Saturday, April 27, 2024
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संघ के समर्पित कार्यकर्ता बस्ती के लाल बाबा योगेन्द्र की जन्म शताब्दी 

बाबा योगेन्द्र (7 जनवरी 1924 – 10 जून 2022) एक भारतीय कलाकार, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रचारक और संस्कार भारती के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। बाबा योगेन्द्र का जन्म 7 जनवरी 1924 को ब्रिटिश भारत के संयुक्त प्रांत (अब उत्तर प्रदेश में ) के बस्ती जिले के बभनगांवा (गांधीनगर) में वकील विजय बहादुर श्रीवास्तव के घर हुआ था। दो वर्ष की उम्र में उनके सिर से मां का साया उठ गया। फिर उन्हें पड़ोस के एक परिवार में बेच दिया गया। इसके पीछे यह मान्यता थी कि इससे बच्चा दीर्घायु होगा। उस पड़ोसी माँ ने ही अगले दस साल तक उन्हें पाला। वकील साहब कांग्रेस और आर्यसमाज से जुड़े थे। जब मोहल्ले में आरएसएस की शाखा लगने लगी, तो उन्होंने योगेन्द्र को भी वहाँ जाने के लिए कहा गया।

पद्मश्री से सम्मानित संस्कार भारती के संस्थापक बाबा योगेन्द्र ऐसे कलाकार हैं, जिन्होंने हजारों कला साधकों को एक माला में पिरोने का कठिन काम कर दिखाया। भारत सरकार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक के वरिष्ठ प्रचारक और संस्कार भारती के संस्थापक बाबा योगेन्द्र को पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया है। संस्कार भारती संस्था के माध्यम से उन्होंने कला साधकों को एक मंच पर लाने का प्रयास किया। बस्ती में जन्मे योगेन्द्र दा का मुख्यालय माधव भवन, आगरा रहा है। माधव भवन में ही आरएसएस का बृज प्रांत कार्यालय है।

छात्र जीवन में उनका सम्पर्क गोरखपुर में संघ के प्रचारक नानाजी देशमुख से हुआ। योगेन्द्र जी यद्यपि सायं शाखा में जाते थे; पर नानाजी प्रतिदिन प्रातः उन्हें जगाने आते थे, जिससे वे पढ़ सकें। एक बार तो तेज बुखार की स्थिति में नानाजी उन्हें कन्धे पर लादकर डेढ़ किमी पैदल चलकर पडरौना गये और उनका इलाज कराया। इसका प्रभाव योगेन्द्र पर इतना पड़ा कि उन्होंने शिक्षा पूर्ण कर स्वयं को संघ कार्य के लिए ही समर्पित करने का निश्चय कर लिया।

देश के समर्पित प्रदर्शनी लगाईं।उनके सानिध्य में 1942 में संघ शिक्षा वर्ग में शामिल हुए। इसके बाद 1945 में संघ के प्रचारक बन राष्ट्र की सेवा में स्वयं के जीवन को समर्पित कर दिया।

योगेन्द्र ने 1942 में लखनऊ में प्रथम वर्ष ‘संघ शिक्षा वर्ग’ का प्रशिक्षण लिया। 1945 में वे प्रचारक बने और गोरखपुर, प्रयाग, बरेली, बदायूँ, सीतापुर आदि स्थानों पर संघ कार्य किया। उनके मन में एक सुप्त कलाकार सदा मचलता रहता था। देश-विभाजन के समय उन्होंने एक प्रदर्शनी बनायी, जिसने भी इसे देखा, वह अपनी आँखें पोंछने को मजबूर हो गया। फिर तो ऐसी प्रदर्शिनियों का सिलसिला चल पड़ा। शिवाजी, धर्म गंगा, जनता की पुकार, जलता कश्मीर, संकट में गोमाता, 1857 के स्वाधीनता संग्राम की अमर गाथा, विदेशी षड्यन्त्र, माँ की पुकार,आदिआदि ने संवेदनशील मनों को झकझोर दिया। ‘भारत की विश्व को देन’ नामक प्रदर्शनी को विदेशों में भी प्रशंसा मिली।

