महाबली अकबर ने गोस्वामी तुलसीदास से कहा- जैसे एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकतीं इसी तरह एक मुल्क में दो महाबली नहीं रह सकते। इसलिए मैं महाबली के क़रीब जाता हूं और उन्हें ख़ुद में समाहित कर लेता हूं। यह दृश्य है असग़र वजाहत लिखित ‘महाबली’ नाटक का। इस नाटक को रंगकर्मी विजय कुमार के निर्देशन में रविवार 9 जून 2024 को केशव गोरे स्मारक ट्रस्ट गोरेगांव के मृणालताई हाल में चित्रनगरी संवाद मंच मुम्बई की ओर से मंचित किया गया। नाटक को दर्शकों ने बहुत पसंद किया और सराहा।
बनारस के संस्कृत के प्रकांड पंडितों ने तुलसीदास का ज़बरदस्त विरोध किया था क्योंकि कि वे प्रभु राम की कथा को लोक भाषा अवधी में लिख रहे थे। ऐसे कुछ दृश्यों के साथ शुरू हुआ यह नाटक एक ऐसे ख़ूबसूरत मुक़ाम पर पहुंचता है जहां अपने दरबारियों के विरोध के बावजूद महाबली अकबर सोने के सिक्कों पर प्रभु राम और माता सीता की तस्वीर अंकित करवाते हैं और उसका नाम ‘रामटका’ रखते हैं। जब अकबर और तुलसीदास की मुलाक़ात होती है तो यह साबित हो जाता है कि लोकभाषा में राम कथा लिखने वाला लोककवि भी महाबली है और उसका दर्जा महाबली बादशाह से ऊंचा है। नाटक इस तथ्य को रेखांकित करता है कि एक स्वाभिमानी रचनाकार के मन में धन दौलत और सत्तासुख के लिए कोई लोभ-लालच नहीं होता।
सभी कलाकारों का अभिनय असरदार था। तुलसी दास (विजय कुमार), अकबर (कृष्णा जैसवाल), अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना (प्रताप बत्रा), टोडर मल (प्रशांत रावत) के साथी कलाकार थे – रागिनी कश्यप, अस्मा ख़ान, राहुल कुमार, सचिन, आशुतोष खरे, अश्वनी, अथर्व, मल्हार, पुष्पेन्द्र शुक्ला, कुन्दन, प्रसून और जितेंद्र नाथ।
नाटक के मंचन के बाद उस पर खुली चर्चा हुई। इसमें कथाकार सूरज प्रकाश, चित्रकार जैन कमल, पत्रकार विवेक अग्रवाल, शायरा लता हया, शायर गुलशन मदान तथा कुछ और गणमान्य लोगों की सहभागिता रही। मराठी भाषी लेखक सुबोध मोरे, अशोक राजवाड़े, रंगकर्मी सचिन सुशील और रंगकर्मी गोकुल राठौर ने अपनी मौजूदगी से आयोजन की गरिमा बढ़ाई।
शुरूआत में ‘धरोहर’ के अंतर्गत लेखक विवेक अग्रवाल ने बाबा नागार्जुन की दो चर्चित कविताओं का पाठ किया। काव्य पाठ के सत्र में चुनिंदा कवियों ने विविधरंगी कविताएँ पेश कीं।
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