देश में सामाजिक बदलाव लाने की मंशा से भारतीय लोग परोपकार पर ज्यादा पैसे खर्च कर रहे हैं। दानदाता अपने संसाधनों का ज्यादा इस्तेमाल कर सामाजिक समस्याओं को दूर करने का प्रयास कर रहे हैं।
ब्रिजस्पैन ग्रुप की ओर से जारी की गई एक रिपोर्ट के मुताबिक दानदाता टीबी जैसे गंभीर बीमारी के खात्मे और ग्रामीण किसानों को गरीबी के कुचक्र से बाहर निकालने जैसे मसलों पर अपने धन का इस्तेमाल कर रहे हैं। दानदाता बढ़ती शहरी आबादी के मद्देनजर देश की नगरीय सेवाओं को सुधारने में भी मदद कर रहे हैं। यही नहीं परोपकारी लोग सीखने की क्षमता को बेहतर बनाने की दिशा में भी अपना योगदान दे रहे हैं।
रिपोर्ट जारी होने के मौके पर कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय के सचिव केपी कृष्णन ने कहा, “भारत में सरकारी खर्च देश की जीडीपी के एक चौथाई हिस्से के बराबर है। यह महज सयोग नहीं है कि 1990 के दशक में देश में ज्यादा धन आने के साथ दान करने की प्रवृत्ति फिर से बढ़ी है।”
गूगल और टाटा की पहला ‘इंटरनेट साथी’
इस रिपोर्ट में आठ ऐसी पहल के बारे में ध्यान खींचा गया है जिनसे समाज में सकारात्मक बदलाव आ रहा है। गूगल और टाटा ट्रस्ट की ‘इंटरनेट साथी’ भी ऐसी ही एक पहल है।
‘इंटरनेट साथी’ के तहत डेढ़ करोड़ ग्रामीण महिलाओं को डिजिटल साक्षर बनाने के लिए स्थानीय महिलाओं से ही प्रशिक्षण दिलाया जाता है।
टीबी जैसी गंभीर बीमारी की रोकथाम के क्षेत्र में ‘बिल और मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन’ लंबे समय से सक्रिय है।
दान की राशि 5 सालों में बढ़कर 2.20 लाख करोड़ हुआ
बेन एंड कंपनी की 2017 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में साल 2010-11 में परोपकार पर डेढ़ लाख करोड़ रुपए खर्च किए गए थे। साल 2015-16 तक यह राशि सालाना 9 फीसदी की दर से बढ़कर 2.20 लाख करोड़ रुपए पर पहुंच चुकी है। ब्रिजस्पैन ग्रुप की वैश्विक गैर-लाभकारी संगठन है। यह परोपकार के कार्यों के बारे में सलाह देता है।
रिपोर्ट में इन भातीयों का जिक्र
इंफोसिस के सह-संस्थापक क्रिस गोपालकृष्णन की पहल सेंटर फॉर ब्रेन रिसर्च, नंदन नीलेकणी और खोसला लैब्स के सीईओ श्रीकांत नादमुनी द्वारा फंडेड ई-गवर्नमेंट्स फाउंडेशन का भी जिक्र है।
‘ईगांव’ ने ओपन-सोर्स डिजिटल प्लेटफॉर्म बनाया है। इंटरनेट पर उपलब्ध यह प्लेटफॉर्म शहरों में म्युनिसिपल सुविधाएं मुहैया कराने में मदद करता है।