आर्टिफीशियल इंटेलीजेंस (एआई) एक खतरा, अब एक खौफ, डर है। इस हद तक कि ओपन एआई के सीईओ सैम ऑल्टमैन खुद एआई के खतरों का सिनेरियो दिखला रहे हैं। यह ऐसा ही है जैसे कोई सेल्समैन अपने ही प्रोडक्ट की कमियां गिनवाए, खतरे बताए! अमेरिकी सीनेट की जुडिशल सब कमेटी के साथ एक मीटिंग में ऑल्टमैन ने सांसदों से अपील की कि एआई को नियंत्रित करने के लिए जल्द कानून बनाए। उन्होंने आगाह करते हुए कहा, “मेरा विचार है यदि इस तकनीक ने हानिकारक रूप ले लिया तो यह बहुत खतरनाक होगा। हमें इस बारे में खुलकर चर्चा करनी चाहिए।”
कोई संदेह नहीं कि अनजाने ही एआई की तकनीक बहुत तेजी से विकसित हो गई है। अचानकवह आधुनिक जीवन के कई पहलुओं को बदल रही है। हमारे फ़ोन में पहले से ही सिरी और एलेक्सा वर्चुअल असिस्टेंट हमारी सेवा में हैं। स्पोटीफाय और यूटयूब में एआई हम सबको बताता है कि बम क्या देखने और सुनने में दिलचस्पी रखते है। एआई अब सोशल मीडिया पर हावी है। हमें सलाह देता है कि हमारी दिलचस्पी किन पोस्टों में है। यह एक ऐसी बला है जिस पर अपने आप, अनजाने निर्भर होते जा रहे हैं। यही कारण है कि इसके बारे में बहुत कुछ लिखा जा रहा है। यह वैज्ञानिकों और अविष्कारकों के बीच विवाद का मुद्दा बन गया है। हर चर्चा में एआई के बारे में ऐसे नए खुलासे होते हैं जिससे मनुष्य का अस्तित्व संकट में आता लगता है।
चैटजीपीटी, स्नेपचेट, माय एआई इत्यादि को ‘जनरेटिव’ एआई कहा जाता है। इनके कारण ही एआई सुर्खियों में है। सभी इनके बारे में और जानना चाहते हैं। हम सभी ने अपराध बोध के साथ या ख़ुशी-ख़ुशी इनके साथ प्रयोग किए हैं, इनके साथ खेला है और इनके उत्तरों से मुग्ध हुए हैं। और यह हम सभी ने किया है फिर चाहे हम एआई पर चल रही बहस में किसी भी तरफ क्यों न हों।
कई लोग एआई के दिए जवाबों में ईश्वर, दुनिया के राजनैतिक भविष्य और युद्धों के संबंध में जानकारी से आहत है। वे सब इस मांग से सहमत है कि एआई को रोका जाए। पिछले महीने ज्यॉफ्री हिंटन, जिनके बारे में माना जाता है कि वे एआई के भीष्म पितामहों में से एक हैं, ने गूगल की नौकरी यह चेतावनी देते हुए छोड़ दी कि आईटी चैटबोट्स जल्दी ही मनुष्यों से अधिक होशियार बन सकते हैं। इसके अलावा रोजगार घटने और मनुष्य के सोचने की क्षमता में जंग लग जाने का खतरा तो है ही। गलत हाथों में जाने पर एआई आतंकी हथियार भी बन सकता है। परन्तु सबसे बड़ी फ़िक्र है मानव जाति का अस्तित्व ही समाप्त हो जाने की। अमेरिका के सेंटर फॉर एआई सेफ्टी ने टेक्नोलॉजी के दर्जनों ज्ञानियों द्वारा अनुमोदित एक बयान जारी किया है जिसमें कहा गया है कि एआई का इस्तेमाल झूठी बातें फैलाने के लिए किया जा सकता है जिससे समाज में अस्थिरता आ सकती है। और यह भी कि मशीनें इतनी प्रतिभाशाली बन सकती हैं कि दुनिया पर उनका राज हो जाए और ऐसे में मानव जाति नष्ट हो सकती है।
सचमुच बहुत चिंताजनक है कि क्लाइमेट चेंज नहीं वरन् हमारा अपना दिमाग हमारी दुनिया में कयामत लायेगा।सो विकसित देशों की सरकारें रात-दिन काम में जुटी हैं। ऐसे कानूनों को तैयार करने और पारित करने में व्यस्त हैं जिनसे एआई के उपयोग को रेग्युलेट किया जा सके। यूरोपीय यूनियन इस मामले में सबसे आगे है। उसने ऐसा कानून पारित करने की दिशा में कदम उठा लिया है। योरोपीय संघ की संसद में बिल आ गया है। जिसके तहत पुलिस सार्वजनिक स्थानों पर चेहरे की पहचान करने की लाइव तकनीक का इस्तेमाल नहीं कर सकेगी। सभी कपंनियों को इस नए कानून का कड़ाई से पालन करना होगा।
कारपोरेट और आर्थिक दुनिया में एआई इस तिमाही का मंत्र बन गया है। उद्योगों के कर्ताधर्ताओं को उम्मीद है कि निवेशकों का ध्यान इस बात पर ज़रूर जायेगा कि उनकी ताजा तिमाही कारोबारी रपट में एआई का जिक्र बार-बार है। एआई से जुड़े क्षेत्रों में कार्यरत व्यक्तियों और कंपनियों को इसका भरपूर लाभ हो रहा है जैसे चिप बनाने वाली कंपनी नीवीडिया अब एक हजार अरब डालर की कंपनी बन गई है। अल्गोरिद्म बदले जा रहे हैं, सुधारे जा रहे हैं और उनके ज़रिये बनाये गए सोशल फीड्स का इस्तेमाल बड़ी संख्या में लोगों को बहकाने, उनमें गलतफहमियां पैदा करने के लिए किया जा रहा है। एआई का इस्तेमाल ऐसी प्रणालियाँ को बनाने के लिए किया जा रहा है जो मकानों के मामले में और संपत्ति बंधक रख कर लोन लेने के मामलों में भेदभाव को स्थाई बना देंगीं। एआई से संचालित निगरानी तकनीकी, अश्वेत और एशियाई लोगों को आबादी में उनकी प्रतिशत से अधिक निशाना बनाती है। एआई का उपयोग हथियारों को ऑटोमेट करने के लिए किया जा रहा है। इससे ड्रोन आदि के ज़रिये हमले अधिक सटीक हो सकेंगे।
इसलिए दुनिया और विशेषकर अमरीका के लिए एआई को रेगुलेट करने का ढांचा बनाना महत्वपूर्ण होता जा रहा है। परन्तु यूरोपियन यूनियन के अलावा कहीं भी इसमें वांछित प्रगति नहीं हुई है। बल्कि यह शुरूआती अवस्था में ही है। यही चिंता का सबब है और इसलिए एआई तकनीकी के विकास को रोकने की बात कही जा रही है। अगर दुनिया की सरकारों और कानून निर्माताओं ने वही गलतियाँ कीं जो उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्मों को नियंत्रित करने के कानून बनाते समय की थीं तो इसके बहुत भयावह परिणाम हो सकते हैं।
(लेखिका परिचयः प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लेखन)
साभार- www.nayaindia.com से