Saturday, November 23, 2024
spot_img
Homeमीडिया की दुनिया सेशहीदों के स्मारक के लिए तरसता देश

शहीदों के स्मारक के लिए तरसता देश

हम अपने शहीदो को लेकर भले ही बड़ी-बड़ी बातें करते हो। उनकी याद में गीत लिखते हो, कहानियां गढ़ते हो पर सच यह है कि उनकी याद करने के लिए हमें उनका स्मारक बनाने का फैसला करने में भी छह दशक से ज्यादा का समय गुजरा। अब अततः रक्षा मंत्रालय ने आजादी के बाद से अब तक अपने प्राणों की आहूति देने वाले सैनिकों की याद में राष्ट्रीय युद्ध स्मारक के निर्माण का काम शुरू किया है। इसे बनाने का फैसला तो राजग सरकार ने सत्ता में आते ही कर लिया था मगर इस पर काम शुरू करने में तीन साल का समय लगा। अभी अगर सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहा तो यह स्मारक 31 जुलाई 2020 तक तैयार हो जाएगा। इस पर 400 करोड़ रुपए खर्च होंगे।

इसके दो हिस्से होंगे, एक भाग स्मारक का होगा व दूसरा युद्ध संग्रहालय का होगा जिसमें विभिन्न युद्धों से जुड़ी यादों को संजोने वाले हथियार व दूसरा साज-सामान रखा जाएगा। इनमें शहीद हवलदार अब्दुल हमीद द्वारा युद्ध में इस्तेमाल की गई उनकी जीप व उस पर लगी बाइक भी प्रदर्शित की जाएगी। 1965 के युद्ध में पाकिस्तान से छीने गए पैराटैंक व बांग्लादेश से लाए गए रेल के इंजन भी यहां प्रदर्शित होंगे।

हमारे देश में सरकार कैसे काम करती है इसका उदाहरण इस स्मारक को बनाए जाने के फैसला लेने में हुई देरी से मिल जाता है। तमाम लोगों को यह नहीं पता है कि 26 जनवरी के गणतंत्र दिवस पर जिस इंडिया गेट पर जाकर हमारे प्रधानमंत्री व दूसरे विशिष्ट नेता शहीदो को श्रृद्धाजंलि देते है वह पहले विश्वयुद्ध में अंग्रेजो की ओर से लड़ाई लड़ने वाले उन सैनिको की याद में बनाया गया था जिन्होंने उनकी ओर से लड़ते हुए फ्रांस, ईराक, ईरान पूर्वी अफ्रीका व अफगानिस्तान में 1914 से 1921 के बीच अपने प्राण गंवाए थे। इन युद्धों में मरने वाले सैनिकों की संख्या 82,000 थी जिनमें से काफी तादाद में अंग्रेज भी थे।

ब्रिटिश सरकार ने उस युद्ध में मारे गए अपने लोगों की कब्रे व स्मारक बनाने के लिए इमीरियल वार एंड ग्रेव्ज कमीशन का गठन किया। इसमें दिल्ली में उनकी याद में किंग्सवे (राजपथ) पर यह स्मारक बनाने का फैसला हुआ। भारत की यात्रा पर आए ड्यूक आफ कगर ने फरवरी 1921 में इसका शिलान्यास किया। इस मौके पर वायसराय चैम्सफोर्ड भी मौजूद थे। इसको तैयार होने में 10 साल लगे। जब यह 1931 में बनकर तैयार हुआ तो इस 42 मीटर ऊंचे स्मारक पर 13,218 सैनिकों के नाम खोदे गए। इनमें काफी अंग्रेज भी थे।

तब इसे ऑल इंडिया वॉर मेमोरियल के नाम से जाना जाता था। पहली बार 1960 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने युद्ध स्मारक बनाए जाने पर विचार किया मगर 1962 के चीन युद्ध में मिली पराजय के कारण यह मामला टल गया। मगर जब 1971 में भारत ने पाकिस्तान को करारी मात देते हुए बांग्लादेश बनवा दिया तो फिर इसकी याद आई। इस युद्ध में मारे गए शहीदों की श्रद्धांजलि देने के लिए इंडिया गेट के नीचे एक काले पत्थर का चबुतरा बनाकर उसके चारों और चार लौ स्थापित कर अमर जवान ज्योति बनाई गई। यहां एक उलटी राइफल पर हैलमेट रखा गया है। यहां हमारे नेता व विदेशी अतिथि आकर शहीद सैनिको को अपनी श्रद्धांजलि देते है।

