स्व. बालकवि बैरागी का जन्म 10 फरवरी 1931 को रामपुराग गांव में द्वारिकादास बैरागी एवं धापूबाई बैरागी के घर हुआ थ। उन्होंने अपनी पहली रचना 9 साल की उम्र में लिखी जब वे चौथी कक्षा में पढ़ते थे। यह कविता उन्होंने व्यायाम पर सुनाई थी।
एक कार्यक्रम में उन्होंने अपने जीवन का ये दिलचस्प वाकया बताया था। स्कूल में आयोजित भाषण प्रतियोगिता का विषय था ‘व्यायाम’। चौथी कक्षा की तरफ से नंदराम दास को भी प्रतियोगियों की सूची में डाल दिया। इसके बाद चतुर्वेदी जी ने उन्हें व्यायाम के बारे में कई बातें बताईं। यूँ मेरा जन्म नाम नंदरामदास बैरागी है। वे बचपन में तब अपने पिता के साथ साथ उनके चिकारा या तुनतुना (छोटी सारंगी) पर गाते और बजाते थे। उन्होंने ‘व्यायाम’ को अपने नाम ‘नंदराम’ से तुकबंदी करते हुए आखरी में लिखा –
‘कसरत ऐसा अनुपम गुण है
कहता है नंदराम
भाई करो सभी व्यायाम’।
जब ये पंक्तियाँ उन्होंने अपने हिन्दी अध्यापक पं. पं. श्री रामनाथ उपाध्याय को सुनााई तो उन्होंने इस नन्हें बालक को गले लगाकर कहा, तेने आज अपना भविष्य खुद लिख दिया है, अब सरस्वती माता तेरी जिव्हा पर बिराज गई है। इसके बाद तो सरस्वती की कृपा उन पर जीवन भर बनी रही। लेकिन जब उन्होंने ये कविता भाषण प्रतियोगिता में सुनाई तो तालियाँ तो खूब बजी मगर जब पुरस्कार देने का मौका आया तो छठी कक्षा जीत गई। प्रतियोगिता के निर्णायकों का मत था कि ये भाषण प्रतियोगिता थी, जबकि नंदराम दास ने कविता सुनाई थी। प्रतियोगिता की अध्यक्षता कर रहे प्रधानाध्यापक सकुलीकर ने अन्य निर्णायकों की राय के आधार पर अपना फैसला सुना दिया।मामला साधारण विवाद से लेकर प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया। इस निर्णय पर उनके कक्षा अध्यपक भैरवलाल चतुर्वेदी सबसे भिड़ गए। लेकिन नंदराम दास की कविता का जादू तो सब पर ही छाया हुआ था। आखिरकार प्रधानाध्यापक साकुलिकर खड़े हुए चौथी कक्षा को स्कूल की ओर से विशेष प्रतिभा पुरस्कार देने की घोषणा की। एक बार फिर जोरदार तालियाँ बजी और इस विवाद का सुखद पटाक्षेप हुआ।
नंदरामदास बैरागी उनका असली नाम था. उनका बचपन बेहद गरीबी में बीता मगर स्कूल के शिक्षकों ने उनकी प्रतिभा को बचपन में ही पहचान लिया था और उनको हर तरह से पढ़ने के लिए प्रेरित करते रहे। उनका गरीबी का अंदाज इसी से लगाया जा सकता था कि उनके परिवार को जीवन यापन के लिए भीख माँगना पड़ती थी। खुद बालकवि बैरागी भी अपने माता-पिता के साथ भीख माँगने जाते थे। लेकिन अपने बचपन की इस बात से वे कभी शर्मिंदा नहीं हुए। वे कहते थे मेरे माँ-बाप हमेशा एक ही बात कहते थे, भीख माँगकर खाना अच्छा है मगर कभी चोरी मत करना। कई मंचों पर वे अपने बारे में यही कहते थे कि मैं मंगते से मिनिस्टर बन गया। (मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र में भिखारी को मंगता कहा जाता है)
उनका नाम बालकवि पड़ने का भी किस्सा बड़ा दिलचस्प है। एक बार मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्य मंत्री कैलास नाथ काटजू 1952 में चुनावी सभा में मनासा आए थे। उनके सामने कविता पढ़ने के लिए प्रतिभाशाली नंदराम दास बैरागी को बुलाया गया। उनकी कविता सुनकर काटजू इतने खुश हुए कि इस कवि बालक का नाम ही भूल गए। जब काटजू जी भाषण देने खड़े हुए तो उन्होंने बार बार इस बालक कवि का नाम याद करने की कोशिश की लेकिन अंत में उन्होंने कहा मैं इस बाल कवि की कविता और उसके कविता सुनाने के अंदाज़ से इतना प्रभावित हुआ कि इसका नाम ही भूल गया। तब से उनके स्कूल से लेकर गाँव के लोग उन्हें बालकवि के रूप में ही बुलाने लगे। 1970 से लेकर 1985 का एक दौर था जब बालकवि बैरागी, डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन, नीरज, निर्भय हाथरसी, काका हाथरसी, ओम प्रकाश आदित्य जैसे कवि जब मंच पर आते थे तो हजारों श्रोता कड़कड़ाती ठंड में भी रात भर इनको सुनते थे। तब कवि सम्मेलनों में आज की तरह फूहड़ चुटकुले न तो परोसे जाते थे न श्रोता पसंद करते थे।
