राजस्थान में बूंदी के निवासी ओम प्रकाश शर्मा ‘ कुक्की’ ने पुरातत्व के क्षेत्र में अनेक स्थानों से पुरातत्व चिन्हों को खोज निकाला है तो एक बार मैं इनके घर पहुंच गया। छोटा सा साफ सुथरा दो कमरों का घर था। एक कमरा जो शयन कक्ष भी था रात में वही दिन में अथिति कक्ष भी बन जाता था। याद है आज तक, चाय पीते हुए इन्होंने अपनी पुरातत्व खोजों और उपलब्धियों के बारे में बताया था। अचानक उठ खड़े हुए और मेरा हाथ पकड़ कर अपने छोटे से आंगन में ले गए। वहां मूंज की एक चारपाई बिछी थी। इन्होंने ऊपर ढकी एक चादर को हटाया तो पुरातत्व की अनेक निशानियों को देख आश्चर्य के साथ मेरी आंखें खुली की खुली रह गई। कहने लगे क्या करू सर घर छोटा है, इन्हें कहां रखूं, बस यह चारपाई ही मेरा संग्रहालय है।
इन्होंने मुझे अनेक सामानों के ऐतिहासिक और पुरातत्व महत्व के बारे में बताया। पुनः कक्ष में आ कर बैठ गए और समाचार पत्रों, जर्नल्स, किताबों में छपी उपलब्धियों को इस प्रकार दिखाया जैसे प्रमाण दे रहे हो अपने कार्यों का। कहते हैं जब भी कोई पुरानी वस्तु मिलती है ले कर पुरातत्व विभाग के विशेषज्ञों के पास चला जाता हूं और उन्हें दिखाता हूं। कुछ चिन्ह तो ऐसे खोजे हैं कि वे भी देख कर दंग रह जाते थे। उनका परीक्षण कर उस पर पुरातत्व महत्व का होने होने की मोहर लगा देते हैं। शनिवार को आज जब इनकी याद आई तो संपर्क साधा और जो कुछ इन्होंने अपनी खोजों के बारे में बताया वह किसी आश्चर्य से कम नहीं है। साधारण पढ़ा लिखा व्यक्ति जिसे पुरातत्व की कोई तकनीकी जानकारी भी नहीं है आज काम करते – करते, अपने ज्ञान की वृद्धि कर किसी भी विशेषज्ञ से कम नहीं है। जब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने भी इनकी खोजों को माना तो ये राजस्थान में विख्यात पुरातत्वविद कहे जाने लगे। देश और राजस्थान के पुरातत्व विभाग के रिकार्ड में दर्ज इनकी खोजों को देखा जा सकता है।
इनकी पुरातत्व खोज की यात्रा आज से करीब 58 वर्ष पूर्व उस समय से शुरू होती है जब ये कक्षा चार में पढ़ते थे और इन्हें उस समय मोरड़ी की छतरी पर तांबे के दो प्राचीन सिक्के मिले थे। इसके बाद सन् 1978 से 1988 तक विभिन्न स्थानों से प्राचीन सिक्कों एवं रंगीन पत्थरों की खोज करते रहे। बात 1980 की है जब इन्हें भीमलत वन क्षेत्र में एक मुखी शिव लिंग जिसे गुप्त कालीन माना गया की खोज की और इनका कहना है कि यह हाड़ोती में सबसे प्राचीन शिव लिंग है।
