1965 और 1971 की लड़ाई में पाकिस्तानी वायुसेना से लड़े फ्लाइट लेफ्टिनेंट अरशद सामी के पुत्र हैं अदनाम सामी। अदनान एक अर्से से भारत में वीसा की तिथि बढ़वाकर रह रहे हैं और पैसा बना रहे हैं। भारत के किसी गायक को पाकिस्तान सरकार अपने यहां आकर गाने का मौका नहीं देती
पहले एक सवाल। क्या कारगिल या उससे पहले 1965 या 1971 में पाकिस्तान के साथ हुई जंग के नायक के पुत्र या पुत्री को पाकिस्तान में 'सेलिब्रिटी' का दर्जा मिल सकता है ? जरा सोचिए। सोचने के बाद आप कहेंगे ह्य कतई नहीं।' जाहिर है,आप इस तरह की उम्मीद नहीं कर सकते कि पाकिस्तान के साथ हुई जंग के किसी भारतीय नायक को या उसकी संतान को पाकिस्तान में कोई सम्मानजनक स्थान मिलेगा। ये भी लगभग नामुमकिन है कि भारतीय सेना के किसी योद्घा का अस्वस्थ होने पर पाकिस्तान में इलाज हो। पर यह सब भारत में हुआ और हो रहा है। बरसों से हो रहा है।
अब असली मुद्घे पर आते हैं। फ्लाइट लेफ्टिनेंट अरशद सामी खान को पाकिस्तान अपने सबसे आदरणीय योद्घाओं की श्रेणी में रखता है। वे उन्हीं अदनान सामी के पिता थे, जो गीत-संगीत से ज्यादा घरेलू पचड़ों में फंसे रहते हैं। हाल ही में अदनान सामी को भारत छोड़ने के लिए भी कहा गया था। उनका भारत में प्रवास का वीजा समाप्त हो गया था। उसका नवीनीकरण नहीं हुआ था। बाद में उन्होंने अपील की तो मामला सुलझता नजर आ रहा है। यानी वे भारत में आगे भी रहते रहेंगे।
अब फिर फ्लाइट लेफ्टिनेंट अरशद सामी खान पर लौटते हैं। उनका खास तौर पर उल्लेख पाकिस्तानी वायुसेना के संग्रहालय और वेबसाइट में किया गया है। उनके चित्र के साथ उनकी बहादुरी का बखान करते हुए कहा गया है, ह्यफ्लाइट लेफ्टिनेंट अरशद सामी खान ने भारत के खिलाफ 1965 की जंग में शत्रु (भारत) के एक लड़ाकू विमान,15 टैंकों और 12 वाहनों को नष्ट किया। वे रणभूमि में विपरीत हालतों के बावजूद शत्रु की सेना का बहादुरी से मुकाबला करते रहे। फ्लाइट लेफ्टिनेंट अरशद सामी खान को उनकी बहादुरी के लिए सितारा-ए-जुर्रत से नवाजा जाता है।ह्ण स्वाभाविक रूप से फ्लाइट लेफ्टिनेंट अरशद सामी खान के संबंध में किए गए इस दावे की जांच की जरूरत नहीं है। सभी देश अपने योद्घाओं के रणभूमि के कारनामों को महिमामंडित करते हैं। पाकिस्तान तो इस तरह के दावों को करने में बहुत आगे रहा है।
फ्लाइट लेफ्टिनेंट अरशद सामी खान वायुसेना से रिटायर होने के बाद भी पाकिस्तान के सार्वजनिक जीवन में सक्रिय रहे। डेनमार्क और नार्वे में राजदूत भी रहे। वे पाकिस्तान के राष्ट्रपतियों क्रमश: गुलाम इसहाक खान, फारुख लेगारी और प्रधानमंत्रियों, बेनजीर भुट्टो,गुलाम मुस्तफा जोतोई और नवाज शरीफ के निजी स्टाफ में भी रहे। यानी पाकिस्तान में उनका एक अहम रुतबा रहा। उन्हें 14 अगस्त, 2012 में मरणोपरांत सितारा-ए-इम्तियाज से भी सम्मानित किया गया। बहरहाल, फ्लाइट लेफ्टिनेंट अरशद सामी खान को अपने मुल्क में जितना भी सम्मान मिले, इससे हमें क्या फर्क पड़ता है।
पर आप हैरान होंगे कि उसी फ्लाइट लेफ्टिनेंट सामी की किताब का विमोचन राजधानी नई दिल्ली में होता है। ये बात है 28 फरवरी,2008 की। पुस्तक का नाम था- थ्री प्रेसिडेंट एंड… लाइफ पवर एंड पलिटिक्स।
