(4 फरवरी 2023 माघ शुक्ल त्रयोदशी को भगवान विश्वकर्मा जी की जयन्ती
है)
वृध्द वशिष्ठ पुराण मे जन्म संबंधी विवरण है।
माघे शुक्ले त्रयोदश्यां दिवापुष्पे पुनर्वसौ ! अष्टा र्विशति में जातो विश्वकर्मा भवनि च
भगवान विश्वकर्मा जी का प्राचीन मन्दिर आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम का है। निश्चित रूप से भगवान विश्वकर्मा जी का सम्बन्ध इस भूमि से रहा होगा तभी उनका मन्दिर है वहां पर।
विश्वकर्मा जी के कुल का संक्षिप्त विवरण–
बृहस्पते भगिनी भुवना ब्रह्मवादिनी।
प्रभासस्य तस्य भार्या वसूनामष्टमस्य च।
विश्वकर्मा सुतस्तस्यशिल्पकर्ता प्रजापतिः॥
विश्वकर्मा जी की माँ बृहस्पति जी की वेदव्याख्या करने वाली बहन भुवना थी। इनके पिता प्रभास जी थे जो आठ वसुओं मे से एक हैं। ( वसु अर्थात बसाने वाला। यह प्राचीनकाल की उपाधि या पद है। ) शिल्पकर्ता प्रजापति (प्रजा का पालन करने वाले) विश्वकर्मा उनके पुत्र हैं।
विश्वकर्मा जी का शत प्रतिशत सम्बन्ध सनातन वैदिक धर्म और भारत भूमि से है। जब विश्वकर्मा जी के पूर्वज आर्य हैं तब विश्वकर्मा जी के वंशज अनार्य कैसे। भगवान विश्वकर्मा जी की सभी मूर्तियों मे जनेऊ दिखाया जाता है। जनेऊ आर्यत्व का प्रतीक है।
महर्षि दयानन्द जी ने, वास्तुकला के अद्वितीय आदि-आचार्य विश्वकर्मा जी का स्मरण अपने ग्रन्थ “संस्कार-विधि” के ‘वेदारम्भप्रकरण’ के अन्त में निम्न-अनुसार किया है :-
“अथर्ववेद का उपवेद अर्थवेद, जिसको शिल्पशास्त्र कहते हैं, जिसमें विश्वकर्मा, त्वष्टा और मयकृत संहिता ग्रन्थ हैं, उनको 6 छः वर्ष के भीतर पढ़ के विमान, तार, भुगर्भादि विद्याओं को साक्षात् करें | ये शिक्षा से ले के आयुर्वेद तक 14चौदह विद्याओं को 31 इकत्तीस वर्षों में पढ़ के महाविद्वान् होकर अपने और सब जगत् के कल्याण और उन्नति करने में सदा प्रयत्न किया करें |”
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ठीक इसी प्रकार महर्षि दयानन्द जी, “ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका” में ‘ग्रन्थप्रामाण्याप्रामाण्यविषय:’ में लिखते हैं कि “अर्थवेद अर्थात् शिल्पशास्त्र जिसके प्रतिपादन में विश्वकर्मा, त्वष्टा, देवज्ञ और मयकृत संहिता रची गई हैं, ये चारों उपवेद कहते हैं |”
महर्षि दयानन्द जी, विश्वकर्मा के वंशज शिल्पियों को बहुत आदर देते थे | अपने ऋग्वेद-भाष्य में द्वितीय मन्त्र “अग्नि: पूर्वे” का अर्थ “शिल्पविद्या के जानने तथा शिल्पविद्या को सिद्ध करने की इच्छा रखने वाले, उसको पढ़ाने और पढ़नेवाले जो ऋषि अर्थात् कारीगर लोग हैं वे अग्नि के गुणों के सुतर्कपूर्वक खोज से पदार्थविद्या को सिद्ध करते हैं और करें | क्यों की पदार्थविद्या में कला कौशल विमान आदि सवारियों के परमोत्तम गुणों की प्राप्ति अग्नि से होती है| इससे अग्नि के गुणों के खोजने में सब लोग सदा प्रयत्न करें”| ऐसा करते हैं साथ ही प्रथम मन्त्र में विमान आदि अनेक रथों, यानों, वाहनों का वर्णन करते हैं |