उन्होंंने सन् 1964 में विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन से एमए (हिन्दी) प्रथम श्रेणी से की एवं लोकप्रिय कवि तथा साहित्यकार के रूप में पहचान बनाई। आपका विवाह सुशीला चंद्रिका बैरागी से हुआ। जिनका 18.07.2011 को स्वर्गवास हो गया। आपके दो पुत्र हैं। उनके जन्म का नाम नंदराम दास बैरागी था। बैरागी ने 25 से भी अधिक पुस्तकें और कई उपन्यास लिखे हैं। उन्होंने करीब 26 फिल्मों में गीत लिखे। वे पहली बार 1967 में विधायक बने। वे सन् 1969 से 1972 तक पं. श्यामाचरण शुल्क के मंत्रिमंडल में सूचना प्रकाशन, भाषा, पर्यटन और सामान्य प्रशासन विभाग के राज्यमंत्री रहे। इसके बाद 1980 में अर्जुनसिंह के मंत्रिमंडल में खाद्य राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रहे।
1984 से 1989 तक तक लोकसभा सांसद रहे। 1995 से 1996 तक अभा कांग्रेस के संयुक्त सचिव रहे। 1998 में कांग्रेस ने मप्र से राज्यसभा में भेजा। 2004 में राजस्थान के आंतरिक संगठनात्मक चुनावों के लिए बैरागी को चुनाव प्राधिकरण अध्यक्ष बनाया गया। बैरागी 2008-11 तक मप्र कांग्रेस उपाध्यक्ष रहे।
सक्रिय राजनीति में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। बैरागी की गिनती कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में होती थी। वे 1945 से कांग्रेस में सक्रिय रहे। 1967 में उन्होंने विधानसभा चुनाव में प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा को शिकस्त दी थी। 1969 से 1972 तक पं। श्यामाचरण शुक्ल के मंत्रिमंडल में राज्यमंत्री रहे। 1980 में वे मनासा से दोबारा विधायक निर्वाचित हुए। अर्जुनसिंह की सरकार में भी वे मंत्री रहे। 1984 तक लोकसभा में रहे। 1995-96 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी में संयुक्त सचिव रहे। 1998 में मध्य प्रदेश से राज्यसभा में गए। 29 जून 2004 तक वे निरंतर राज्यसभा सदस्य रहे। 2004 में उन्हें राजस्थान प्रदेश कांग्रेस के आंतरिक संगठनात्मक चुनावों के लिए उन्हें चुनाव प्राधिकरण का अध्यक्ष बनाया गया। 2008 से 2011 तक मध्य प्रदेश कांग्रेस में उपाध्यक्ष रहे। मध्य प्रदेश कांग्रेस चुनाव समिति के अध्यक्ष भी रहे हैं। वर्तमान में वे केंद्रीय हिंदी सलाहकार समिति के सदस्य थे।
बैरागी ने हिंदी सिनेमा को अनेक महत्वपूर्ण गीत दिए। रेशमा और शेरा का “तू चंदा मैं चांदनी” आपकी कलम से निकला अविस्मरणीय गीत है। कवि बालकवि बैरागी को मध्यप्रदेश सरकार के संस्कृति विभाग द्वारा कवि प्रदीप सम्मान भी प्रदान किया गया।
साहित्य और राजनीति से जुड़े रहने के कारण उनकी कविताओं में साहित्य और राजनीति की झलक देखने को मिलती है। गीत, दर्द दीवानी, दो टूक, भावी रक्षक देश के, आओ बच्चों गाओ बच्चों बालकवि बैरागी की प्रमुख रचनाएं हैं।
मृदुभाषी व मस्तमौला स्वभाव और सौम्य व्यक्तित्व के धनी बालकवि बैरागी ने अंतरराष्ट्रीय कवि के रूप में नीमच जिले को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया था।
अपनी व्यक्तिगत निष्ठा कांग्रेस के प्रति होने के बाद भी वे हमेशा यही कहते थे- “मैं कलम से कमाता हूँ, कांग्रेस को गाता हूं … खाता नहीं ” ….
स्वर्गीय बालकवि बैरागी की कविताओँ के कुछ अंश
आज मैंने सूर्य से बस ज़रा सा यूँ कहा
‘‘आपके साम्राज्य में इतना अँधेरा क्यूँ रहा ?’’
तमतमा कर वह दहाड़ा—‘‘मैं अकेला क्या करूँ ?
तुम निकम्मों के लिए मैं ही भला कब तक मरूँ ?
आकाश की आराधना के चक्करों में मत पड़ो
संग्राम यह घनघोर है, कुछ मैं लड़ूँ कुछ तुम लड़ो।’’
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जो कुटिलता से जिएंगे
हक पराया मारकर
छलछंद से छीना हुआ
अमृत अगर मिल भी गया तो
आप उसका पान करके
उम्र भर फिर क्या करेंगे ?
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झर गये पात
बिसर गई टहनी
करुण कथा जग से क्या कहनी ?
नव कोंपल के आते-आते
टूट गये सब के सब नाते
राम करे इस नव पल्लव को
पड़े नहीं यह पीड़ा सहनी
झर गये पात
बिसर गई टहनी
करुण कथा जग से क्या कहनी ?
कहीं रंग है, कहीं राग है
कहीं चंग है, कहीं फ़ाग है
और धूसरित पात नाथ को
टुक-टुक देखे शाख विरहनी
झर गये पात
बिसर गई टहनी
करुण कथा जग से क्या कहनी ?
पवन पाश में पड़े पात ये
जनम-मरण में रहे साथ ये
“वृन्दावन” की श्लथ बाहों में
समा गई ऋतु की “मृगनयनी”
झर गये पात
बिसर गई टहनी
करुण कथा जग से क्या कहनी ?
स्व. बालकवि बैरागी की सभी रचनाएँ कविताकोश की इस वेब साईट http://kavitakosh.org/ पर उपलब्ध हैं
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