Sunday, November 24, 2024
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लन्दन में बसा है बांग्ला टाउन

कल लन्दन के पूर्वी इलाक़े में आल्डगेट के क़रीब ट्रूमैन ब्रेवरी में एक कार्यक्रम के सिलसिले में जाना हुआ , यह ब्रिक लेन में है . इस आधा-एक किलोमीटर की सड़क को देख कर लगा लन्दन परत दर परत बहुत गहरा है , और यह संस्कृतियों के मेल मिलाप का अद्भुत संगम है . यहाँ आ कर ऐसा लगा जैसे बांग्लादेश में पहुँच गये हों , काफ़ी सारी दुकानों के होर्डिंग पर अंग्रेज़ी के साथ साथ बांग्ला में भी नाम लिखे हुए थे . इस सड़क पर सिलसिलेवार रेस्टोरेंट ही रेस्टोरेंट हैं उन से निकलने वाली महक बता रही थी कि अंदर करी पक रही है . इस इलाक़े में कुल आबादी का एक तिहाई से भी ज्यादा हिस्सा अब बांग्लादेशी मूल का है .

ब्रिक लेन धीरे धीरे करके कैसे मिनी बांग्लादेश बन गई इसके पीछे रोचक इतिहास है. एक जमाना था जब यहाँ ईंट और टाइल बनाने का काम हुआ करता था इसलिए नाम ब्रिक लेन पड़ गया . सन् पचास के आस पास ब्रिटिश सरकार को विश्व युद्ध से ध्वस्त अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए बड़े स्तर पर कामगारों की ज़रूरत पड़ी , ऐसे में उसने कामनवेल्थ देशों और ख़ासतौर पर अपेक्षाकृत ग़रीब अर्थव्यवस्था के देशों के लोगों को आने के लिए प्रोत्साहित किया. उन दिनों तब के पाकिस्तान के पूर्वी भाग के सिलहट इलाक़े के बेनीबाज़ार , जगननाथपुर, बिश्वनाथ क़स्बों के लोग यहाँ मज़दूरी के लिए यहाँ आ गए . उन दिनों पूर्वी लंदन के डॉक्स में पुनर्निर्माण का ज़बरदस्त काम चल रहा था , ये प्रवासी बहुत कम पगार पर काम करते थे और छोटे छोटे घरों में पंदरह से बीस मज़दूर रह लेते थे .

सन् सत्तर के आसपास पाकिस्तान ने अपने पूर्वी इलाक़े में जब जनता पर जुल्म करने शुरू किए उस दौरान सिलहट से बहुत सारे लोग अपनी जान बचा कर अपने संपर्कों के कारण पूर्वी लन्दन के इस टावर हैमलेट्स में आ गए. यहाँ पनाह भी मिली और काम भी मिला , क्योंकि उन दिनों यहाँ की गारमेंट फ़ैक्टरियों में मज़दूरों की ज़बरदस्त माँग थी . बांग्लादेश से कुशल प्रवासियों के यहाँ आने का सिलसिला आठवें और नवें दशक में भी जारी रहा .

इसी के साथ धीरे धीरे टावर हैमलेट्स और विशेषकर ब्रिक लेन का सामाजिक और सांस्कृतिक परिदृश्य बदलना शुरू हो गया . यही नहीं , इस इलाक़े में मज़दूरों के लिए जो छोटी छोटी खाने पीने की दुकानें खुली थीं उनकी शोहरत फैलनी शुरू हो गई, इन्हें करी हाउस कहा जाने लगा. आज यही करी हाउस अच्छे रेस्टोरेंट में बदल चुके हैं , इनका वाजिब दाम और अच्छा स्वाद दूर दूर के शौक़ीनों को आकर्षित करता है .

इस लेन को विषय बना कर लेखक मोनिका अली ने 2003 में एक पुस्तक “ब्रिक लेन” लिखी थी , जिस पर 2007 में इसी नाम से फ़िल्म भी बनी, पुस्तक को ले कर बवाल भी हुआ , इसकी प्रतियाँ जलाने की धमकी भी दे गई थी क्योंकि स्थानीय समुदाय ने आरोप लगाया था कि उनका नकारात्मक चित्रण हुआ है , बंगाली समुदाय ने ब्रिक लेन में फ़िल्म की शूटिंग नहीं करने दी, फ़िल्म कई अन्य लोकेशन पर शूट करके पूरी की गई. पुस्तक की नायिका नाज़नीन अट्ठारह वर्ष की उम्र में बांग्लादेश से आई है जिसकी शादी अपने से बहुत ज्यादा उम्र के छानू के साथ हुई है , प्रारंभ में उसकी अंग्रेज़ी थैंक यू और सॉरी तक सीमित थी , पुस्तक उस युवती के जीवन के संघर्ष और बांग्ला मुस्लिम समुदाय के साथ रिश्तों की पड़ताल करती है. यह पुस्तक देखा जाए तो ब्रिक लेन के प्रवासी जीवन का महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ भी है.

ब्रिक लेन के ज़्यादातर रेस्टॉरेंट्स का संचालन और स्वामित्व बांग्लादेश मूल के लोगों का है लेकिन वे इन्हें इंडियन कहना पसंद करते हैं . हमारी ब्रिक लेन की इस रोचक यात्रा में जाने तक़रीबन पच्चीस ऐसे रेस्टोरेंट देखने को मिले . इनकी संख्या इतनी होने के कारण क्वालिटी और रेट को लेकर काफ़ी प्रतियोगिता रहती है . लेकिन इनमें चार पाँच का विशेष ज़िक्र करना पड़ेगा. इनमें पहला नंबर निस्संदेह बंगाल विलेज का है , यहाँ का माहौल बिलकुल पारिवारिक क़िस्म का है , ब्रिटेन के प्रतिष्ठित समाचार पत्र गारजियन और डेली टेलीग्राफ में इसके बारे में काफ़ी तारीफ़ निकलती रहती है ख़ासतौर पर इनकी शतकारा लैंब डिश बहुत मशहूर है , इसमें मीट को ग्रेपफ़्रूट से मिलते झुलते फल शतकारा के साथ पकाया जाता है , यह सिलहट से आता है स्वाद में खट्टा और थोड़ा कड़वापन लिए होता है .

अन्य रेस्टोरेंट में उल्लेखनीय शेबा , अलादीन, द फेमस करी बाज़ार और मानसून हैं इनके भी काफ़ी प्रशंसक हैं. अलादीन को बीबीसी ने दुनिया का सबसे बढ़िया करी हाउस बताया है.ब्रिक लेन में बांग्ला मुक्ति आंदोलन के पितामह शेख़ मुजीबुर रहमान की स्मृति में स्मारक भी है .बांग्लादेश के प्रवासियों की राजनीतिक ताक़त का अन्दाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि टावर हैमलेट्स के मेयर लुत्फ़ुर रहमान हैं यही नहीं कौंसिल के 24 सदस्य भी प्रवासी बंगाली मूल के हैं .ब्रिक लेन में बांग्ला समुदाय के लिए सामुदायिक केंद्र , बांग्ला एथनिक खानपान , पहनावे और संस्कृति के लिए कम्युनिटी ट्रस्ट बनाने की योजना भी विचाराधीन है.

(लेखक स्टैट बैंक के सेवा निवृत्त अधिकारी हैं और दुनिया भर मेंं घूमते रहते हैं और वहाँ की जीवन शैली पर लेखन करते हैं)

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