आज देशभर में ईद उल अजहा यानी बकरीद का त्योहार मनाया जा रहा है। मगर इस बीच बंगाल में एक मुस्लिम शख्स ऐसा भी है, जो ईद पर जानवरों की कुर्बानी को बंद करने को लेकर प्रदर्शन कर रहा है। दरअसल, कोलकाता के 33 वर्षीय अल्ताब हुसैन ने ईद पर जानवरों की कुर्बानी के विरोध में मंगलवार की रात से 72 घंटे का रोजा रखा है। बताया जा रहा है कि बकरीद के अवसर पर जब अल्ताब के भाई एक बकरे को कुर्बानी देने के लिए घर ले आए तो वह दुखी हो गए।
कुर्बानी का विरोध करने वाले अल्ताब हुसैन का कहना है कि पशुओं के प्रति काफी क्रूरता है और कोई भी इसका विरोध नहीं कर रहा है। मैंने लोगों को यह एहसास दिलाने के लिए कि पशु बलि जरूरी नहीं है, 72 घंटे का उपवास यानी रोजा रखने का फैसला किया है। हुसैन ने 2014 में पशु अधिकारों के लिए प्रचार करना शुरू किया, जब उन्होंने डेयरी उद्योग में पशुओं के प्रति क्रुरता पर एक वीडियो देखा। उसके बाद से ही उन्होंने मांस खाना छोड़ दिया और शाकाहारी बन गए। इतना ही नहीं, उन्होंने चमड़े के उत्पादों का उपयोग करना भी बंद कर दिया।
उन्होंने कहा कि मैं भी पशुओं की कुर्बानी में भाग लेता था। लेकिन जब मैंने एक वीडियो में देखा कि कैसे गायों को पीठ पर लाठी से मारा जाता है, जिस तरह से उन्हें दूध देने के लिए इंजेक्शन दिए जाते हैं, कैसे गायों से बछड़ों को अलग करके बूचड़खाने भेजा जाता है, मुझे लगा कि मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए। यह डेयरी उद्योग से शुरू हुआ और पशु बलि के मुद्दे पर चला गया। मैं मांस, मछली, शहद या चमड़े के किसी भी उत्पादों का उपयोग नहीं करता।
तीन साल पहले भी हुसैन के भाई घर में ईद के मौके पर कुर्बानी देने के लिए जानवर लाए थे। तब उन्होंने विरोध किया था और किसी तरह वह उस साल जानवर को बचाने में सफल हो पाए थे। हालांकि, उनका परिवार हुसैन का समर्थन नहीं करता और वह मानते हैं कि ईद पर कुर्बानी जरूरी है। हुसैन को जानवरों के प्रति प्रेम दिखाने की सजा यह हुई कि उन्हें धमकियां मिलने लगीं। हुसैन का कहना है कि जब से उन्होंने पशुओं के खिलाफ हो रहे क्रुरता पर बोलना शुरू किया, उन्हें सोल मीडिया पर धमकियां मिलने लगीं। हालांकि, कई लोगों ने उनका समर्थन भी किया है।