इस माह के आरंभ में मैं दिल्ली उच्च न्यायालय में थी जहां कई वकीलों ने दिल्ली सरकार की कार चलाने की सम-विषम योजना को लेकर याचिकाएं दायर कर रखी थीं। उनकी दलील थी कि इस योजना के चलते लोगों की असुविधा बढ़ी है और रोज के प्रदूषण संबंधी आंकड़ों में हवा की गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं दिखा है। उनका यह भी कहना था कि प्रदूषण के लिए कारें कतई जवाबदेह नहीं हैं।
मैंने यह दलील सर्वोच्च न्यायालय में भी सुनी थी। अदालत, शहर में वायु प्रदूषण कम करने के लिए तत्काल आवश्यक कदम उठाने संबंधी हमारी अपील पर सुनवाई कर रही थी। देश के सबसे नामचीन वकील उस वक्त अदालत में मौजूद थे। उनमें से ज्यादातर पूर्व मंत्री थे। ये सभी वाहन कंपनियों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। वे अदालत के उस निर्णय के विरुद्ध थे जिसमें उसने कहा था कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में 2,000 सीसी से अधिक क्षमता के नए डीजल वाहन नहीं बिकेंगे। यह वह इलाका है जहां बहुत बड़ी तादाद में कार्यालय मौजूद हैैं। इन वकीलों की दलील थी कि उनके डीजल से चलने वाले वाहन बहुत अधिक साफ-सुथरे हैं। दलीलें इस कदर आक्रामक थीं कि अन्यथा शांत और संयमित रहने वाले देश की सर्वोच्च अदालत के प्रधान न्यायाधीश को कहना पड़ा, ‘तो क्या वे ऑक्सीजन उगलते हैं?’
उनकी दलीलें इस प्रकार हैं: वायु प्रदूषण के लिए वाहन जवाबदेह नहीं हैं, अगर वे हैं भी तो कारें तो कतई नहीं हैं। ज्यादा उत्सर्जन ट्रकों और दोपहिया वाहनों से होता है। खैर अगर कारें उत्तरदायी हैं भी तो डीजल से चलने वाले हमारे नए वाहन तो बिल्कुल नहीं हैं। जाहिर है दिल्ली को साफ रखने के लिए कुछ और करने की जरूरत है। इसलिए इन वाहनों की बिक्री जारी रहने दीजिए और हमें ये गाडिय़ां चलाने दीजिए। अब जरा तथ्यों को समझते हैं। आज यह स्पष्ट है कि दिल्ली में वायु प्रदूषण की दो प्रमुख वजहें सड़क की धूल और वाहन हैं। वहीं प्रदूषण के अन्य स्रोत बिजलीघरों में प्रयुक्त कोयला, उद्योगधंधे और खाना पकाने के काम आने वाला जैव ईंधन है। कहना नहीं होगा कि इन सभी के विरुद्ध कदम नहीं उठाए गए। यह भी सच है कि जब तक वाहनों की तेज वृद्धि रोकने के लिए उपाय नहीं किए गए तब तक वायु प्रदूषण को रोकने की कोई योजना कारगर नहीं साबित होने वाली। यह भी स्पष्ट है कि सड़क की धूल को नियंत्रित करने के लिए लंबी कार्य योजना आवश्यक है। इसके तहत सड़क के दोनों ओर हरे भरे पथ निर्मित करने होंगे। लेकिन सड़क पर धूल उड़ाने में वाहनों की भी भूमिका होती है। हम जितना अधिक वाहन चलाते हैं उतनी ही ज्यादा धूल उड़ती है। वाहनों का धुंआ उसमें मिलकर उसे बहुत अधिक जहरीला बना देता है। इस तरह देखें तो शहरी धूल केवल धूल नहीं बल्कि विष के समान है।
