गूगल ने मशहूर भारतीय चित्रकार अमृता शेरगिल की 103वीं जयंती निराले अंदाज़ में मनाई। इस खास दिन को यादगार बनाने के लिए गूगल ने तीन महिलाओं की एक साधारण सी दिखने वाली तस्वीर को डूडल के रूप में पेश किया है। आज भी अमृता शेरगिल को भारत की श्रेष्ठतम महिला चित्रकार के रूप में देखा जाता है।
स्मरणीय है कि अमृता शेरगिल की गणना एक असाधारण प्रतिभाशाली कलाकार के रूप में की जाती है। पेरिस में लगने वाली ग्रैंड सेल में एक एसोसिएट के रूप में चुनी गईं वे न केवल एक युवा कलाकार थीं बल्कि एकमात्र एशियाई कलाकार भी थीं। उनके चित्र पाश्चात्य चित्रकला पद्धति की नायाब मिसालों की मानिंद हैं। मनोभावों की गहराई और रंगबोध की ऊंचाई उनके चित्रों में साथ-साथ महसूस जा सकती हैं।
गौतलब है कि अमृता के भीतर के चित्रकार को उनकी माँ ने बहुत जल्द ताड़ लिया था। उन्होंने अमृता को भरपूर प्रोत्साहित किया। यही कारण है कि अमृता को दुनिया के कई महान चित्रकारों का मार्गदर्शन मिल सका। वे यूरोप में रहीं किन्तु भारत लौटने के बाद ही उनकी प्रतिभा को नई पहचान मिली। उन्होंने तय किया कि अपनी पैनी नज़र और अपने हुनर से वह भारतीय जीवन के विविध रंगों की उभारेंगी फिर क्या, उन्हें कामयाबी मिलती गई। यह अकस्मात् नहीं है कि भारत सरकार में उनके चित्रों को ‘राष्ट्रीय कला संग्रह’ के रूप में मान्यता दी है। उनके अधिकतर चित्र नई दिल्ली की ‘राष्ट्रीय आधुनिक कलादीर्घा’ में रखे पूरी गरिमा के साथ गए हैं।
बहरहाल हम बात कर रहे थे गूगल की। दिवसों, पर्वों और महत्वपूर्ण अवसरों को लोगों के दिलोदिमाग में उतारने के लाज़वाब जुनून के चलते एक बार फिर इस मशहूर सर्च इंजन ने कमाल कर दिया। गूगल ने अपने होमपेज पर चित्रकार अमृता शेरगिल का शानदार डूडल बनाया। सबसे खास बात तो यह है कि यह होमपेज सिर्फ भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों में देखा जा सका। जैसा कि पहले ही कहा गया कि आज अमृता शेरगिल इस दुनिया में न होते हुए भी देश के बड़े संग्रहालयों में अपनी मौजूदगी जता रही हैं। 30 जनवरी 1913 को बुडापेस्ट (हंगरी) में जन्मीं अमृता के पिता उमराव सिंह शेरगिल सिख और मां मेरी एंटोनी गोट्समन हंगरी मूल की यहूदी थीं।
अमृता के पिता संस्कृत-फारसी के विद्वान व नौकरशाह और माता एक मशहूर गायिका थीं। अमृता बचपन से ही कैनवास पर छोटे छोटे चित्र उकेरनी लगी थी। इसके बाद वह अपने माता पिता के साथ 1921 में शिमला आई लेकिन फिर वह मां के साथ इटली गई, लेकिन 1934 में फाइनली वह भारत लौटीं। इसके बाद यहां पर उनकी चित्रकारी का सफर काफी तेजी से चल पड़ा। 1935 शिमला फाइन आर्ट सोसायटी की तरफ़ से सम्मान, 1940 में बॉम्बे आर्ट सोसायटी की तरफ़ से पारितोषिक से नवाजी गईं। इसके अलावा उन्हें कई अहम अवार्ड मिले।
28 वर्ष की उम्र में अचानक से बीमार होने के बाद इस दुनिया को अलविदा कहने वाली अमृता ने इस दुनिया को काफी खूबसूरत चित्रकारी दी। अमृता शेरगिल ने कैनवास पर भारत की एक बड़ी ही खूबसूरत तस्वीर को अपनी कला के बल पर उकेरा। भारतीय ग्रामीण महिलाओं को चित्रित करने के साथ भारतीय नारी की वास्तविक स्थिति को उकेरना उनकी चित्रकारी की एक मिसाल है। हंगरी में जन्म लेने के बावजूद यह सचमुच बड़ी बात है कि उनकी चित्रकारी में भारतीय संस्कृति और उसकी आत्मा साफ झलक मिलती है।
वैश्विक सर्च इंजन गूगल डूडल के जरिए भारतीय चित्रकार अमृता शेरगिल की 103वीं जयंती मनाने का मौका वास्तव में उम्दा है। याद रहे कि उनकी कला की विरासत को ‘बंगाल पुनर्जागरण’ के दौरान हुई उपलब्धियों के समकक्ष रखा जाता है। इतना ही नहीं, उन्हें भारत का सबसे महंगा महिला चित्रकार भी माना जाता है। 20वीं सदी की इस प्रतिभावान चित्रकार को भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण ने सन् 1976 और 1979 में भारत के नौ सर्वश्रेष्ठ कलाकारों की फेहरिस्त में शामिल किया था।
अमृता बचपन से ही कैनवास पर छोटे छोटे चित्र उकेरनी लगी थी। लाहौर में रहते हुए अमृता शेरगिल ने 5 दिसंबर 1941 को दुनिया को अलविदा कह दिया था, लेकिन अपनी चित्रकला की अनंत छवियों के साथ वे आज भी कला रसिक हृदयों की मल्लिका बनी हुई हैं।
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लेखक राजनांदगांव में प्रोफेसर हैं और समसामयिक विषयों पर लिखते हैं।
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