राजपूतानों की शान वीरांगना किरण देवी अकबर की छाती पर कटार लेकर चढ़ गई थी और अकबर ने किरण देवी से प्राणों की भीख मांगी थी। यह कहानी आज भी राजस्थान के लोक गायक और बुजुर्ग बड़े अभिमान से सुनाते हैं।
अकबर नौरोज मेला आयोजित करता था। अकबर इस मेले में वेश बदलकर आता और यहां सुंदर महिलाओं की तलाश करता था। एक दिन उसकी नजर मेले में घूम रही “किरण देवी” पर पड़ी।
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वह किसी भी कीमत पर उसे हासिल करना चाहता था। उसने अपने गुप्तचरों से उसका पता मालूम करने को कहा। गुप्तचरों ने बताया कि वह मेवाड़ के महाराणा प्रताप सिंह के छोटे भाई शक्ति सिंह की बेटी है। उसका विवाह बीकानेर के पृथ्वीराज राठौड़ से हुआ है।
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अकबर ने पृथ्वीराज को किसी युद्ध के बहाने बाहर भेज दिया और किरण देवी को एक सेविका के जरिए संदेश भेजा कि बादशाह ने आपको बुलाया है। किरण देवी ने बादशाह के हुक्म का पालन किया और वह महल में गई।
वहां जाकर उसे अकबर के इरादों का पता चला। यह देखकर जिस कालीन पर अकबर खड़ा था, किरण देवी ने वह खींचा और बादशाह धराशायी हो गया। किरण देवी हथियार चलाने और आत्मरक्षा में भी पारंगत थी। वह अकबर की छाती पर बैठ गई और कटारी निकालकर उसकी गर्दन पर रखते हुए बोली.., “बोलो बादशाह, तुम्हारी आखिरी इच्छा क्या है??”
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बाजी इतनी जल्दी पलट जाएगी, इसका अंदाजा अकबर को भी नहीं था। वह किरण से माफी मांगने लगा, बोला.., “किरण देवी, तुम यकीनन दुर्गा हो। मुझे माफ करो। अगर मैं मर गया तो देश में कई समस्याएं हो जाएंगी। मैं कसम खाकर कहता हूं कि अब कभी नौरोज मेला नहीं लगाऊंगा और न कभी किसी महिला के बारे में ऐसी सोच रखूंगा।”
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किरण ने उसे माफ कर दिया और चेतावनी देकर वापस अपने महल में आ गई। अकबर ने फिर कभी नौरोज मेला नहीं लगाया।
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बीकानेर में ये “पेंटिंग” संग्रहालय में लगी है। और लिखा है –
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“किरण सिहणीं सी चढ़ी उर पर खींच कटार
भीख माँगता प्राण की अकबर हाथ पसार ”
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