प्राय: देखने में आता है कि आज के इंटरनेट युग में पाठकों ने पुस्तकों से दूरी बना ली है। एक समय था जब किताबें मानव के मनोरंजन के साथ – साथ ज्ञान, शिक्षा का भंडार और संस्कृति का संवाहक मानी जाती थी। बच्चों से लेकर बूढ़े तक अपनी – अपनी रुचि के अनुसार किताबें पढ़ते थे। पाठकों की निरन्तर हो रही कमी के बीच भी लेखक और साहित्यकार खूब लिख रहे हैं, किताबें छप रही हैं। चिंता का विषय है कि पुस्तकों को बाज़ार नहीं मिल रहा है और ये किसी पुस्तकालय की शोभा मात्र बन कर रह जाती हैं। इसी को को ध्यान में रखते इस बार 23 अप्रैल को विश्व पुस्तक दिवस के मौके पर “”इंटरनेट की आंधी में पुस्तकों का महत्व ” विषय पर ऑन मोबाइल राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
देश के कई स्थानों से लेखकों, लेखिकाओं, पत्रकारों, इंजीनियरों, इतिहासकार आदि इस संगोष्ठी से जुड़े और अपने विचार किए। अधिकांश का मत रहा की पुस्तकों का महत्व आज भी बरकरार है और कभी कम नहीं होगा।
यह व्यक्ति की रुचि पर निर्भर है कि वह क्या पढ़ता है। हर विषय पर नया साहित्य खूब लिखा जा रहा है। यह विचार व्यक्त करते हुए मुंबई की विद्वान लेखिका जिन्होंने स्वयं कई पुस्तकों लिखी हैं *श्रीमती किरण खेरूका” कहती हैं कि दौड़ता – दौड़ता मनुष्य पाषण युग से इंटरनेट तक आ पहुंचा। फिरकों में बटे मनुष्य कितने पास आ गए हैं। हम समय के साथ चलते रहें, इसीलिए हिंदी भाषा और भाषी जीवंत है। पुस्तकों का महत्व बरकरार है। हमने अपनी खिड़कियां खोल रखी हैं, ज्ञान ,विज्ञान सब का स्वागत है। कोई भी तकनीक या इंटरनेट-क्रांति पुस्तक की उपयोगिता को कम नहीं कर सकती।
पुस्तकें ज्ञान की सुरक्षा, संरक्षा, सृजन और परिमार्जन में भी प्रमुख भूमिका निभाती हैं। मानव के कार्य, विचार , ज्ञान, समाज और संस्कृति के विकास में योगदान को पुस्तकें सुरक्षित रखती हैं। यह विचार व्यक्त करते हुए
जयपुर से अनेक शोध पुस्तकों के लेखक इतिहासविद डॉ.बी.के.शर्मा कहते हैं किअभी तक इंटरनेट के बढ़ते प्रभाव ने पुस्तकों के अस्तित्व के समक्ष कोई चुनौती उपस्थित नहीं की है और नहीं पाठकों ने पुस्तकों से दूरी नहीं बनाई, वरन वास्तविकता यह है कि भारत में अच्छी पुस्तकों का अभाव है।
पुस्तकों की गुणवत्ता को बढ़ाना पहली आवश्यकता है। उनका कहना है कि सरकार द्धारा पुस्तक संस्कृति को प्रोत्साहित करना चाहिए। भारत सरकार के प्रकाशन विभाग, नेशनल बुक ट्रस्ट गुणवता पूर्ण मानक प्रकाशन में अच्छी भूमिका निभा सकती हैं। लेखक को रॉयल्टी के भुगतान की उपयुक्त व्यवस्था होनी चाहिए। पुस्तकालय संगठन का विस्तार तो हुआ है किन्तु पुस्तकालय कर्मियों का अभाव है। राजस्थान में सूचना केंद्रों के पुस्तकालय सालों से बन्द पड़े हैं
पुस्तक का महत्व सार्वभौमिक, सार्वकालिक एवं सार्वदैशिक है, किसी भी युग या आंधी में उसका महत्व कम नहीं हो सकता, इंटरनेट जैसी अनेक आंधियां आयेगी, लेकिन पुस्तक संस्कृति हर आंधी में अपनी उपयोगिता एवं प्रासंगिकता को बनाये रख सकेगी। यह विचार व्यक्त कर दिल्ली के
