कथाकार विजय जोशी की कहानियों को पढ़ना एक तरह से सामाज को पढ़ना है। इनकी सभी कहानियाँ समाज की सच्चाई के इर्द गिर्द घूमती हैं। इनमें हमें सीखने ,समझने और सोचने की दिशा और संकेत मिलते हैं। कहानियों में चरित्र परिवर्तन और समस्या के समाधान का संकेत होना ही कहानी को सशक्त बनाता है। यह तथ्य विजय जोशी की कहानियों में पूर्णतः निरूपित होता है।
कहानी-संग्रह “सुलगता मौन ” के आमुख में डॉ. गीता सक्सेना ने कथाकार विजय जोशी की रचनात्मकता के बारे में लिखा है कि – “आलोचना के मर्म को गहनता से समझने वाले रचनाकार की सामाजिकता को सूक्ष्मता से परखने और आत्मसात करने की प्रवृत्ति इनकी रचनात्मकता को अद्भुतता देती है। संवेदनाओं के धरातल पर परिवेश को सुरम्य भाव-भंगिमाओं में शब्दांकित करती कहानियों की एक श्रंखला है – ‘ सुलगता मौन ‘।”
कथाकार के इस कहानी संग्रह में आस के पंछी, सबक, भीगा हुआ मन, अब ऐसा नहीं होगा, नर्म अहसास, कदमताल, नाटक, अपनों से पराए, सुलगता मौन, पटाखे, सीमे हुए अरमान कुल 11 कहानियाँ हैं। ये सभी कहानियाँ वर्तमान समाज, परिवार और व्यक्ति में हो रहे परिवर्तन को सरलता से पाठकों के सामने लाती हैं। इस संग्रह की हर एक कहानी कुछ न कुछ सन्देश देती है। पाठकों को सोचने के लिए मजबूर करती हैं।
संग्रह की ‘आस के पँछी ‘ और ‘अपनों से पराये ‘ दोनों ऐसी कहानियाँ हैं जो रिश्तों-रिश्तों के बीच उत्पन्न स्थितियों को साफ-साफ दिखाती है। ‘सबक’ में पारिवार की स्थितयों और उनके प्रभाव, स्वभाव और आभाव को सामने लाया गया है। ‘भीगा हुआ मन ‘ आडम्बरों पर चोट करती है। ‘अब ऐसा नहीं होगा ‘ कहानी लड़की के जन्म लेने के बाद की समस्या तथा मानसिक पीड़ा को बखूबी सामने लाती है। यह सामाजिक विडम्बना के पक्ष को पाठकों के सामने रखती है। ‘नर्म अहसास ‘ बदलती जीवन शैली से बदलते विचारों के प्रभाव का अहसास कराती है। ‘कदमताल ‘ परिवार में सन्देह करने से बिगड़ती स्थिति तथा सम्बन्धों में टकराहट का दर्पण है। ‘नाटक ‘ कहानी से साहित्य और समाज के नाटक का पर्दाफ़ाश एक साक्षात्कार के माध्यम से होता है। ‘सुलगता मौन ‘ कहानी अपने भीतर पीड़ा को झेलते वृद्ध दम्पत्ति के मौन को सरलता से कहती नजर आती है। ‘ फटाके ‘ कहानी अंधविश्वास की पोल खोलती है। ‘ सीमे हुए अरमान ‘ अवसरवादिता और कर्मठता के बीच के द्वन्द्व को दर्शाती है।
जोशी ने सरल भाषा में सामाजिक और पारिवारिक जीवन को ईमानदारी से कहानियों के द्वारा प्रस्तुत किया है। इन कहानियों में आम जन की पीड़ा और उनके मौन को शब्दों के सहारे सामने लाया गया है। इसके साथ ही कहानियां कई तरह की समस्याओं को दूर करने के लिए सुझाव भी देती हैं जो पात्रों में आ रहे परिवर्तन के द्वारा सामने आते हैं।
कथाकार विजय जोशी इस संग्रह में ‘मन से…’ के अन्दर कहते भी हैं कि – “कथा-सृजन के इस सोपान में युग के सापेक्ष बदलते परिदृश्यों और उससे उत्पन्न परिस्थितियों का वह मौन मुखर है जो व्यक्ति के अन्तस में समुच्चय-सा एकत्रित एवँ ऋणात्मक और धनात्मक सन्दर्भों से रूपायित कोष्ठकों के द्वारा आबद्ध रहता है। यही नहीं, तात्कालिक और दीर्घकालिक परिणामों के साक्षात्कार द्वारा उत्पन्न भाव, विचार और व्यवहार के उजागर हो जाने से निर्मित सम्बन्धों की आँच में सुलगता भी रहता है।” यही है विजय जोशी की कहानियों के पात्रों में सुलगता मौन जो समाज के सामने धीरे-धीरे उभर रहा है। यह पुस्तक अमेजॉन और फिलिप कार्ट पर उपलब्ध है।
राजस्थान के कोटा निवासी कथाकार जोशी विज्ञान के अध्येता और साहित्य में रुचि के मणिकांचन संयोग को सहेजने वाले ऐसे कथाकार हैं जिन्होंने अपनी कहानियों के माध्यम से समाज को जागृत करने का सफल प्रयास किया है। हिन्दी में यह उनकी पाँचवाँ कहानी-संग्रह है तथा दो राजस्थानी कहानी-संग्रह सहित सातवाँ संग्रह है।
**सुलगता मौन (कहानी – संग्रह)
कथाकार – विजय जोशी
प्रकाशक – साहित्यागार, धामाणी मार्केट, चौड़ा रास्ता, जयपुर, वर्ष 2020,
पृष्ठ- 96, मूल्य- 200₹
समीक्षक –
डॉ. प्रभात कुमार सिंघल
1- एफ-18, हाउसिंग बोर्ड, कुन्हाड़ी
कोटा ( राजस्थान)
Mob 9928076040