उस विमोचन के मौके पर पूर्व प्रधानमंत्री आई.के. गुजराल और पंजाब के मुख्यमंत्री रहे अमरिंदर सिंह समेत राजधानी के सेमिनार सर्किट के तमाम नामी-गिरामी लोग मौजूद थे। गुजराल ने किताब का विमोचन किया। उन्होंने भारत-पाकिस्तान संबंधों पर अपने ख्यालात रखे। सामी अपनी किताब पर बोले। कुछ लोगों ने भारत-पाक संबंधों पर सवाल पूछे। उन्होंने अमन और बातचीत की वकालत की। पर, वे 1965 की जंग से जुड़े किसी भी मसले पर बात करने के लिए तैयार नहीं थे। वे अंग्रेजी,उर्दू और पंजाबी में गुफ्तुगू कर रहे थे। वहां पर ही पता चला कि सामी कौन हैं और अदनान सामी का उनसे क्या संबंध है। अदनान सामी उस कार्यक्रम में मौजूद नहीं थे।
उसके बाद एक रोज खबर आई कि फ्लाइट लेफ्टिनेंट अरशद सामी खान का मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में निधन हो गया। वे केंसर से पीडि़त थे। पाकिस्तान और कुछ और देशों में इलाज चला था। उसके बाद अदनान सामी उन्हें इलाज के लिए मुंबई ले आए। तब ये बात काफी दिनों तक दिल के किसी कोने में चलती रही कि क्या हमारा दिल इतना विशाल है, कि हम उसे भी अपना अतिथि बनाने-मानने के लिए तैयार हो जाते हैं, जिसने हमारे खिलाफ जंग लड़ी हो? क्या 1971 की जंग के भारतीय नायक सैम मानेकशाह को पाकिस्तान में अपनी पुस्तक विमोचित करने का मौका मिलता? क्या उनके या उनके जैसे किसी भारतीय योद्घा की संतान को पाकिस्तान में वही दर्जा मिल सकता था,जो हमने अदनान सामी को अपने यहां दिया है?
फ्लाइट लेफ्टिनेंट अरशद सामी खान की पुस्तक के विमोचन से लेकर उनका भारत में अपना इलाज करवाना और भारत की सरजमीं पर अंतिम सांसें लेना इस बात की गवाही हैं कि हम अलग हैं। क्या ये कोई मामूली बात है। इसलिए हम चाहें तो अपने इन्क्रेडिबल इंडिया का नागरिक होने का दावा कर सकते हैं।
पिछले दिनों जब पाकिस्तान के गायक अदनान सामी के भारत छोड़ने संबंधी खबरें आईं तो उनके अब्बा का ख्याल बरबस ही तैर आ गया। उस कार्यक्रम का सारा माहौल भी दिमाग में फिर से जीवंत होने लगा। तब लगा कि जिस शख्स को भारत के खिलाफ बहादुरी से जंग लड़ने पर सम्मानित किया गया हो, उसके पुत्र को देश छोड़ने के लिए कहना कितना उचित है। वह तो करीब डेढ़ दशक से भारत में रह रहा है। यहां पर गीत-संगीत की दुनिया में अपने लिए एक मुकाम बना भी चुका है। मतलब यह कि अदनान सामी को तो अब हम अपना ही मानते हैं।
सबसे आश्चर्य और क्षोभ इस बात का है कि जो शिव सेना और मनसे केंद्रीय सरकार की नौकरी के लिए आए दिन मुंबई से बाहर से आने वाले गरीब उत्तर भारतीयों और बिहारी छात्रों पर डंडेलेकर कूद पड़ती है वही शिव सेना और मनसे अदनान सामी को लेकर रहस्यमीय रूप से चुप बैठी है, और अदनान सामी भीरतीय टीवी चैनलो से लेकर देश भर में जगह-जगह कार्यक्रम देकर करोड़ों रूपये की कमाई कर रहा है। अदनान सामी ने लोखंडवाला की जिस बिल्डिंग में पूरा फ्लौर खरीद रखा है उसकी कीमत ही 100 करोड़ से कम नहीं होगी और उसका हर महीना का मैंटेनेंस ही 5 लाख रु. होता है। तो सवाल है कि अखिर अदनान सामी के हाथ ऐसा कौनसा खजाना लगा है कि उसने कुछ ही सालों में हमारे देश में करोड़ों की जायदाद बना ली और लाखों रुपये महीना सोसायट को मैंटेनेंस के नाम से देता है।
साभारः साप्ताहिक पाञ्जन्य से