गणेशजी और कंप्यूटर में क्या वाकई में कोई समानता है और क्या दोनों की कार्यप्रणाली भी एक जैसी है, गणेश चतुर्थी के मौके पर पढ़िए यह रोचक और शोधपूर्ण आलेख।
ओम गण गणपत्ये नम:
ओम सन गणकाया नम:
हमारी प्राचीन परंपरा में भगवान श्री गणेश को प्रथम पूज्यनीय देवता का सम्मान दिया गया है। किसी भी कार्य या धार्मिक अनुष्ठान को प्रारंभ करने के पहले हम भगवान गणेश की ही पूजा अर्चना करते हैं। श्री गणेश को सभी अपना देवता मानते हैं, अलग-अलग धर्मो व मतों को मानने वाले लोग भी भी भगवान गणेश को पूजते हैं। भगवान श्री गणेश शिव, दुर्गा और ब्रह्मा की ही तरह स्वयंभू देवता हैं। वे एकदंत के नाम से भी जाने जाते हैं उनका यह नाम उनके संवाद करने की गति और लिप्यांतर की विशेषता को दर्शाता है। (यह माना जाता है कि व्यास मुनि के शब्दों को गणेशजी ने ही महाभारत के रूप में लिपिबध्द किया था।)
सिध्दि विनायक के रूप में वे सभी शक्तियों के, धन वैभव और संपन्नता के अधिष्ठाता देवता हैं। विघ्नेश्वर के रूप में वे हर तरह की विपदा और संकटों को हरने वाले देवता हैं। वे गणपति गणनायक के रूप में भी पूजे जाते हैं। वे सभी देवताओं में अग्रणी हैं, वे जन-जन के तो प्रिय देवता हैं ही, सभी तरह की नकारात्मक तत्वों को नियंत्रित करने की शक्ति भी उनमें है।
भगवान गणेश सभी परिणामों के कारक हैं, किसी भी कार्य या आयोजन की शुरूआत के पहले उनका आशीर्वाद फलदायी सिध्द होता है। भगवान श्री गणेश हमारे शरीर में विद्यमान योग के प्रथम चक्र मूलाधार चक्र के अधिष्ठाता देवता हैं। यह चक्र हमारे शरीर के मेरूदंड के आधार पर स्थित है। इस चक्र पर पृथ्वी तत्व और मंगल ग्रह का प्रभुत्व है।
उनका वाहन है चूहा जो प्राय: भूमिगत ही रहता है। कोई भी व्यक्ति पृथ्वी तत्व के दूसरी ओर (यानि पाताल लोक में) या स्वर्ग में गणेशजी की आज्ञा और कृपा के बिना प्रवेश नहीं कर सकता है। योग के सिध्दांतों के अनुसार, भगवान श्री गणेश सूक्ष्मतम स्वरूप में मस्तिष्क के तल पर भी विराजते हैं। कोई भी व्यक्ति किसी भी देवता को ऊर्जा के विविध स्वरूपों में भगवान श्री गणेश के माध्यम से अनुभूत कर सकता है। हमारी प्राचीन परंपंराओं में, अथर्ववेद की वैदिक ऋचाओं में भगवान श्री गणेश को सूर्य, चंद्रमा, अग्नि, वायु और स्वर्ग के राजा इंद्र के रूप में पूजा गया है ।
प्राचीन काल से ही भगवान श्री गणपति को पूरी दुनिया में पूजा जाता है। यही वजह है कि मंदिरों और मूर्तियों के रूप में हर जगह उनके पहचान चिन्ह दिखाई देते हैं। भगवान श्री गणेश के हाथी वाले सिर को लेकर सबसे लोकप्रिय और महत्वपूर्ण कथा है। एक बार आदि माया शक्ति पार्वती ने भगवान श्री गणेश की रचना अपने प्रिय पुत्र के रूप में की ताकि कोई भी अवांछित शक्ति उन तक नहीं पहुँच सके। इस पर भगवान गणेश ने भगवान शिव को भी, जो आदि शक्ति की पौरुषिक तल की अभिव्यक्ति के स्वरूप हैं, पार्वती कै पास जाने से रोक दिया। इस पर भगवान गणेश और शिव के बीच विवाद हुआ। इस विवाद में भगवान शिव ने गणेशजी का शिरोच्छेदन कर दिया । लेकिन बाद में संपूर्ण सृष्टि की माँ स्वरूपा पार्वती के कोप से भयभीत होकर ब्रह्मांड भगवान शिव ने गणेशजी के सिर पर तत्काल हाथी का सिर लगा दिया गया। उसी दिन से उनका नाम गजानन पड़ा और तब से ही भगवान गणेश को किसी भी कार्य को शुरू करने के पहले पूजने की परंपरा की शुरूआत हुई।
ओम गण गणपत्ये नम:-ओम सन गणकाया नम:
यानी कॉस्मिक कंप्यूटर