मई 2014 में राजग के सत्ता में आने के बाद एक बार फिर युद्ध स्मारक बनाए जाने की जरूरत महसूस की जाने लगी। अक्तूबर 2015 में कैबिनेट ने इसके लिए जगह चुनने के साथ ही इसे अपनी मंजूरी दी। इसके निर्माण के लिए 500 करोड रुपए की राशि स्वीकृत करने के साथ ही कामकाज पर नजर रखने के लिए रक्षा सचिव की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय समिति बनाई गई जिसके सदस्यों में दिल्ली के उप-राज्यपाल व एक मेजर-जनरल भी शामिल किए गए हैं।

स्मारक व संग्रहालय का डिजाइन तैयार करवाने के लिए पिछली सरकार ने प्रतियोगियों से उनकी डिजाइन आमंत्रित की। आर्किटेक्ट योगेश चंद्रहासन व उनकी टीम ने राष्ट्रीय युद्ध स्मारक की डिजाइन तैयार करने में बाजी मार कर 30,000 डालर का ईनाम जीता जबकि युद्ध स्मारक की डिजाइन में ‘स्पा स्टूडियो व्यू’ विजयी रहा। उन्हें 75,000 डालर का पुरस्कार मिला। अब विस्तार से प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार करने का काम चल रहा है और इस साल के अंत तक दोनों का निर्माण काम शुरू हो जाना चाहिए।

बताया जाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 15 अगस्त 1918 को राष्ट्रीय स्मारक का उद्धघाटन करना चाहते हैं। इतने कम समय में इसे तैयार करना अपने आपमें एक बड़ी चुनौती है। वैसे यह बताना जरूरी हो जाता है कि हमारे देश में शहीद स्मारक तैयार करने में कितनी ज्यादा दिक्कते आती है। आज देश की सेना ही करीब ऐसे 120 स्मारको की देखभाल करती है जोकि देश कि विभिन्न हिस्सों में बनाए गए हैं। आमतौर पर ये स्मारक इक्का-दुक्का सैनिको की मान कहलाते हैं।

करीब दो दशक पहले देश में पुलिस के शहीदो की याद में स्मारक बनाने का फैसला लिया गया था। इसके लिए शांतिपथ से राष्ट्रपति भवन तक जाने वाली सड़क के अंतिम सिरे को चुना गया। वहां एक बड़ा पार्क था। सन 2004 में पुलिस स्मारक का शिलान्यास भी कर दिया गया। इसके लिए 8 करोड रुपए की लागत से पत्थर की चार दीवारों, बेंचो आदि के साथ-साथ स्टील के स्ट्रक्चर का स्मारक बनाया जाना था। जब यह स्टील का स्मारक तैयार हुआ तो इनटैक समेत तमाम जाने-माने बुद्धिजीवियो ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया। उन्होंने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से लेकर शहरी विकास मंत्री तक को चिट्ठी लिखकर कहा कि यह स्मारक राष्ट्रपति भवन को देखने में अवरोध पैदा करता है अततः निर्माण काम रोक दिया गया। समैकिए वहां लगी लोहे की जालियां व दूसरा सामान उठा ले गए। शरारती तत्वों ने पत्थर के स्टूल व बेंचो को तोड़ दिया।

अंजली इला मेनन से लेकर केपीएस गिल व पूर्व गृह सचिव एनएन वोहरा आदि इसके निर्माण का विरोध कर रहे थे। जस्टिस लीला सेठ भी विरोध दर्ज करवाने वाले 100 विशिष्ट लोगों में शामिल थी। अंतः इसका निर्माण कार्य रूक गया और अब दो माह पहले इसका उद्धघाटन हुआ। इसे तैयार होने में 14 साल लग गए व अभी भी इसके निर्माण का काम जारी है। यहां 1959 के बाद से शहीद हुए देश के तमाम पुलिस वालों के नाम लिखे जाएंगे। इनकी संख्या 36,050 बताई जाती है। इसमें बाटला कांड में मारे गए दिल्ली पुलिस के अफसर मोहन चंद्र शर्मा का नाम भी शामिल होगा। यहां लोग आए इनके लिए बीएसएफ ने हर शनिवार की शाम को अपने बैंड का प्रदर्शन करना शुरू कर दिया है। वैसे कुल मिला कर यह शर्मनाक बात है कि हमारे देश में अपने शहीद सैनिको का एक भी राष्ट्रीय स्मारक नहीं है।

साभार- http://www.nayaindia.com/ से

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार