डीएम साहब का रवैया एक कर्मकांडी ब्राह्मण के साथ उस रात जैसा रहा उसके दृष्टिगत दो कहानी मैं आप लोगों को सुनाता हूं जो सच्ची घटना पर आधारित है, पहली कहानी ब्रिटिश काल की है।
नाव से सरयू नदी पार करते हुए एक सिपाही नाव पर ही बैठे हुए दो ब्राह्मणों को परेशान कर रहा था। अपने हाथ में लिए हुए भाले से ब्राह्मणों के कभी पेट में कभी पैर में थोड़ा सा चोंक देता था दर्द से ब्राह्मण थोड़ा सा उछलने लगते थे सिपाही को बहुत मजा आ रहा था ब्राह्मणों के उछलने पर, वह खिलखिला कर हंसने लगता था और फिर कुछ देर बाद इसी तरह करता था।
उन ब्राह्मणों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं की सब प्रभु को समर्पित कर दिया, नदी के उस पार नाव पहुँच गई सब लोग उतरने लगे सिपाही अपने भाले को नदी के किनारे रखकर उसी के सहारे कूदकर रेत पर जाना चाहता था जिससे उसका बूट पानी से ना भीगे, लेकिन सहसा जैसे ही सिपाही ने भाले को नदी के किनारे रखकर कूदने का प्रयास किया तुरंत भाला दलदल में धंस गया सिपाही का बैलेंस बिगड़ा और सिपाही उसी भाली पर गिर गया चूँकि भाले की नोक ऊपर की तरफ थी इसलिए सिपाही के पेट में भाला घुस गया और पेट के उस पार हो गया।
आनन-फानन में सभी लोगों ने उस सिपाही को बचाने का प्रयास किया परंतु मौके पर ही उसकी मृत्यु हो गई।
यह पूरी घटना उन दोनों ब्राह्मणों ने अपने गुरु जी से बताइ गुरुजी ने अपने सड़से से दोनों को मारते हुए कहा कि तुम लोगों ने भगवान को क्यों समर्पित कर दिया, कोई प्रतिक्रिया क्यों नहीं की।अगर तुम लोगों ने प्रक्रिया दे दी होती तो उस सिपाही को इतना बड़ा दंड ना मिलता।
इसलिए कभी भी किसी असहाय का किसी संत का किसी ब्राह्मण का या प्रभु के भक्त का अपमान नहीं करना चाहिए और यदि कर दिए और प्रतिक्रिया नहीं मिली तो समझिए अत्यंत खतरनाक सिद्ध होगा।
दूसरी घटना प्रयागराज कुंभ मेले की है, दूर दूर से संत स्नान करने के लिए आए हुए थे आवश्यकता पड़ने पर सड़क से सभी लोगों को हटाने का आदेश आया, शायद कोई नेता आ रहा था या कोई आवश्यकता पड़ी थी ,दरोगा साहब सिपाहियों के साथ सड़क को खाली करा रहे थे,
एक संत रास्ते में थके हारे बैठे हुए थे दरोगा साहब दो चार बार संकेत किए हटने के लिए परंतु बुजुर्गता के कारण संत को अपने सामान को समेटने में समय लगा तो दरोगा साहब गाड़ी से उतर कर पास जाकर अपने पैर से उस संत को मारते हुए बोले की भागता है या घसीटते हुए यहां से ले जाऊँ, संत भगवान दीन नजर से उसको देखने लगे और उन्होंने बस इतना ही कहा कि बिना किसी गलती के आपने मुझे अपने पैरों से मारा है ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा बस इतना कहूंगा कि यह पैर आपके काम नहीं आएगा, कुछ दिन बीता और किसी कारण बस दरोगा साहब को अपना दाहिना पैर कटा देना पड़ा।
भविष्य में दरोगा साहब का लड़का भी पुलिस की नौकरी पाया, ट्रेनिंग के समय जाते हुए दरोगा साहब ने पास बुला करके उससे दीन स्वर में कहा कि बेटा एक प्रार्थना है तुमसे की कभी किसी संत का किसी ब्राम्हण का किसी असहाय का अपमान मत करना। मैंने एक संत का अपमान किया था जिसका परिणाम आज भुगत रहा हूँ। एक कर्मकांडी ब्राह्मण जिसके मुखारबिन्दु से प्रतिदिन प्रभू की वंदना होती है जो सदैव प्रभु के प्रेमाभाव में आसक्त रहता है उसका अपमान प्रभू के अपमान के समतुल्य है।
आपको पता लगेगा कि डी एम का वह हाथ लकवाग्रस्त हो गया है। जब लग्न लगते हैं तो मंत्र पढ़ते हैं।तदैव लग्नं सुदिनं तदैव,तारा बलं चंद्र बलं तदैव। विद्या बलं देव बलं तदैव …..स्मरामि।। अब इसमें देखिएगा कि सबकी बलशाली स्थिति में लग्न लगते हैं । और जो इन्हें उस लग्नया समय पर बलवान बनाने में सहयोगी हो वह ब्राह्मण और आप कल्पना करें कि उस समय उसको प्रताड़ित करने से उसको सभी परेशानी आएगी।
साभार –https://www.facebook.com/kumbhindiain/ से