आदिकालीन मान्यता थी कि कलियुग में भगवान गणेश को मुख्य देवता के रूप में पूजा जाएगा। इस बात पर मैने गहराई से विचार किया तो मुझे लगा कि आज हम लोग कंप्यूटर युग में जी रहे हैं। कंप्यूटर हमारे जीवन का एक अहम हिस्सा हो गया है। तो क्या हम कंप्यूटर के परिप्रक्ष्य में गणपति के बारे में विचार कर सकते हैं? एक कॉस्मिक कंप्यूटर की कल्पना के रूप में? गणपति को लेकर प्रचलित दंत कथाओं और उनसे जुड़ी घटनाओं को अगर देखें तो हम पाते हैं कि कंप्यूटर का गणपति से सीधा तालमेल बैठता है। अगर इन दोनों की तुलना करें तो हम भगवान गणेश के माध्यम से कंप्यूटर की कई बातें जान सकते हैं।
हम कंप्यूटर और इसके काम करने के तरीके को इस तरह से भी देख सकते हैं। कंप्यूटर का मुख्य सर्वर कंप्यूटर की हार्ड डिस्क की मेमोरी पर सुरक्षित रहने वाले सभी अंकों और संख्याओं पर नियंत्रण रखता है। जिस कंप्यूटर में हार्ड डिस्क की क्षमता जितनी ज्यादा होगी वह उतना ही ज्यादा उपयोगी होगा। यहाँ र्वर/कंप्यूटर गणेशजी के मुख्य आकार का प्रतिनिधित्व करता है। उनका विशाल उदर कंप्यूटर की हार्ड डिस्क की स्टोरेज क्षमता के साथ कंप्यूटर के संपूर्ण हार्डवेअर का प्रतिनिधित्व करता है। यह हार्डवेअर पृथ्वी तत्व से संबंधित है और इसके अंतर्गत कंप्यूटर जो कार्य करता है वह आकाश तत्व का प्रतिनिधित्व करता है।
मॉनीटर जो कंप्यूटर में अलग से जोड़ा जाता है, वह कंप्यूटर के सिर और चेहरे की तरह है। इसका आकार तुलनात्मक रूप से बड़ा होता है और इसके दोनों ओर स्पीकर भी लगे होते हैं । यह हमें गणेशजी पर लगाए गए हाथी के विशाल सिर (वक्र तुंड) का आभास देता है। की बोर्ड माउस और इससे जुड़े तार हाथी की सूंड जैसे लगते हैं।
जिस तरह एक चूहा भगवान गणेश के सभी गतिविधियों को नियंत्रित करता है, ठीक उसी तरह कंप्यूटर पर किए जाने वाले सभी कार्य माउस से नियंत्रित होते हैं। जब भी हम चूहे के बारे में सोचते हैं तो सबसे पहले हमारे मन में उसके तीखे दाँतों और उसके काटे जाने का ख्याल पैदा होता है। कंप्यूटर के माउस के भी दो दाँत होते हैं- बाँया और दाँया बटन, जिनका सबसे ज्यादा उपयोग किया जाता है। इसका दाँया बटन कंप्यूटर में मौजूद आवश्यक सामग्रियों ओर सुविधाओं की जानकारी उपलब्ध कराता है-इसका उपयोग यदा कदा ही होता है । इसकी तुलना हम गणपतिजी के एक टूटे दाँत से कर सकते हैं (गणेशजी को एक दंत देवता के रूप में भी पूजा जाता है), जबकि बाँया बटन या गणेशजी का बाँया दाँत लगातार उपयोग में आता है। कंप्यूटर पर काम करने के लिए यब बहुत जरुरी है कि बिजली निरंतर मिलती रहे (यानि माँ शक्ति की कृपा) और इसके साथ ही ठंडा वातावरण भी। हमारे यहाँ मान्यता है कि भगवान गणेश की पूजा के लिए दुर्वा (तीन पत्तियों वाली घाँस) का विशेष महत्व है, जिसकी तासीर में शीतलता है, और इसे गणेशजी के आसपास शीतल वातावरण रखने के लिए चढ़ाया जाता है।
भगवान श्री कॉस्मिक गणेश
अन्य देवता भगवान राम, कृष्ण या बुध्द आदि ने इस पृथ्वी पर अवतार लिया और एक सामान्य मनुष्य की तरह जीवनयापन किया, जबकि भगवान गणेश अथवा गणपति इसके पहले बा्रह्मणस्पति के रूप में जाने जाते थे और उन्हें वैदिक देवता का सम्मान प्राप्त था। वे शब्दों के उच्चारण, संवाद और किसी भी वस्तु के जाँचने, परखने व निर्णय लेने की शक्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। श्री गणेश को कई नामों से पुकारा जाता है जो उनकी अलग-अलग शक्तियों और विशेषताओं के प्रतीक हैं।
भगवान श्री गणेश विघ्नकर्ता और विघ्नहर्ता दोंनों ही रूपों में जाने जाते हैं- अर्थात अगर विधि विधान से उनकी पूजा अर्चना नहीं की गई तो वे किसी भी तरह संकट पैदा कर सकते हैं और उनकी पूजा अर्चना की जाए तो वे हर कार्य को सरल बना देते हैं। ठीक उसी तरह कंप्यूटर भी काम करता है, हमारा कंप्यूटर हर तरह की समस्या का समाधान कर सकता है, और हमसे जरा सी चूक हो जाने पर सब काम ठप्प भी कर देता है ।