प्रख्यात लेखक,स्तम्भकार ललित गर्ग कहते हैं पुस्तकें नई दुनिया के द्वार खोलती हैं, मनुष्य के अंदर मानवीय मूल्यों के भंडार में वृद्धि करने में योगदान देती हैं। वह कहते हैं शायद ये पुस्तकें ही हैं जिन्हें पढ़कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आज दुनिया की एक महाशक्ति बन गये हैं। वे स्वयं तो महाशक्ति बने ही है, अपने देश के हर नागरिक को शक्तिशाली बनाना चाहते हैं, इसीलिये उन्होंने देश भर में एक पुस्तक-पठन तथा पुस्तकालय आंदोलन का आह्वान किया है, जिससे न सिर्फ लोग साक्षर होंगे, बल्कि सामाजिक व आर्थिक बदलाव भी आएगा। वह कहते हैं कि हजारीप्रसाद द्विवेदी ने तभी तो कहा था कि ‘साहित्य वह जादू की छड़ी है, जो पशुओं में, ईंट-पत्थरों में और पेड़-पौधो में भी विश्व की आत्मा का दर्शन करा देती है।’
पुस्तकें न सिर्फ ज्ञान प्राप्त करने का साधन हैं बल्कि जीवन दर्शन को समझने के लिए पुस्तकों की महत्वपूर्ण भूमिका है। यह विचार व्यक्त करते हुए लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार *विमल किशोर पाठक* कहते हैं महात्मा गांधी जी ने कहा था कि पुस्तकें पढ़ने से व्यक्ति जीवन की प्रत्येक कठिनाई तथा विपरीत परिस्थितियों में भी अपने आप को सकारात्मकता की ओर ले जाकर जीवन को नई दशा और दिशा प्रदान कर सकता है,इसलिये पुराने वस्त्र पहनो और नई किताब पढ़ो। वह कहते हैं इंटरनेट से पुस्तकों का महत्व कम नहीं हुआ, स्वरूप परिवर्तित हुआ है। कागज पर छपे शब्दों का जो प्रभाव मानस पर पड़ता है उसका स्थान इंटरनेट कभी नही ले सकता,बल्कि अगर व्यापक दृष्टिकोण से देखा जाए तो इंटरनेट ने पुस्तकों के महत्व में वृद्धि की है। ई-बुक से नई पीढी का रुझान पुस्तकों के प्रति बढ़ रहा है।
साहित्य पढ़ने की वकालत कर हरियाणा में पंचकुला की श्रीमती मृदुला अग्रवाल कहती हैं कि माता – पिता और गुरुजनों का दायित्व है कि वे प्रारम्भ से ही बच्चों को भारतीय साहित्य पढ़ने के लिए प्रेरित करें। हमारे विख्यात साहित्यकारों ने जिस अमर साहित्य की रचना की है वह ज्ञान का अथाह भंडार है। कहते हैं साहित्य समाज का दर्पण होता है। साहित्य का अध्यन कर हमें अपने समाज को जान ने का अवसर मिलता हैं जब की इंटरनेट पर हमें केवल सारांश ही मिलता है। इंटरनेट किताबों का विकल्प नहीं हो सकता।
पाठकों तक पुस्तक पहुंचे, जरूरी है कि इनके लागत मूल्य को कम किया जाए। पढ़ने वाले बच्चे इंटरनेट के साथ – साथ मूल पुस्तक का भी अध्यन करें तो दूरगामी परिणाम होंगे। मेरठ की एबीएसएसआईंटी. यूनिवर्सिटी में सलाहकार और प्रोफ़ेसर सुशील कुमार गुप्ता ने यह विचार व्यक्त करते हुए कहा कि सही ज्ञान शॉर्ट नोट्स या इलेमटरी किताबों से नहीं मिलता जो वास्तविक किताबों से प्राप्त होता हैं। पुस्तकों को पढ़े बिना बड़ी – बड़ी डिग्री लेने पर भी वास्तविक ज्ञान अधूरा रहता है।
