Saturday, November 23, 2024
spot_img
Homeफ़िल्मी-गपशपबैंक अधिकारी से गीतकार बन गए समीर

बैंक अधिकारी से गीतकार बन गए समीर

बैंक अधिकारी के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत करने के बाद बालीवुड में अपने गीतों से श्रोताओं को मंत्र मुग्ध करने वाले गीतकार समीर लगभग चार दशक से सिनेप्रेमियों के दिलों पर राज कर रहे हैं। मशहूर शायर और गीतकार शीतला पांडेय उर्फ समीर का जन्म 24 फरवरी 1958 को बनारस में हुआ। उनके पिता अंजान फिल्म जगत के मशहूर गीतकार थे। बचपन से ही समीर का रूझान अपने पिता के पेशे की ओर था। वे भी फिल्म इंडस्ट्री में गीतकार बनना चाहते थे लेकिन उनके पिता चाहते थे कि वे अलग क्षेत्र में अपना भविष्य बनाएं। समीर ने बनारस हिंदु विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की पढाई पूरी की। इसके बाद परिवार के जोर देने पर उन्होंने अपने कैरियर की शुरूआत बतौर बैंक ऑफिसर शुरू की। बैंक की नौकरी उनके स्वभाव के अनुकूल नहीं थी। कुछ दिनों के बाद उनका मन इस काम से उचट गया और उन्होंने नौकरी छोड दी। अस्सी के दशक में गीतकार बनने का सपना लिये समीर ने मुंबई की ओर रूख कर लिया। लगभग तीन वर्ष तक मुंबई में रहने के बाद वे गीतकार बनने के लिये संघर्ष करने लगे। आश्वासन तो सभी देते रहे लेकिन उन्हें काम करने का अवसर कोई नहीं देता था।
 
अथक परिश्रम करने के बाद 1983 में उन्हें बेखबर फिल्म के लिये गीत लिखने का मौका मिला। इस बीच समीर को इंसाफ कौन करेगा, जवाब हम देगें, दो कैदी, रखवाला,महासंग्राम,बीबी हो तो ऐसी,बाप नंबरी बेटा दस नंबरी जैसी कई बड़े बजट की फिल्मों में काम करने का अवसर मिला लेकिन इन फिल्मों की असफलता के कारण वे फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में नाकामयाब रहे। लगभग दस वर्ष तक मुंबई में संघर्ष करने के बाद 1990 में आमिर खान-माधुरी दीक्षित अभिनीत फिल्म दिल में अपने गीत मुझे नींद ना आये..की सफलता के बाद समीर गीतकार के रूप में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गये।
 
1990 में ही उन्हें महेश भट्ट की फिल्म आशिकी में भी गीत लिखने का अवसर मिला। फिल्म आशिकी ने साँसों की जरूरत है जैसे.. मैं दुनिया भूला दूंगा..और नजर के सामने जिगर के पास. गीतों की सफलता के बाद समीर को कई अच्छी फिल्माें के प्रस्ताव मिलने शुरू हो गये जिनमें बेटा, बोल राधा बोल, साथी और फूल और कांटे जैसी बडे बजट की फिल्में शामिल थीं। इन फिल्मों की सफलता के बाद उन्होंने सफलता की नयी बुलंदि को छुआ और एक से बढकर एक गीत लिखकर श्रोताओं को मंत्रमुंग्ध कर 1997 में अपने पिता अंजान की मौत और अपने मार्गदर्शक गुलशन कुमार की हत्या के बाद समीर को गहरा सदमा पहुंचा। उन्होंने कुछ समय तक फिल्म इंडस्ट्री से किनारा कर लिया और वापस बनारस चले गए, लेकिन उनका मन वहां भी नहीं लगा और एक बार फिर नये जोश के साथ वह मुंबई आ गये और 1999 में प्रदर्शित फिल्म हसीना मान जायेगी से अपने सिने कैरियर की दूसरी पारी की शुरुआत कर दी।

.

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार