Wednesday, March 19, 2025
spot_img

दहेज

दहेज़ की वेदी पर,
स्वाहा हो गया बहुत कुछ ,,
कभी पिता की कमाई
कभी भाई के अरमान सारे,,,,

सोचती रहती मां बेटी के लिए
हर एक दिन जो बीतता
दे कर हर सुख सुविधा
शायद खरीद लूं खुशियां,,,,

भूल जाती है जाने क्यू वो
वो भी तो लाई थी दान
फ़िर कहा गई उसके हिस्से
की सारी खुशियां, सारे अरमान,,,,

बेटियां कोई बेकार सामान नही
बाप,भाई की कमर तोड़े
ऐसा कोई ब्याज का दाम नहीं
बंद कर दो समझना बोझ इसको
यह घर की शान है, कबाड़ नहीं,,,,,

जब वक्त और पैसा दोनो बराबर
बेटा और बेटी की परवरिश बराबर
फिर शादी में खर्चा भी हो बराबर
यह होगा तब ही समाज होगा बराबर ,,,,,

रेणु सिंह राधे, कोटा (राजस्थान)

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार