पुअर क्रिश्चियन लिबरेशन मूवमेंट ने उन लाेगाें की तरीफ की है जाे कैथोलिक चर्च के भारी दबाव के बावजूद एकजुट होकर ननों काे न्याय दिलाने एवं उनके स्थानांतरण का विरोध करने के लिए आखिर तक डटे रहे। इसी का नतीजा है कि चर्च प्रशासन को चारों ननों का स्थानांतरण रद करना पड़ा।
केरल में दुष्कर्म मामले में आरोपी बिशप फ्रैंको मुक्कल की गिरफ्तारी की मांग करने वाली और गवाह चार ननों के स्थानांतरण आदेश को चर्च प्रशासन ने वापस ले लिया है। उन्हें कॉन्वेंट में तब तक कार्य करते रहने के लिए कहा गया है जब तक मामले की अदालती कार्यवाही पूरी नहीं हो जाती।
चार ननों में से एक सिस्टर अनुपमा ने स्थानांतरण आदेश रद होने की पुष्टि की है। उन्होंने बताया- जालंधर के नए बिशप के पत्र में उन्हें कुरुविलंगाड कॉन्वेंट में बने रहने के लिए कहा गया है। यह स्थिति दुष्कर्म मामले का मुकदमा पूरा होने तक बनी रहेगी। सिस्टम अनुपमा ने बिशप का पत्र जनसभा में पढ़कर सुनाया। यह जनसभा स्थानांतरित की गई चार ननों के समर्थन में आयोजित की गई थी। समाज के सभी वर्गों के लोग इन ननों के कुरुविलंगाड से स्थानांतरण का विरोध कर रहे थे।
21 जनवरी काे पुअर क्रिश्चियन लिबरेशन मूवमेंट के अध्यक्ष आर.एल. फ्रांसिस ने कैथोलिक बिशप कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया (सीबीसीआई) के अध्यक्ष आर्कबिशप फिलिप नेरी फेर्राओ काे पत्र लिख कर मांग की थी कि इस मामले में सुनवाई खत्म होने तक ननों के स्थानांतरण के आदेश प्रभावी नहीं हों।
उल्लेखनीय है कि बिशप फ्रैंको की गिरफ्तारी की मांग करने वाली चार ननों को जनवरी में देश के चार अलग-अलग स्थानों के लिए स्थानांतरण कर दिया गया था। जब उन्होंने मामले में मुख्यमंत्री पिनरई विजयन से हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया तो उन्होंने कुछ नहीं किया।
अपने पत्र में फ्रांसिस ने कहा था कि इस पूरे मामले में कैथोलिक चर्च की मूक भूमिका ने उसके नेतृत्व पर आम भारतीयाें के मन में कई सवाल खड़े किए हैं। वर्तमान समय में जब मामला न्यायालय में विचाराधीन है, और उस पर न्यायालय का फैसला आने तक इन ननाें के स्थानांतरण पर सीबीसीआई को आगे बढ़ कर खुद राेक लगानी चाहिए। फ्रांसिस ने कहा था कि हम पहले भी ऐसे तबादलों के परिणाम देख चुके है, जिसका एकमात्र उद्देश्य पीड़ित काे दुर्बल करना, उसे अपमानित करना और उसके मनाेबल काे ताेड़ना ही हाेता है।
पुअर क्रिश्चियन लिबरेशन मूवमेंट ने उन लाेगाें की तरीफ की है जाे कैथोलिक चर्च के भारी दबाव के बावजूद एकजुट होकर ननों काे न्याय दिलाने एवं उनके स्थानांतरण का विरोध करने के लिए आखिर तक डटे रहे। इसी का नतीजा है कि चर्च प्रशासन को चारों ननों का स्थानांतरण रद करना पड़ा।