गिरिडीह। झारखंड में गिरिडीह के जमडार गांव की 13 साल की चंपा कुमारी को ब्रिटेन सरकार ने डायना अवार्ड देने जा रही है। चंपा कुमार ने बाल अधिकारों के लिए मुहिम चलाई है, जिसकी गूंज अब सात समंदर पार तक पहुंच गई है। नौवीं कक्षा में पढ़ रही चंपा ने बाल मजदूरी रोकने साथ ही बाल विवाह रोकने के लिए भी आंदोलन चलाए हैं।जानिए चंपा और उसके कामों के बारे में –
– चंपा गरीब परिवार से है। उसका माता-पिता खदान में काम करते हैं। चंपा भी कभी उनके साथ काम करती थी।
– चंपा की जिंदगी बदलने से लेकर उसे दूसरे बच्चों की जिंदगी बचाने के लिए तैयार करने तक का श्रेय शांति के नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी द्वारा संचालित कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन फाउंडेशन को जाता है।
– 2016 की है, जब जमडार में संस्था की ओर से स्कूल चलें अभियान की ले रैली निकाली गई थी। उस समय चंपा अपने माता-पिता के साथ ढिबरा खदान में मजदूरी करती थी। इसी दौरान चंपा खदान से दौड़ी-दौड़ी आई और रैली के संबंध में पूछकर खुद को बाल मजदूरी से मुक्त कराने का आग्रह कार्यकर्ताओं से किया।
– कार्यकर्ता पुरुषोत्तम पांडेय उसे अपने साथ उसके घर ले गए, जहां उसके माता-पिता से बात कर उससे मजदूरी नहीं कराने और स्कूल में दाखिला करवाने को कहा। पहले तो परिजनों ने आनाकानी की, लेकिन बाद में समझाने पर मान गए। मिलती गई कामयाबी दूसरे साल चंपा बाल पंचायत की सदस्य बनी।
– साथ ही प्रदेशस्तरीय बाल पंचायत की मुखिया चुनी गई। तीसरे वर्ष वह राष्ट्रीय बाल महापंचायत की उप मुखिया चुनी गई। इस दौरान उसने अपने गांव जमडार में कई बच्चों को बाल मजदूरी से मुक्त कराया। इतना ही नहीं इस दौरान उसने तीन लड़कियों को बाल विवाह से बचाने का भी महत्वपूर्ण कार्य कर दिखाया।
– चम्पा कहती है कि डायना अवार्ड के लिए चुने जाने पर वह बेहद खुश है। बताती है कि जब वह रैली की आवाज सुनकर खदान से भाग कर बाहर आ गई थी तो पापा से उसे डांट भी पड़ी थी, लेकिन आज उसके माता-पिता को गर्व महसूस हो रहा है।
साभार – दैनिक नईदुनिया से