दो टूक : देशों की सरहदें चाहे जितनी भी बारूद भरी और कंटीली हों. वो प्रेम और रिश्तों से भरी हवाओं के साथ उड़कर आने वाली नयी शुरुआतों को नहीं रोक सकती. प्रेम का रिश्ता हर सरहद से परे है और उसका सच बन्दूक और गोली से आगे फूलों भरा भी. आप एक कोशिश करके तो देखिये. निर्देशक कबीर खान की सलमान खान, करीना कपूर खान, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, हर्षाली मल्होत्रा, नजीम खान, मीर सर्वर, मेहर विज, अली कुली मिर्जा, शरत सक्सेना, राजेश शर्मा, कुरनाल पंडित और ओमपुरी की भूमिकाओं वाली फिल्म बजरंगी भाईजान भी यही सन्देश देने की कोशिश करती है.
कहानी : फिल्म की कहानी को दो स्तरों पर बुना गया है. जिसमे एक तरफ बजरंगी भाईजान यानी पवन चतुर्वेदी (सलमान खान) की कहानी है तो दूसरी तरफ एक पांच वर्षीय गूंगी पाकिस्तानी बच्ची मुन्नी उर्फ़ शाहिदा (हर्षाली मल्होत्रा ) है जो भारत के एक रेलवे स्टेशन पर अपनी मां (मेहर विज ) से बिछुड़ गयी है. शाहिदा भटकती हुई पवन (सलमान खान) के पास पहुँच जाती है . हनुमान भक्त पवन बच्ची के साथ पुलिस से लेकर पाकिस्तान एम्बेसी और कई लोगों से मिलता है. ताकि उसे उसके घर वापिस सुल्तानपुर पाकिस्तान भेजा जा सके. लेकिन जब उसे लगता है कि बिना पासपोर्ट और वीजा के ये काम आसान नहीं तो वो फिर खुद ही उसके घर ले जाने फैसला करता है. शाहिदा को उसके घर पहुँचाने में आने वाली हिंदुस्तानी और पाकिस्तानी मुसीबतों और हालातों का कैनवास है बजरंगी भाईजान. जिसमे उसे प्रेम करने वाली रसिका (करीना कपूर खान ), मदद करने वाले पाकिस्तानी पत्रकार चाँद (नवाजुद्दीन सिद्द्की ) मौलाना (ओमपुरी), पहलवान ( शरत सक्सेना) के अलावा नजीम खान, मीर सर्वर,अलका कौशल, अली कुली मिर्जा, राजेश शर्मा और कुरनाल पंडित के पात्र और चरित्र भी शामिल हैं.
गीत संगीत : फिल्म में संगीत प्रीतम चक्रवर्ती और गीत मयूर पुरी के साथ कौसर मुनीर, शब्बीर अहमद, नीलेश मिश्रा ने लिखे हैं. फिल्म का एक गीत जय जय बजरंग बली पहले ही लोकप्रिय हो चुका है लेकिन फिल्म का आधार है अदनान सामी की गायी कव्वाली भर दो झोली. जिंदगी जैसे बोलों वाला गीत भी सुना जा सकता है लेकिन चिकेन और सेल्फ़ी ले ले जैसे गीतों की जरूरत नहीं थी.
अभिनय : अब जिस फिल्म में सलमान हों तो फिर बाकी का क्या काम. लेकिन इस बार सलमान, सलमान कम और अभिनेता अधिक हैं. यही नहीं फिल्म भी बेशक कबीर खान की है लेकिन फिल्म की भावुकता में सलमान राजश्री की छाप वाले पात्र में हैं. सलमान खान ने फिल्म में कुल जमा दो एक्शन दृश्य दिए हैं लेकिन उनमे मासूमियत और उनके पात्र की सादगी बनी रहती है. मानना पड़ता है कि सलमान अलग हैं और घहरे भी. अब बाकी के उनके समकालीन अभिनेता सोचें कि उनकी बराबरी कैसे करेंगे. हर्षाली मल्होत्रा इस फिल्म की आधार पात्र है और उसकी भोली मुस्कुराहट, मासूमियत, खूबसूरती भी. अब चूंकि हर्षाली ने गूंगी बच्ची की भूमिका की है तो उनके लिए जरुरी था अपने पात्र और चरित्र के लिए एक खास शारीरिक भाषा और मार्मिकता भरा प्रदर्शन.