कुक्की बताते हैं सन् 1988 में राष्ट्रीय संग्रहालय दिल्ली में जब प्रथम बार उनके द्वारा एकत्र किये लगभग 200 सिक्कों की जांच एवं उनका प्रामाणिकरण किया गया, वहीं से पुरातत्व क्षेत्र में रूची और उत्साह दुगुनित हो गया। बूंदी के नमना गांव में 4 दिसंबर 1993 को ताम्र उपकरणों एवं टेराकोटा ( मृदा ) खिलौनों , लाल माले, पालिश दार मृद भाड़ मिले। इन वस्तुओं का भारतीय पुरातत्व सवेक्षण विभाग जनपथ, नई दिल्ली में डी. जे. कार्यालय से प्रामाणिकरण करवाया। ज्ञात हुआ की ये वस्तुएं ताम पाषण कालीन सभ्यता की हैं जो हड़प्पा एवं मोहन जोदडों से भी प्राचीन हैं। यह इनकी महत्वपूर्ण खोज सिद्ध हुई।
अक्टूबर 1997 में इन्होंने रामेश्वर महादेव के झरने के उपर पहाड़ी में प्रथम बार शैल -चित्रों की प्रथम खोज की और इसके बाद 12 जून 1998 में गरदडा ग्राम के शैल-चित्रों की खोज की। विश्व की सबसे लम्बी एवं बड़ी शैल चित्र जो रेवा, छाजा, मांगली नदी के दांए एवं बांए कगारों में है खोज निकाले। यह शैल चित्र श्रृखंला, बिजोलियां के पठारो से लेकर बूंदी जिले के बाकी गांव तक है इसकी लम्बाई 35 से 40 किलोमीटर की है, और अब तक विश्व की सबसे लंबी शैल-चित्र श्रृखंला है। इनका दावा है कि इन्होंने शैल – चित्रों की 102 साईट्स खोजी हैं जो भारत में सर्वाधिक हैं।
ये बताते हैं अश्यूलिन-लाखो वर्ष प्राचीन प्रस्तर उपकरण की लगभग 50 साईटस, जहां, हैंड्स एक्स, स्क्रेपर चोपर क्लिवर एवं कोर फ्लेक मिले हैं खोज की है। मिडिल पिल्मो लिथिम (स्टोन टूल्स) 6.0,000 हजार वर्ष से 1,50,000 वर्ष पूर्व की दर्जनों साइट्स खोजी हैं। मेसोलिथिम एवं माइसो लिथिम टूल्स (प्रस्तर उपकरण तीन हजार वर्ष से 20,000 वर्ष पूर्व साइटस का भी पता लगाया है।
अपनी अन्य खोजों के बारे में बताते हैं ,शुतुर मुर्ग के अण्डो के छिलके की एक दर्जन साईटस चम्बल, मेज, मांगली एवं घोड़ा पछाड़ नदियों के किनारे (रिवाइंस) में 20 हजार से 60,000 वर्ष प्राचीन हैं। बूंदी, भीलवाड़ा और टोक आदि जिलों के करीब 400 स्थानों से सिक्के, मणके, टेराकोटा ,शैल बैंगल्स, पोट्री इत्यादी मिलते हैं। पाली, सहषपुर, पलुका लेन, मसोली, खजूरी, जीवन देवरा, सीता का कुंड, भीमलत आदि क्षेत्रों से पांचवी शताब्दी से तेरहवीं शताब्दी से प्राचीन मंदिरों का भी पता लगाया है। पाली गांव में 2 एक मुखी शिवलिंग मिले है। मदिर निमार्ण करने की 9-10वीं शताब्दी की स्टोन वर्क शाप, राज्य में पहली एवं देश में इसरे नम्बर की है, यहां लेंटल मूर्तिया, पिल्लर एवं देवी के सैंकड़ों निशान चट्टानों में आज भी दिखाई देती है । ए. एस. आई. दिल्ली की टीम ने, यहां आकर निरीक्षण कर पुष्टी की है, अतंयत महत्व पूर्ण साइटस है।
इन्होंने देश में पहली बार भी कुष्ण, बलराम, प्रद्युमन, अनिरुद्ध एवं सांब के चित्र गुफाओं में खोजे हैं, जो मौर्य कालीन है, अर्थात 300 बी . सी. का। एएसआई की टीम ने अवलोकन कर पुष्टी की है और जर्नल में इनके नाम से प्रकाशित किया है।
