पाकिस्तान में सत्ताधारी पार्टी मुस्लिम लीग (नवाज़) के प्रमुख नवाज़ शरीफ के दामाद और संसद सदस्य कैप्टन (रिटायर्ड) मोहम्मद सफ़दर ने सेना में अहमदिया मुसलमानों की भर्ती पर पाबंदी लगाने की मांग की है.
उन्होंने इसके लिए संसद में एक प्रस्ताव लाने की घोषणा की है. मंगलवार को संसद को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, “पाकिस्तान में सेना समेत किसी भी अहम विभाग में उच्च पदों पर बैठे अहमदिया समुदाय के लोग पाकिस्तान की सुरक्षा के लिए ख़तरा हैं. इसलिए उन्हें फ़ौरान पदों से हटाया जाना चाहिए.” ख्याल रहे कि पाकिस्तान के संविधान के अनुसार अहमदिया लोगों को मुसलमान नहीं माना जाता.
मुसलमानों का विश्वास है कि पैगंबर मोहम्मद ख़ुदा के भेजे हुए आख़िरी पैगंबर (ख़ुदा के आखिरी दूत) हैं. और उनकी मौत के साथ ही ये सिलसिला खत्म हो गया. जबकि पाकिस्तान में मुसलमानों के मुताबिक अहमदी समुदाय के लोग इस बात को नहीं मानते कि पैगंबर मोहम्मद ख़ुदा के भेजे हुए आख़िरी पैगंबर थे. कैप्टन (रिटायर्ड) मोहम्मद सफ़दर ने पाकिस्तान के कायद-ए-आज़म यूनिवर्सिटी के फिज़िक्स विभाग का नाम बदलने की भी मांग की है. कायद-ए-आज़म यूनिवर्सिटी के फिज़िक्स विभाग का नाम नोबेल विजेता वैज्ञानिक डॉक्टर अब्दुस्सलाम के नाम पर रखा गया है. कैप्टन (रिटायर्ड) मोहम्मद सफ़दर ने ऐसा न होने की सूरत में आंदोलन करने की भी धमकी दी है.
उनकी मांगों की फेहरिस्त यहीं तक नहीं रुकी. उन्होंने राजनीतिक पार्टियों से अपील की कि उम्मीदवारों को टिकट बांटते वक्त भी इस बात का ध्यान रखें. इस पर अमहदिया समुदाय के प्रवक्ता सलीमुद्दीन ने बयान जारी कर कहा “कैप्टन सफ़दर धर्म की आड़ में उनपर आरोप लगा रहे हैं जिन्होंने देश के लिए बेशुमार कुर्बानियां दी हैं और देश की तरक्की में अहम भूमिका निभाई है.” बीबीसी से बातचीत करते हुए सलीमुद्दीन ने कहा कि कैप्टन सफ़दर पर ख़ुद ही भ्रष्टचार के कई आरोप हैं और कुछ ही दिनों में उन पर एफआईआर दर्ज की जाएगी. उन्होंने कैप्टन सफ़दर के संसद में दिए भाषण को पाकिस्तान के सरकारी टीवी पर प्रसारित किए जाने पर भी अफसोस जताया.
साभार-http://www.bbc.com/hindi/ से