ऋध्दि और सिध्दि दो दैवीय शक्तियाँ हैं, जो भगवान गणेश से सीधे जुड़ी हैं, उन्हें हम कंप्यूटर के प्रिंटर और स्कैनर की तरह समझ सकते हैं, सिध्दि अतिरिक्त सुविधाओं का प्रतिनिधित्व करती है, और ऋध्दि इंटरनेट कनेक्शन का-जो इसके ब्रह्मांडीय स्वरूप का विस्तार है।
संपूर्ण कंप्यूटर डिज़िटल अंकों, ग्राफिक्स, शब्दों और ध्वनि के समन्वयन से कार्य करता है। यह पूरा विज्ञान गणेश विद्या (यानि संख्याओं को व्यवस्थित रखने और अक्षरों को लिखने की कला) जिसका सीधा संबंध संप्रेषण के मूल्यांकन और निर्णय लेने की क्षमता से है। देवनागरी लिपि की संरचना ही गणेश विद्या के रूप में की गई है- जो वैज्ञानिक विधि से बने ग्राफिक और ध्वनि की तरंगों पर आधारित है । (देश के जाने माने पुरातत्ववेत्ता पद्मश्री स्वर्गीय डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर ने अपने शोध पत्र में इसका विस्तार से उल्लेख किया है)
‘दम अथर्वशीर्षम असहिश्य ना देवम’ का अर्थ है पासवर्ड (कूटशब्द) बहुत महत्वपूर्ण होता है, इसे गोपनीय बनाए रखना चाहिए और किसी भी अनाधिकृत व्यक्ति को इसका पता नहीं लगना चाहिए। यही बात व्यक्तिगत मंत्रों व स्तोत्रों पर भी पूरी तरह से लागू होती है।
हम सबसे पहले कंप्यूटर या सर्वर को चालू करते हैं, इसके बाद मॉनीटर को और फिर साउंड स्पीकर को। यही बात अथर्वशीर्ष में दिए गए एक श्लोक में भी कही गई है । गणादीन छूर्वमुचर्या, वर्णादीन तदंतरम, अनुस्वराह परतराह- इसका अर्थ है सबसे पहले गणों को (मुख्य कंप्यूटर को), इसके बाद शब्दों को प्रकट करने वाले (मॉनीटर को) और फिर ध्वनि (साउंड स्पीकर) को स्मरण करें। श्री गणेश हमें ज्ञान, सर्जनात्मकता, एक दूसरे से संवाद स्थापित करने की शक्ति और नेतृत्व का गुण प्रदान करने वाले देवता हैं। कंप्यूटर के अंदर भी यही शक्ति होती है।
हमारे यहाँ परंपरा है कि हम हर साल भाद्रपद (सितंबर माह) में भगवान श्री गणेश की एक नई प्रतिमा लाते हैं और इसके बाद उसे विसर्जित भी करते हैं। हम इस परंपरा को कंप्यूटर को उन्नत करने और आवश्यकता के अनुरूप उसे बदलने से जोड़कर देख सकते हैं। बाह्यजगत के कामकाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए कंप्यूटर गणेश की पूजा करना यानि उसकी देखभाल करना हमारे लिए अपरिहार्य हो है । अगर हम हमारे दिन-प्रतिदिन के कामकाज को व्यवस्थित करने से लेकर अध्यात्मिक जीवन में भी ऊपर उठना चाहते हैं तो हमें कॉस्मिक गणेशजी की पूजा अनिवार्य रूप से करना ही चाहिए। किसी भी नए काम को शुरू करने के पहले उसकी सफलता के लिए हम भगवान गणेश की पूजा कर उनका आशीर्वाद लेते हैं।
ओम गह गणपत्ये नम:
(डॉ. श्री बालाजी तांबे दुनिया के प्रसिध्द आयुर्वेदाचार्य हैं और विगत कई दशकों से दुनिया भर में आयुर्वेद, भारतीय संगीत और प्राचीन भारतीय वैदिक जीवन पध्दति को लेकर व्याख्यान दे रहे हैं। उन्होंने मुंबई के पास लोनावाला कार्ला में आत्म संतुलन ग्राम के नाम से एक आयुर्वेदिक स्वास्थ्य केंद्र भी स्थापित किया है,जहाँ प्राचीन भारतीय आयुर्वेदिक पध्दति से पारंपरिक इलाज किए जाने के साथ ही वैदिक जीवन पध्दति की दिनचर्या अपनाई जाती है। बालाजी ने अपनी चिकित्सा पध्दति में आयुर्वेद के साथ ही भारतीय शास्त्रीय संगीत, योग और आहार को भी शामिल किया है। उनके इस प्रयोग से हजारों लोगों को असाध्य बीमारियों से मुक्ति मिली है।)
डॉ. श्री बालाजी तांबे की वेब साईट