एमसीयू में गुरु पूर्णिमा प्रसंग पर फेसबुक लाइव के माध्यम से विद्यार्थियों के साथ कुलपति संवाद
भोपाल। | माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. संजय द्विवेदी ने कहा कि मीडिया की अवधारणा पश्चिमी हैं और नकारात्मकता पर कड़ी हुई है| इसे सकारात्मक भी होना चाहिए| मीडिया सिर्फ ख़बरों के लिए नहीं है, यह समाज और राष्ट्र के लिए भी है| आज मीडिया के भारतीयकरण किये जाने की आवश्यकता है, जिसमें देश की समस्यों पर सवालों के साथ समाधान हों, बौद्धिक विमर्श हो और देश की चिंता भी हो|
प्रो. द्विवेदी आज गुरु पूर्णिमा प्रसंग पर फेसबुक लाइव के माध्यम से विद्यार्थियों से संवाद कर रहे थे| उन्होंने कहा कि जहाँ हर विधा में मूल्यों की आवश्यकता है। मीडिया भी मूल्यानुगत होना चाहिए|
श्री द्विवेदी ने विद्यार्थियों से आह्वान किया कि वे पढ़ाई के साथ किसी की क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल करें। सूचना की व्याख्या, विश्लेषण करना खबरों के बीच की तलाश करना। मीडिया की पढाई सिर्फ डिग्री लेने के लिए नहीं है, सिर्फ नौकरी करने की यात्रा नहीं है| समाज के दुःख दर्द, आर्तनाद में समाज को संबल देने का काम भी पत्रकारिता का हैं| यह पत्रकारों का काम सिर्फ खबरें देना नहीं है| सत्यान्वेषण करना भी है| उन्होंने कहा कि कोरोना काल में हमें निराश होने की आवश्यकता नहीं है| भारत में 130 करोड़ लोगों की एक व्यापक जनशक्ति हमारे पास है, और हम बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था हैं| हम फिर खड़े होंगे और परम वैभव को प्राप्त करेंगे| निराश न हो, हालात थोड़े समय के लिए हैं, यह संकट सुधर जाएगा।
उन्होंने कहा कि सुचना तकनीक के बढ़ते प्रभाव् से अच्छे और बुरे दोनों तरह के परिणाम सामने आ रहे है। सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों को भड़काने भ्रमित करने का काम भी शुरू हो गया है। तथ्यहीन सामग्री की भरमार हो गई है, बिना बात के भी बतंगड़ खड़ा किया जा रहा है, फेक न्यूज़ का उद्योग पल रहा है। परंपरागत मीडिया में भी खबरें प्लांट होती थी, लेकिन उनकी बहुतायत इतनी नहीं थी।
फेसबुक और यूट्यूब जो कोई कंटेंट का निर्माण नहीं करते, बड़े मीडिया हाउस से ज्यादा कमा रहे हैं। प्लेटफार्म प्रदान कर के सर्वाधिक पैसे कमा रहा है। गूगल फेसबुक ट्विटर जैसे संगठन आज बड़े हाउस के लिए चुनौती की तरह है। लोगों के कंटेंट के दम पर बाजार में छाया में बड़ी कमाई कर रहे हैं। सूचनाओं के साथ जो मिलावट हो रही है उसने पत्रकारिता की पवित्रता पर ग्रहण लगा दिया है। एजेंडा के आधार पर चलने वाली पत्रकारिता के बजाय हमें मूल्य और तथ्यों पर आधारित पत्रकारिता के लिए मॉडल खड़ा करना पड़ेगा।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री माखनलाल चतुर्वेदी के योगदान को याद करते हुए श्री द्विवेदी ने कहा कि आजादी के आन्दोलन में पत्रकारिता के क्षेत्र में दादा की अभूतपूर्व भूमिका थी। उनके समाचार पत्र ‘कर्मवीर’ की धमक आज भी महसूस की जाती है। वे महात्मा गांधी के अनन्य शिष्यों में से एक थे। और उन्हें हिंदी भाषा के प्रति अद्भुत प्रेम था। वर्ष 1967 में राजभाषा कानून को लेकर उन्होंने नाराजगी व्यक्त की और पद्मश्री अलंकरण लौटा दिया। वे किसी भी तरह के समझौते के खिलाफ थे। उनकी प्रेस पर 63 बार छापे पड़े और वे 12 बार जेल गए| उन्होंने खुद अपने समाचार पत्र की रीति नीति तय की और उन सिद्धांतों का हमेशा पालन किया। 1927 में भरतपुर के संपादक सम्मेलन में ही उन्होंने पत्रकारिता के विद्यापीठ की आवश्यकता जताई|