बूंदी, भीलवाड़ा, टोंक जिलों में रॉक आर्ट्स इन्ग्रेविंग बरियलस, स्टोंन टूल्स की खोज भी की है । इन्होंने मेगा लॉचिंग, मेनहिर, कप मार्म्स, डोलमेन की 2 दर्जन से अधिक साइटस की खोजें, बूंदी, भालावाड़, टोंक, चित्तौड़गढ़ जिलों में स्टोन टूल्स साइटस की खोज भी की है।
डॉक्यूमेंटेशन
रॉक आर्ट सोसाइटी आगरा, इडियन रॉक आर्ट रिसर्च सेन्टर नामिक, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, डेक्कन कॉलेज पूना, जनादन राय यूनिव सिंटी उदयपुर, इन्टेक चेप्टर उदयपुर, सियाजी राव यूनिवर्सिटी बडोदा, एएसआई दिल्ली सहित, इरविन न्यू मेयर आस्ट्रेलिया, गिरिराज कुमार आगरा, जीन क्लोट फ्रांस, अमानवेल अनाति इटली, शीला मिश्रा, पूना, जयपुर यूनिवर्सिटी, सहित देश-विदेश के पुरातत्व वेत्ताओ ने बूंदी आ कर इनके द्वारा खोजे गये, पुरास्थलों का अवलोरन किया है, और साथ ही डाक्यूमेटेशन भी किया है। इन्होंने अपनी खोज में मिले उपकरणों को कोटा, बूंदी और जयपुर के राजकीय सग्रहालयों को भी भेंट किया है।
देश में प्रथम बार गुफा में चित्रित मंदिर और बर्डराइडर एवं अश्व पर सवार मानव के शैल चित्र, राज्य में सर्वाधिक एक दर्जन गुफाओं में ब्रह्मी एवं शंख लिपी और प्रथम बार अश्वमेघ यज्ञ के घोड़ों की, हाड़ोती में प्रथम बार ताम्र उपकरणों एवं तीन एक मुखी शिवलिंग की, पंच मार्क मोर्यकाल, पृथ्वी राज चौहान, अनेग पाल, सोमल देवी, हम्मीर खिलजीं, सुल्तान मांडू के सुल्तान सहित अन्य राजवंशों के सैंकड़ों सिक्कों और गुफाओं में देवनागरी लिपि के लेखों की खोजे भारत में बूंदी एवं भीलवाड़ा के कुछ हिस्सेे की सर्वाधिक महत्व पूर्ण एवं प्राचीन गौरव दिलाने का कार्य है।
पुरस्कार
आपकी पुरातत्व की खोज के लिए आपको 1995 से अब तक इतने पुरस्कार प्राप्त हुए हैं कि उनके प्रशस्ति पत्र सजाने के लिए घर में जगह ही नहीं है। इनको चौथी बार 15 अगस्त 2023 को बूंदी जिला स्तरीय समारोह में सम्मानित किया गया। पूर्व में भी तीन बार जिला स्तर पर सम्मानित हो चुके हैं। राज्य स्तर महामहिम राज्यपाल, प्रतिभा पाटिल, उज्जैन में वाकणकर पुस्कार,राज्य स्तर पर्यटन विभाग द्वारा पुरस्कार,गोरीशंकर कमलेश पुरस्कार, मोहाली चंडीगढ़ ,उदयपुर,जयपुर,अजमेर में विभिन्न संस्थाओं द्वारा पुरस्कार उल्लेखनीय हैं।
परिचय
पुरातत्ववेत्ता के नाम से विख्यात ओम प्रकाश शर्मा ‘ कुक्की’ पुत्र शिवनाथ शर्मा का जन्म 5 अक्टूबर सन् 1955 को बूंदी में हुआ। आपने आठवीं कक्षा तक शिक्षा प्राप्त की। आप किराने की दुकान पर व्यवसाय करते हैं। अपने शोक और राष्ट्रीय हित में स्वेच्छा से पुरातत्व की खोज में लगे रहते है।
संपर्क मो : 9828404527
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डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवं पत्रकार, कोटा