फुटकर मुद्रा या छुट्टे पैसों के लिए सिक्के से बेहतर हिन्दी-उर्दू में कोई शब्द नहीं है। दोनों ही भाषाओं में मुहावरे के तौर पर भी इसका प्रयोग होता है, जिसका अर्थ हुआ धाक या प्रभाव पड़ना। मूल रूप से यह लफ्ज अरबी का है मगर हिन्दी में सिक्के के अर्थ में अंग्रेजी से आया। हिन्दी में फकत ढाई अक्षर के इस शब्द के आगे-पीछे कभी कई सारे अक्षर रहे हैं। अरबी में मुद्रा की ढलाई के लिए इस्तेमाल होने वाले धातु के छापे या डाई को सिक्कः (सिक्काह) कहा जाता है जिसका मतलब होता है रुपया-पैसा, मुद्रा, मुहर आदि। इसके दीगर मायनों में छाप, रोब, तरीका-तर्ज आदि भाव भी शामिल हैं। इसीलिए हिन्दी-उर्दू में सिक्का जमाना या सिक्का चलाना जैसे मुहावरे इन्ही अर्थों में इस्तेमाल होते रहे हैं। पुराने जमाने में भी असली और नकली मुद्रा का चलन था।
मुगल काल में सिक्कए-कासिद यानी खोटा सिक्का और सिक्कए-राइज यानी असली सिक्का जैसे शब्द चलन में थे। अरबों ने जब भूमध्य सागर के इलाके में अपना रौब जमाया और स्पेन को जीत लिया तो यह शब्द स्पेनिश भाषा में जेक्का के रूप में चला आया। जेक्का का ही एक अन्य रूप सेक्का भी वहाँ प्रचलित रहा है। मगर वहाँ इसका अर्थ हो गया टकसाल, जहाँ मुद्रा की ढलाई होती है। अब इस जेक्का यानी टकसाल में जब मुद्रा की ढलाई हुई तो उसे बजाय कोई और नाम मिलने के शोहरत मिली जेचिनो के नाम से। जेचिनो तेरहवीं सदी के आसपास सिक्विन शब्द के रूप में ब्रिटेन में स्वर्ण मुद्रा बनकर प्रकट हुआ।
पंद्रहवीं सदी के आसपास अंग्रेजों के ही साथ यह चिकिन या चिक बनकर एक और नए रूप में हिन्दुस्तान आ गया जिसकी हैसियत तब चार रुपए के बराबर थी। यही चिक तब सिक्का कहलाया जब इसे मुगलों ने चाँदी में ढालना शुरू किया। आज ब्रिटेन में सिक्विन नाम की स्वर्णमुद्रा तो नहीं चलती मगर सिक्विन शब्द बदले हुए अर्थ में डटा हुआ है। महिलाओं के वस्त्रों में टाँके जाने वाले सलमे-सितारों जैसी चमकीली सजावटी सामग्री सिक्विन के दायरे में आती है। जाहिर-सी बात है कि सजाने से किसी भी चीज की कीमत बढ़ जाती है। यह भाव स्वर्णमुद्रा की कीमत और उसकी चमक दोनों से जुड़ रहा है। देखा जाए तो अरबी के इस छापे की छाप इतनी गहरी रही कि स्पेनी, अँग्रेजी सहित आधा दर्जन यूरोपीय भाषाओं के अलावा हिन्दी-उर्दू में भी इसका सिक्का चल रहा है। एक अन्य स्वर्णमुद्रा थी गिन्नी जिसका चलन मुगल काल और अंग्रेजी राज में था।
दरअसल गिन्नी का सही उच्चारण है गिनी जो कि उर्दू-हिन्दी में बतौर गिन्नी कहीं ज्यादा प्रचलित है। मध्य काल में अर्थात करीब 1560 के आसपास ब्रिटेन में गिनी स्वर्णमुद्रा शुरू हुई। इसे यह नाम इसलिए मिला क्योंकि अफ्रीका के पश्चिमी तट पर स्थित गिनी नाम के एक प्रदेश से व्यापार के उद्देश्य से ब्रिटिश सरकार ने इसे शुरू किया था। गौरतलब है कि सत्रहवीं सदी में पश्चिमी अफ्रीका के इस क्षेत्र पर यूरोपीय देशों की निगाह पड़ी। अरसे तक यह प्रदेश पुर्तगाल और फ्रांस का उपनिवेश बना रहा। गिनी को अब एक स्वतंत्र देश का दर्जा प्राप्त है। इस क्षेत्र की स्थानीय बोली में अर्थ होता है गिनी का अश्वेत व्यक्ति। आस्ट्रेलिया के उत्तर में प्रशांत महासागर में एक द्वीप समूह है न्यूगिनी जिसके साथ लगा गिनी नाम भी अफ्रीकी गिनी की ही देन है। इस द्वीप का पुराना नाम था पापुआ। मलय भाषा परिवार के इस शब्द का अर्थ होता है घुँघराले बाल। स्पेनियों ने इस द्वीप को यह नाम यहाँ के मूल निवासियों को इसी विशेषता के चलते दिया। दिलचस्प है कि अफ्रीकी गिनी का नाम भी उसके मूलनिवासियों के रंग के आधार पर पड़ा था। इस इस द्वीप का पश्चिमी हिस्सा इंडोनेशिया का हिस्सा है जबकि पूर्वी हिस्सा पापुआ न्यूगिनी कहलाता है और स्वतंत्र देश है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और हिन्दी शब्दों को लेकर उन्होने ज़बर्दस्त शोध किया है और शब्दों के मूल से उनकी आज तक की यात्रा को बेहद रोचक अंदाज़ में प्रस्तुत किया है)
साभार- http://www.hindisamay.com/ से