ख़ालिद इस्लाम का सबसे प्रसिद्ध योद्धा है। पहले काफ़िर था, दीन के विरुद्ध लड़ा भी, लेकिन फिर ईमान ले आया। मोहम्मद साहब की मृत्यु के पश्चात जब अरब के कबीलों ने इस्लाम को त्याग दिया तो नए ख़लीफ़ा, अबू बकर ने युद्ध की घोषणा कर दी व ख़ालिद को सेनापति बना दिया। ख़ालिद ने सबको हराकर फिर मुसलमान बना दिया। इन्ही युद्धों में से एक में जब मुसलमान जीत गए तो अबू बकर ने ख़ालिद से कहा कि उस क़बीले के सारे मर्दों को क़त्ल कर दो। लेकिन क़बीले के सरदार ने अपनी बेटी ख़ालिद को सौंप दी तो ख़ालिद ने क़त्ल नहीं किए। अबू बकर बहुत नाराज़ हुआ।
उमर (अबू बकर का डेप्युटी व उसका successor) ने कहा हटा दो। अबू बकर ने मना कर दिया। ख़ालिद ने पूरा इराक़ फ़तह किया। फिर अबू बकर ने उसे सीरिया भेजा। सीरिया में लड़ाई से पहले ही अबू बकर की मृत्यु हो गई। उमर ख़लीफ़ा बन गया। ख़लीफ़ा बनते ही उसने ख़ालिद को सेनापति से हटाकर उप सेनापति बना दिया। लेकिन ख़ालिद ने नए सेनापति का पूरा साथ दिया व युद्ध का संचालन भी किया व पूरा सीरिया व फिर ईरान भी जीत लिया व अन्तत जेरूसलम भी जीत लिया।
ख़ालिद पर ग़बन का आरोप लगा। ख़ालिद ने पूरा हिसाब दिया व हिसाब सही निकला। लेकिन फिर भी उमर ने उसे रिटायर कर पेंशन देकर सीरिया के छोटे शहर में रहने भेज दिया जहाँ घर में ही कुछ साल बाद उसकी मृत्यु हुई।
हिंदुओं के लिए सीख 1. अबू बकर को पता था कि योद्धा रोज़ नहीं मिलते, इसलिए उसने ख़ालिद की हर ग़लती को क्षमा किया। येदियुरप्पा की तरह निकाल बाहर नहीं किया।
2. ख़ालिद के लिए इस्लाम, उमर से बड़ा था, इसलिए उसने अपने जूनियर के अधीन भी पूरी निष्ठा से काम किया। न टीवी पर आकर उमर की आलोचना की, न ममता की रैली में गया, न पार्टी छोड़ी, न नोटा दबाया।
3. इस सबके बाद भी जब उमर ने उसे रिटायर कर ही दिया तो उसने नमाज़ पढ़ते व रोज़े करते जीवन बिता दिया। ना कोई प्रैस कॉंन्फ्रेंस की , नयी पार्टी नहीं बनाई और न किसी महागठबंधन में शामिल हुआ। क्योंकि जन आंदोलन वही सफल होते हैं जिनके अनुयायी उन्हें अपने निजी हित से बड़ा मानते हैं। जिनकी निष्ठा कभी डगमगाती नहीं। जो नेता को ग़लत मानते हुए भी उसका साथ नहीं छोड़ते। और जो योद्धा से भगवान के जैसे आचरण की अपेक्षा नहीं करते।
जिस दिन हिन्दू नेता यह सरल सा सत्य समझ जाएँगे , हमारी विजय सरल हो जाएगी ।