भागदौड़ भरी जिंदगी में कुछ पल किसी के साथ सुकून से बिताने का अगर कोई साथी है तो वह पुस्तक है। भीलवाड़ा की लेखिका श्रीमती शिखा अग्रवाल*यह बताते हुए कहती हैं डिजिटल की दुनिया में इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स की मानो बाढ़ सी आ गई है। प्राचीन समय में जब लोग पुस्तकों से लगाव रखते थे तो उनका मानसिक एवं भावनात्मक विकास भी अच्छा होता था। वह कहती हैं जो ज्ञान हमें प्रेमचंद की “निर्मला “,हरिवंश राय बच्चन की “मधुशाला” या जयशंकर प्रसाद की “कामायनी” के अध्ययन से प्राप्त हो सकता है वो रस या वो आनंद इलेक्ट्रॉनिक की दुनिया में कभी भी प्राप्त नहीं हो सकता।
पुस्तकें ही भारतीय जन-चेतना को जाग्रत कर नये भारत के निर्माण की दिशा में प्रेरित करती है। कोटा के वरिष्ठ पत्रकार *सुनील माथुर* यह विचार व्यक्त कर कहते है कि साहित्य ही वह मजबूत माध्यम है जो हमारी राष्ट्रीय चेतना को जीवंत रखते हुए भारतीय संस्कृति को संजो कर उसे पीढ़ी-दर-पीढ़ी संचरित करने का महत्ती काम करता है।
वैदिक काल से वर्तमान तक सभी भाषाओं का साहित्य इतना समृद्ध है कि मनुष्य के ज्ञान चक्षु खोलने, समझ, तार्किक शक्ति पैदा करने और काल विशेष की सामाजिक परिस्थितियों को जानने का प्रबल माध्यम है। कोटा रेल मंडल के सीनियर सेक्शन इंजीनियर अनुज
कुमार कुचछल, जो साहित्य के अनन्य प्रेमी हैं और जिनका छात्र समय में ही साहित्य का निजी वृहद संग्रह था उक्त विचार व्यक्त कर कहते हैं कि खाली समय में पुस्तकों से अच्छा मनुष्य का कोई दूसरा साथी नहीं है।
पुस्तकों के महत्व को बताते हुए रेलवे मंडल कोटा से सेवा निवृत इंजीनियर *राम मोहन कौशिक* कहते हैं कि पुस्तक अनुभव संचय व ज्ञान प्रसारण का सुचारू माध्यम है जिस से तार्किक व एकाग्रता शक्ति का बढ़ना,अच्छी नींद आना,अमिट ज्ञान बढाने में मदद मिलती है। इनके महत्व को इंटरनेट से नहीं आंका जा सकता है।
देश की आज़ादी के पूर्व और बाद तक कई वर्षों तक लोगों का पुस्तकों के प्रति लगाव बना रहा। यह विचार रखते हुए कोटा के इतिहासविद् *फ़िरोज़ अहमद* कहते कि आज के दौर में इंटरनेट की आँधी में पाठक पुस्तकें पढ़ने की अपेक्षा किसी भी विषय की जानकारी गूगल पर प्राप्त कर लेते हैं, परंतु यह स्थिति दिशा भ्रम और भटकाव की स्थिति है। विस्तृत और वास्तविक ज्ञान पुस्तकों से ही संभव है।
जिस देश में जितने अधिक अच्छे पुस्तकालय हैं वह देश उतना ही अधिक संपन्न और विकासशील है। यह विचार व्यक्त करते हुए कोटा सार्वजनिक मंडल पुस्तकालय की सह प्रभारी *श्रीमती शशि जैन* कहती हैं कि इंटरनेट पुस्तक का विकल्प नहीं हो सकता। आज भी बच्चे पुस्तकालय में हैरी पॉटर, डायरी आफ ए विंपी किड, गूसबमपस, सेरेलक होम इत्यादि पुस्तकों को पढ़ना पसंद करते हैं। युवा पाठक अमीश, डैन ब्राउन, पाउलो कोएलो, रोंडा बर्न एवं बड़े पाठक बंगाली लेखकों की पुस्तकें, नरेंद्र कोहली, अमृता प्रीतम, अमीश,शिव खेड़ा, कृष्ण की आत्मकथा -मनु शर्मा, योग से संबंधित पुस्तकें पढ़ना पसंद करते हैं। पुस्तकों की खुशबू आज भी आनंदित करती है।
मुरैना से व्याख्याता निशा गुप्ता, गुरुग्राम से श्रुति सिंघल, कोटा से एडवोकेट अख्तर खान, पत्रकार के. डी.अब्बासी, अखिलेश बेगडी, उदयपुर से लेखक पन्नालाल मेघवाल आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए।