विपरीत परिस्थितियों में भी कुछ खास करने की ललक ने शारीरिक अक्षम युवाओं को उसमें महारत दिला दी जिसके लिए लोग उन्हें अक्षम समझ रहे थे। कला ने वो कमाल किया, जिसकी उम्मीद खुद उन्हें भी नहीं थी। जिनके हाथों की सिकुड़ी उंगलियां खुलती तक नहीं थी, वे अब तबले पर थाप दे रहे हैं। जो युवती पैर से लाचार थी वह कथक नृत्य में पारंगत हो रही हैं। खारी कुआं के सिद्धांत दास के लिए तबला वादन वरदान साबित हुआ। तीन साल की उम्र में ही हाथ-पैर बेदम हो गए। मां शिबली और पिता मृत्युंजय दास चिकित्सकों के पास भटके। दवा और फिजियोथेरेपी से खास फायदा नहीं हुआ। चचेरे भाई को देखकर सिद्धांत के मन में तबला बजाने का शौक पला। माता-पिता शहर के कई गुरुओं के पास ले गए लेकिन उंगलियां टेढ़ी होने से सभी ने उसे तबला सिखाने से मना कर दिया।
बाद में शिबली की मुलाकात रामापुरा में पं. महादेव प्रसाद मिश्र संगीत संस्थान के निदेशक ठुमरी गायक पं. गणेश मिश्र से हुई। उन्होंने सिद्धांत को तबला सिखाने को हां कर दी। पांच साल के अभ्यास के बाद अब उसकी उंगलियां तो सीधी हुईं ही वो बिना सहारे के अपने कार्य भी करने लगा। इसी तरह रामापुरा की ही एक युवती का दायां पैर काम नहीं करता था। उसने भी कथक का अभ्यास इसी केंद्र में करना शुरू किया। वो नृत्यांगना बनने के साथ अब चलने भी लगी है। (यहां उसके जल्द ही विवाह के चलते यहां युवती का नाम नहीं दिया जा रहा है)। दशाश्वमेध के विक्रांत की आंखों से दिखता कम था लेकिन उसने गिटार सीखने की ठानी। गिटार को साधकर अब हुनर ने उसे जिंदगी की नई पटरी से जोड़ दिया। रॉक बैंड में प्रस्तुति से पैसा और नाम दोनों मिलने लगा है।
संगीत किसी भी तरह की विकलांगता दूर करने के लिए वरदान साबित हुआ है। अगर मन से साधना की जाए तो नृत्य के लय-ताल के अनुशासन में चलने की सीख मिलती है आदत का भी विकास होता है। मानसिक और शारीरिक विकलांग बच्चे जीवन में बदलाव के लिए मेरे पास भी नृत्य सीखने आते हैं। बनारस में कथक नृत्य के जरिए विकलांगता से उबरने वाली बेटी को मैं बहुत आशीर्वाद दो रहा हूं। तबले के अभ्यास से उंगलियों की विकलांगता दूर हो सकती है। बशर्ते अभ्यास में निरंतरता होनी चाहिए। ताल की ताकत ऐसे चमत्कार कर सकती है। ऐसे कुछ बच्चे पहले भी ठीक हो चुके हैं। पं. लच्छू महाराज, प्रसिद्ध तबला वादक। म्यूजिक एक तरह से थेरेपी है। गायन, वादन और नृत्य से मानसिक, शारीरिक विकलांगता कम करने में मदद मिल रही है। इसलिए अब म्यूजिक थेरेपी पर शोध भी शुरू हो गया है। बहुत अच्छे नतीजे आने से हम लोग उत्साहित हैं। -अनुजा पसारी, फिजियोथेरेपिस्ट, हड्डी रोग विभाग, बीएचयू
साभार www.amarujala.com से