से जाता था। पॅरिस को भी क्या कोई खगोलशास्त्रीय दृष्टि से महत्त्व था? सिर्फ ब्रिटिश साम्राज्य की राजनीतिक प्रभुता के कारण ग्रिनिच को चुना गया था?

“दा व्हिन्सी कोड” के लेखक डॉन ब्राउन कहते हैं – “ग्रिनिच को मूल या मध्य रेखांश का स्थान देने से कई कई साल पहले पॅरिस के सेण्ट स्युलपीस चर्च में से आंतर्राष्ट्रीय मध्य मूल रेखांश जाता था।आंतर्राष्ट्रीय मध्य मूल रेखांश को दर्शानेवाली पीतल की मार्कर लाइन वहाँ अभी भी है। फिर ग्रिनिच ने पॅरिस का वह सन्मान १८८८ में छीन लिया। मूल गुलाबी रेखा अभीभी मौजूद है।“

पृथ्वीपर जीवन और दिनरात का बदलना सूर्य की किरणोंपर ही निर्धारित है। सूर्य की किरणों का ९०° पडना कर्करेखा और मकररेखा के बीच झूलता रहता है।कर्करेखा उत्तर में और मकररेखा दक्षिण में अन्तिम रेखाएँ हैं जहाँ सूर्यकी किरणें दोपहर १२ बजे जमीन से ९०°का कोण करते हुए पडती हैं, (NOTparallel, butperpendicular) जिसे अयन कहते हैं। वैसा खगोलशास्त्रीय कोई महत्त्व ग्रिनिच को नहीं है।

इस दृष्टि से डोंगला अधिक महत्वपूर्ण है कि कर्करेखा और स्थानीय रेखांश यहीं एक-दूसरी को छेदती हैं। इसी स्थान को भारतीय समय का मानक मान कर प्राचीन काल में समय निर्धारण होता था।

डोंगला मीन टाइम न कि ग्रिनिच मीन टाइम
डॉ. वाकणकर का सुझाव था कि प्राचीन भारत में खगोलशास्त्र के अध्ययन के लिए तथा वेदिक गणना के लिए कर्करेखा पर स्थित उज्जैन को आधार माना जाता था। अब डोंगला को दुनिया का शून्य रेखांश माना जावे तथा आंतर्राष्ट्रीय समय की गणना डोंगला मध्य मान कर किया जाए। (डोंगला मीन टाइम न कि ग्रिनिच मीन टाइम कहा जाए)

डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर वेधशाला आधुनिक रोबोटिक वेधशाला मध्यप्रदेश काउन्सिल ऑफ सायन्स तथा टेक्नॉलॉजी द्वारा डोंगला ग्राम में बनायी गयी है। वेधशाला के गुंबज का व्यास ५ मीटर है और जमीन से ऊँचाई १० मीटर है। छूँकि आसपास केल कृषिभूमि है और कहीं कृत्रीम प्रकास नहीं है, रात के समय आकाश का निरीक्षण करने के लिए यह स्थान आदर्श है।

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