क्या सभी वाहनों में कार और डीजल गाडिय़ों को दोष देना चाहिए? जी हां, और उसकी वजह मैं बताती हूं। वाहनों को तीन बड़े हिस्सों में बांटा जा सकता है, ट्रक, दोपहिया और कार। दिल्ली में बसें और दोपहिया वाहन पहले ही सीएनजी पर चलने लगे हैं जो डीजल की तुलना में बहुत कम प्रदूषण फैलाते हैं। ट्रक प्रदूषण के लिहाज से बहुत बुरे हैं। वे न केवल पुराने और ओवरलोड रहते हैं बल्कि वे पुरानी तकनीक और डीजल पर चलते हैं। यही वजह है कि सेंटर फॉर साइंस ऐंड एन्वॉयरनमेंट ने ट्रकों के प्रदूषण पर विस्तृत अध्ययन किया और यह मांग की कि अगर ये वाहन दिल्ली से गुजरते हैं तो इन पर पर्यावरण क्षतिपूर्ति कर लगाया जाए। हमने यह मांग भी की थी कि तत्काल स्वच्छ ईंधन और तकनीक को अपनाया जाए। सर्वोच्च न्यायालय ने हमारी बात सुनी और कर लगा दिया। दिल्ली में इस समय 20 प्रतिशत कम ट्रक हैं। केंद्र सरकार ने भी हमारी बात सुनी और यूरो6 मानक अपनाने का निर्णय लिया। कार्बन उत्सर्जन का यह मानक सन 2020 तक डीजल वाहनों के उत्सर्जन में नाटकीय सुधार कर सकता है। इससे बहुत बड़ा बदलाव आ सकता है। कहना न होगा कि उस दिन सर्वोच्च न्यायालय में तमाम बड़े वकीलों ने इसका भी जमकर विरोध किया।
इसके बाद निजी वाहनों की बारी आती है जिनमें दोपहिया वाहन इतने ज्यादा हैं कि वे स्वत: उत्सर्जन में बड़े हिस्सेदार हो जाते हैं। वाहनों के कुल उत्सर्जन में कारों का योगदान 10-15 फीसदी है लेकिन सड़क पर जाम में इनकी हिस्सेदारी बहुत ज्यादा है। यही वजह है कि भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर ने एक अध्ययन में पाया कि दिल्ली के कार से घने जाम वाले इलाकों में, खासतौर पर डीजल कार वाले इलाकों में विषाक्त सूक्ष्म कणों की तादाद बहुत ज्यादा है। यह भी पाया गया कि नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसी गैसों तथा डीजल वाहनों से हुए उत्सर्जन और कोयला जलाने से हुए उत्सर्जन की वजह से भी दिल्ली की हवा प्रभावित हो रही है। इस प्रकार कारें उनमें भी स्वच्छ करार दी जा रही नई डीजल कारें जिनको पेट्रोल की तुलना में सात गुना उत्सर्जन की कानूनी छूट मिली हुई है, वे प्रदूषण के लिए काफी हद तक उत्तरदायी हैं। यही वजह है कि दिल्ली में लाई गई सम-विषम योजना ने प्रभाव डाला। इन जाड़ों में मौसम प्रदूषण के लिहाज से बेहद खराब रहा। यह सच है कि सम-विषम योजना के पहले सप्ताह में प्रदूषण का स्तर बढ़ा लेकिन ऐसा मौसम के कारण हुआ था। लेकिन आधी कारों को सड़क से हटाने का फैसला प्रदूषण से निपटने के लिहाज से अहम था। यह एक बड़ी उपलब्धि है।
दीर्घावधि का हल यही है दिल्ली और उसके आसपास के इलाके को दोपहिया वाहनों और कारों से पूरी तरह मुक्त करा दिया जाए। ऐसा केवल तभी संभव है जबकि हम सार्वजनिक परिवहन में ठोस निवेश करें। आज दिल्ली और आसपास की केवल 10-15 फीसदी आबादी ही कार चलाती है लेकिन इतने भर से काफी समस्या और प्रदूषण पैदा हो रहा है। ऐसे में प्रदूषण से निपटने के लिए हमें सम-विषम को अपनी जीवनशैली का हिस्सा बनाना होगा। हमें कार साझा करनी होगी या फिर बस, मेट्रो, साइकिल अथवा अपने कदमों का सहारा लेना होगा।
साभार- http://hindi.business-standard.com/से