संघ नेतृत्व ने योगेन्द्र की इस प्रतिभा को देखकर 1981 ई0 में ‘संस्कार भारती’ नामक संगठन का निर्माण कर उसका कार्यभार उन्हें सौंप दिया। योगेन्द्र के अथक परिश्रम से यह आज कलाकारों की अग्रणी संस्था बन गयी है। अब तो इसकी शाखाएँ विश्व के अनेक देशों में स्थापित हो चुकी हैं। योगेन्द्र शुरू से ही बड़े कलाकारों के चक्कर में नहीं पड़े। उन्होंने नये लोगों को मंच दिया और धीरे-धीरे वे ही बड़े कलाकार बन गये। इस प्रकार उन्होंने कलाकारों की नयी सेना तैयार कर दी।

संस्कार भारती के राजेश पंडित ने बताया कि योगेन्द्र की सरलता एवं अहंकार शून्यता उनकी बड़ी विशेषता है। किसी प्रदर्शनी के निर्माण में वे आज भी एक साधारण मजदूर की तरह काम में जुट जाते हैं। जब अपनी खनकदार आवाज में वे किसी कार्यक्रम का ‘आँखों देखा हाल’ सुनाते हैं, तो लगता है, मानो आकाशवाणी से कोई बोल रहा है। उनका हस्तलेख मोतियों जैसा है। इसीलिए उनके पत्रों को लोग संभालकर रखते हैं। उन्होंने ईश्वर से प्रार्थना की है कि योगेन्द्र ‘बाबा’ दीर्घायु रहकर इसी प्रकार कला के माध्यम से देशसेवा करते रहें।

वह गोरखपुर, प्रयाग, बरेली, बदायूं, सीतापुर आदि स्थानों पर आरएसएस प्रचारक के तौर पर काम किया। एक बार भारत पाकिस्तान बंटवारे को लेकर आरएसएस के शिक्षा वर्ग में एक प्रदर्शनी लगी थी। जिसका प्रभाव उनके मनो मस्तिष्क पर पड़ा। उसके बाद उन्होंने ऐसी प्रदर्शनियों का आयोजन शुरू कर दिया। शीर्ष नेतृत्व ने योगेन्द्र जी की इस प्रतिभा को देखकर 1981 में ‘संस्कार भारती नामक संगठन का निर्माण कर उसका कार्यभार उन्हें सौंप दिया। योगेन्द्र जी के अथक परिश्रम से यह संगठन कला साधकों के लिए बेहतर प्लेटफार्म बना है।

संस्कार भारती, की स्थापना ललित कला के क्षेत्र में राष्ट्रीय चेतना लाने का उद्देश्य सामने रखकर की गयी थी। इसकी पृष्ठभूमि में भाऊराव देवरस, हरिभाऊ वाकणकर, नानाजी देशमुख, माधवराव देवले और योगेन्द्र जी जैसे मनीषियों का चिन्तन तथा अथक परिश्रम था। संस्कार भारती, की स्थापना ललित कला के क्षेत्र में राष्ट्रीय चेतना लाने का उद्देश्य सामने रखकर की गयी थी। इसकी पृष्ठभूमि में भाऊराव देवरस, हरिभाऊ वाकणकर, नानाजी देशमुख, माधवराव देवले और योगेन्द्र जी जैसे मनीषियों का चिन्तन तथा अथक परिश्रम था। १९५४ से संस्कार भारती की परिकल्पना विकसित होती गयी और १९८१ में लखनऊ में इसकी बिधिवत स्थापना हुई। १९८८ में फाल्गुन शुक्ल पक्ष की एकादशी (रंगभरी एकादशी) को मीरजापुर इकाई का गठन किया गया। सा कला या विमुक्तये अर्थात् “कला वह है जो बुराइयों के बन्धन काटकर मुक्ति प्रदान करती है” के घोष-वाक्य के साथ आज देशभर में संस्कार भारती की १२०० से अधिक इकाइयाँ कार्य कर रही है।