हर्षाली ने अपने पात्र की मानसिकता और सोच को अद्भुत क्षमता के साथ अभिव्यंजित किया है. इसके लिए कबीर और सलमान को भी शाबासी. करीना कपूर खान का पात्र बहुत सीमित है लेकिन सलमान और बाकी के पात्रों के लिए जरुरी भी. नवाजुद्दीन सिद्दीकी पाकिस्तानी पत्रकार की भूमिका ईमानदारी से करते हैं हालांकि वो फिल्म में मध्यांतर के बाद शामिल होते हैं लेकिन उसके बाद फिल्म उनकी उनकी अहमियत फिल्म में बढ़ती जाती है. ओम पुरी बहुत छोटी भूमिका में हैं लेकिन याद रहते हैं. फिल्म में एक और महत्वपूर्ण पात्र है हर्षाली की माँ की भूमिका में मेहर विज का. फिल्म की शुरुआत भी उन्ही से होती है और खत्म भी. कहानी में खोई बेटी को पाने की आस में रोती बिलखती और बिखरी माँ की भूमिका की मार्मिकता में उन्होंने उसे एक नया अंदाज दिया है और उनके चेहरे की भाव विविहीलता छू लेती है. नजीम खान किशोर सलमान बने हैं और मीर सर्वर के साथ अली कुली मिर्जा, शरत सक्सेना, राजेश शर्मा, कुरनाल पंडित निराश नहीं करते पर मेहर हमें याद रहती हैं.
निर्देशन : जो लोग सलमान खान की फ़िल्में इसलिए देखते हैं कि वो केवल एक था टाइगर, दबंग या फिर वांटेड जैसी फिल्मों के लिए ही बने हैं और फॉर्मूला फ़िल्में उनकी पहचान हैं तो उन्हें उनकी बजरंगी भाईजान जैसी फिल्म एक नयी सोच के साथ देखनी चाहिए. इसकी वजह है कि निर्देशक कबीर ने सलमान के लिए इस बार ऐसी फिल्म रची जो उनकी छवि से अलग उन्हें एक नए अंदाज और अभिनेता की तरह सामने लाती है. हालांकि फिल्म की गति धीमी है लेकिन बड़े सहज तरीके से उनके जरिये कबीर भारतीय और पाकिस्तानी राजनीति और कूटनीति में समाई कड़वाहट को बड़ी सादगी और बिना मारधाड़ के तर्क वितर्क किये बिना भावनात्मक, मानवीय और सौहार्दपूर्ण रूप से बिना भाषण बाजी के हम तक पहुंचा देते हैं. विषय के हिसाब से और कहानी के तहत प्रतीकों के होने के बावजूद फिल्म हिंसक नहीं है और ना ही बिखरी हुई. इसके बावजूद भारत-पाकिस्तान के रिश्तों के बीच कबीर हिंदू-मुस्लिम के मसले पर भी एक मीठी चोट करते हुए अपनी बात कहते हैं. फिल्म में ब्राह्मण परिवार में रहते हुए मुस्लिम परिवार के घर जाकर मुर्गा खाने जैसे दृश्य फिल्म को रोचक बनाते हैं. फिल्म का क्लाइमैक्स जादुई है लेकिन फिल्म की लम्बाई कुछ ज्यादा है. फिल्म की सिनेमाटोग्राफी अद्भुत है. दिल्ली के साथ कश्मीर में फिल्माया गया पाकिस्तान कबीर खान के साथ वी विजेंद्र प्रसाद की कहानी और पटकथा में कौसर मुनीर के संवाद के साथ फिल्म को देखने लायक बनाते हैं.
फिल्म क्यों देखें: समीक्षा पढ़ने के बाद भी मुझसे पूछेंगे क्या.
फिल्म क्यों न देखें: अगर सलमान की रूटीन फिल्म समझकर देखने जा रहे हैं तो.