काफी लंबे अरसे के बाद कोई अच्छी खबर पढ़ने को मिली। यह खबर चीनी सामान का बहिष्कार किए जाने को ले कर है। चीन द्वारा कुख्यात आतंकवादी मसूद अजहर को आतंकवादी घोषित किये जाने की राह में रूकावट खड़े किए जाने से नाराज होकर देश के अंदर सोशल मीडिया पर उसके खिलाफ अभियान छेड़ दिया गया है। मालूम हो कि चीन के विरोध के कारण संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान का समर्थन करते हुए उसने इस आतंकवादी को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित नहीं होने दिया। यह घटना एक बार फिर साबित करती है कि आतंकवाद से त्रस्त इस देश में जब किसी आतंकवादी को परिभाषित करने का मौका आता है तो हर देश अपनी सुविधा के अनुसार परिभाषा बदलता है।
मसूद अजहर वह कुख्यात आतंकवादी है जो मुबंई के आतंकी हमलों से लेकर हाल के पठानकोट के हमलों की साजिश रचता आया है। शायद यह मामला यूं ही ठंडा पड़ा रहता क्योंकि बदला लेना हम भारतीयों के खून में नहीं है। मगर उड़ी पर की गई सर्जिकल स्ट्राइक के बाद हमारा खून भी जोर मारने लगा है। उड़ी में आतंकवादियों द्वारा हमारे जवानों की हत्या के बाद जो आक्रोश पनपा था, उसमें चीन की हरकत ने आग में घी का काम किया है। उससे बदला लेने की जनता के स्तर पर जो कार्रवाई शुरु हुई है वह काबिले तारीफ है। हम कुछ भी दावे करे मगर यह सच है कि हर सरकार चीन से टकराने से डरती आयी है। उसे लगता है कि सामरिक दृष्टि से चीन हमसे दो कदम आगे है।
सन 1962 की हार का बदला लेना तो दूर रहा हम उसके द्वारा लगातार हड़पी जा रही अपनी जमीन तक बचा नहीं पाए है। जब भाजपा सत्ता से बाहर थी तो उसके सांसद किरन रिजिजू, संसद भवन में प्रेस कान्फ्रेंस करके घुसपैठ के प्रमाण जारी किया करते थे। मगर जब से वे गृह राज्य मंत्री बने हैं मानो उनके मुंह में दही जमा दिया गया है।
चीन किस कदर हमारे देश में आर्थिक घुसपैठ कर चुका है इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। घर में जलाई जाने वाली छोटी सी बिजली की लड़ी से लेकर जेनरेटर सैट तक चीन से बनकर आते हैं। दीपावली की मूर्तियों से लेकर पूरी दुनिया में क्रिसमस तक चीन के सौजन्य से मनाया जा रहा है और तो और अब बिस्कुट-टॉफी तक वहां से बनकर आ रहे है। हालांकि उनकी गुणवत्ता को लेकर मन में तमाम संदेह हैं और लोग इनकी ओर आकर्षित नहीं हो रहे हैं। चीन की बढ़ती अहमियत का अंदाजा तो इस बात से लगाया जा सकता है कि भारत की तमाम बड़ी कंपनियां अपना माल चीन में बनवा रही है। कुछ बड़े अंग्रेजी के अखबारों ने चीन में स्थायी तौर पर अपने संवाददाता नियुक्त कर दिए हैं।
हमारे व्यापारियों ने चीन को अपना दूसरा घर बना लिया है। अपने तमाम व्यापारी मित्र चीन में फ्लैट किराए पर लेकर रहने लगे हैं। वहीं हिंदुस्तानी रेस्तरां खुल गए है।
चीन के साथ हमारा व्यापार संतुलन चीन के पक्ष में है। मतलब यह है कि हम उससे जितने मूल्य का सामान निर्यात करते हैं उससे कहीं ज्यादा कीमत का उससे आयात करते हैं। उदाहरण के लिए भारत ने पिछले साल 7222 करोड़ का कागज आयात किया जिसकी सालाना वृद्धि दर 21 फीसदी रही। इसमें अकेले चीन से 1293 करोड़ का कागज मंगवाया गया। हमने 2009-10 में चीन से 1.78 लाख करोड़ का स्टील आयात किया था। 2014-15 में यह बढ़कर 4.27 लाख करोड़ रू का हो गया। बिजली के सामान का तो पूछना ही क्या। सच्चाई यह है कि चीन द्वारा सस्ता माल बेचने के कारण देश में उत्पादन समाप्त होता जा रहा है और हम महज उसके माल के वितरक बन कर रह गए हैं। मेड इन चाइना ने देश के उत्पादन उद्योग को जबरदस्त नुकसान पहुंचाया है। इसके बावजूद चीनी उत्पादों का आयात साल दर साल बढ़ता जा रहा है।