समाज के विभिन्न वर्गों में कला के द्वारा राष्ट्रभक्ति एवं योग्य संस्कार जगाने, विभिन्न कलाओं का प्रशिक्षण व नवोदित कलाकारों को प्रोत्साहन देकर इनके माध्यम से सांस्कृतिक प्रदूषण रोकने के उद्देश्य से संस्कार भारती कार्य कर रही है। १९९० से संस्कार भारती के वार्षिक अधिवेशन कला साधक संगम के रूप में आयोजित किये जाते हैं।

संगीत, नाटक, चित्रकला, काव्य, साहित्य और नृत्य विधाओं से जुड़े देशभर के स्थापित व नवोदित कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। भारतीय संस्कृति के उत्कृष्ट मूल्यों की प्रतिष्ठा करने की दृष्टि से राष्ट्रीय गीत प्रतियोगिता, कृष्ण रूप-सज्जा प्रतियोगिता, राष्ट्रभावना जगाने वाले नुक्कड़ नाटक, नृत्य, रंगोली, मेंहदी, चित्रकला, काव्य-यात्रा, स्थान-स्थान पर राष्ट्रीय कवि सम्मेलन आदि बहुविध कार्यक्रमों का आयोजन संस्कार भारती द्वारा किया जाता है

योगेन्द्र ने आरएसएस के लिए गोरखपुर, इलाहाबाद, बरेली, बदायूँ और सीतापुर में प्रचार किया। 1981 में, आरएसएस ने कला और साहित्य को बढ़ावा देने के लिए एक इकाई संस्कार भारती बनाई। योगेन्द्र संस्थापक सदस्यों में से एक थे। उन्होंने खुद को आरएसएस के वरिष्ठ प्रचारकों में से एक के रूप में स्थापित किया। जिन्हे कभी पीठ पर लाड अस्पताल ले गए थे नानाजी देशमुख।

कला के साधकों को एक मंच पर लाने के लिए पद्मश्री बाबा योगेंद्र ने संस्कार भारती संस्था की स्थापना की थी। योगेन्द्र ने 1942 में लखनऊ में ‘संघ शिक्षा वर्ग’ का प्रशिक्षण लिया था। 1945 में वे प्रचारक बने। उन्होंने गोरखपुर, प्रयाग, बरेली, सीतापुर समेत कई स्थानों पर संघ के लिए कार्य किया। कई बड़े प्रदर्शनी निर्माण जिसमे अखण्ड भारत और कश्मीर विभाजन, देश दर्शन ( कानपुर ), 1950 गोरक्षा प्रदर्शनी, कुम्भ मेला गोरक्षा प्रदर्शनी 1952, 1956 में स्वत्रंता संग्राम प्रदर्शनी, 1974 इमरजेंसी की पूरी कहानी टक्कर लेने वालों की प्रदर्शनी, 1979 द्वितीय विश्व हिंदू सम्मेलन में धर्म गंगा प्रदर्शनी, 1997 से 99 के बीच 2500 कलासाधकों को सम्मानित किया।

बाबा योगेन्द्र मई के पहले सप्ताह में गोरखपुर प्रवास पर आए थे। 11 मई को नौतनवां में उन्हें शादी समारोह में शामिल होने जाना था। उसी दिन उनकी तबीयत अचानक खराब हो गई। उन्हें दिव्यमान हास्पिटल गोरखपुर ले गया। स्वास्थ्य में सुधार न होने पर उन्हें 14 मई को मेदांता हास्पिटल लखनऊ में भर्ती कराया गया। 26 मई को राममनोहर लोहिया संस्थान में भर्ती कराया गया। 10 जून 2022 को अस्पताल में उनकी मौत हो गई।

2018 में, भारत सरकार ने उन्हें कला में पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया, जो देश का चौथा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार है। 2005-2006 में भाऊराव देवरस सम्मान लखनऊ। 2008 अहिल्याबाई राष्ट्रीय पुरस्कार इंदौर। उन्हें कला के क्षेत्र में 2018 में भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म श्री से सम्मानित किया गया था।

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुआ है। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करता रहते हैं।)

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