सोशल मीडिया पर बायकाट की अपील जारी करने का जबरदस्त असर हुआ है। मिड डे खबर के अनुसार इस घटना के बाद चीनी माल की मांग में 20 फीसदी तक की कमी आयी है। व्यापार संघ के अध्यक्ष को यह कहते हुए बताया गया है कि अगर लोगों ने चीन को सबक सिखाने की ठान ली तो उसका सबसे बुरा असर भारतीय व्यापारियों पर पड़ेगा। इसकी वजह यह है कि दीवाली करीब होने के कारण लड़ियों से लेकर मूर्तियां तक मंगवाई जा चुकी है। चीनी मांझे पर पहले ही प्रतिबंध लगाया जा चुका था। चीनी पटाखों पर काफी अरसे से प्रतिबंध लगाए जाने की मांग की जाती रही है।
बहिष्कार की अपील का असर नजर आने लगा है। दीपावली के महज तीन हफ्ते पर पिछले साल की तुलना में इस साल दिल्ली के थोक बाजार में चीनी सामान बिक्री में 1000 हजार करोड़ रू की कमी रिकार्ड की गई है। बाकी देश का अनुमान लगाया जा सकता है। इस सामान में बिजली की लाइट, खिलौने, मूर्तियां, सजावटी सामान, प्लास्टिक का सामान शामिल है। आमतौर पर दिल्ली में तो नवरात्रि के बाद कन्याओं को खिलाते समय उन्हें जो उपहार दिए जाते हैं उनमें प्लेट से लेकर बालों के क्लिप तक चीन के ही बने हुए होते हैं। उत्तर भारत के सबसे बड़ी थोक बाजार, सदर बाजार, में एक व्यापारी को यह कहते हुए बताया गया है कि अब ग्राहक यह पूछने लगा है कि क्या हमारे पास भारतीय सामान है। उसके मुताबिक उसे भी अपने सेल फोन पर चीनी माल का बहिष्कार करने का संदेश मिल रहे हैं।
बताते हंै कि इस अभियान के पीछे नरेंद्र मोदी की ओर से जारी किया गया एक पत्र बताया जा रहा है जिसमें उन्होंने लोगों से स्वदेशी सामान खरीदने की अपील की थी। यह पत्र फरजी है पर इसे तैयार कर जारी करने वालों के दिमाग की दाद देनी पड़ेगी क्योंकि इनके फर्जी होने के बाद भी प्रधानमंत्री यह नहीं कह सकते हैं कि इसमें की गई अपील से सहमत नहीं है। यह तो ठीक वैसा है जैसे कि कोई यह कहे कि प्रधानमंत्री ने कहा है कि हमें ईमानदारी और मेहनत के साथ जीवन व्यतीत करना चाहिए। यह पत्र टिवटर, फेसबुक, व्हाटसअप पर वाइरल हो गया। प्रधानमंत्री कार्यालय ने इसके बारे में बस इतना ही कहा कि उन्होंने इसे जारी नहीं किया है।
चीन के प्रति भारतीयों में नाराजगी पुरानी है। पुरानी पीढ़ी अगर अपनी हार को भुला नहीं पाई है तो नई पीढ़ी यह कैसे भूल सकती है कि न्यूक्लियर सप्लाई ग्रुप में चीन भारत को परमाणु ईधन की सप्लाई के मामले में लगातार टांग अड़ाता आ रहा है। वह लगातार पाकिस्तान का समर्थन कर रहा है। ग्वादर बंदरगाह बनाए जाने से लेकर पाकिस्तान में हाइवे निर्माण तक के क्षेत्र में चीन ने जिस तरह से अपना खजाना खोला है, वह सबको पता है। वैसे यह एक अच्छा तरीका है। महात्मा गांधी ने भी आजादी के आंदोलन के दौरान विदेशी सामान का बहिष्कार करने की अपील की थी व उस समय लोगों ने सड़कों पर अपने विदेशी कपड़े जलाए थे। तब इलेक्ट्रानिक्स क्षेत्र में क्रांति नहीं हुई थी व टीवी, सैल फोन सरीखे सामान नहीं हुआ करते थे।
भजन लाल जब मुख्यमंत्री थे तो उनका अपने ही दल के फरीदाबाद के सांसद अवतार सिंह भडाना से झगड़ा हो गया। भडाना ने उन्हें पद से हटाने के लिए अभियान चला रखा था। उनकी पत्थर की खाने थीं जिनसे सोना बरसता था। भडाना ने उन्हें हटाने की मांग को लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री व कांग्रेस अध्यक्ष पीवी नरसिंह राव से मुलाकात की तो भजनलाल ने अगले ही दिन उनकी खानों पर छापे करवा कर नियमों की अनदेखी करने के आरोप में उन्हें जेल में बंद करवा दिया। उस शाम उन्होंने हम पत्रकारों से बातचीत में कहा कि मैं पीठ पर नही पेट पर लात मारता हूं। पीट की मार तो इंसान सहन कर लेता है पर पेट की मार सहन नहीं कर पाता है। मेरे राज्य में मेरी खानों से ही माल कमा रहा है और मेरे खिलाफ अभियान चला रखा है। आज उनकी वह बात याद आ जाती है। सचमुच हमें चीन की पेट पर लात मारनी होगी।
साभार- http://www.nayaindia.com/ से