इन मूक पशुओं के कोई अधिकार हैं भी कि नहीँ

sunita tripathi

इस दिन दुनिया भर के उत्साही पशु समर्थक विश्व पशु दिवस के उत्सव में शामिल होते हैं और अपने-अपने विशिष्ट तरीके से पशुओं का संरक्षण और संवर्धन करने में योगदान देते हैं। हर साल पशु दिवस में भाग लेने वाले लोगों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि होती है। कई देशों में अलग-अलग प्रकार के प्रेरक कार्यक्रम भी संचालित किए जाते हैं। चूंकि भारत गांवों का देश है और ग्रामीण स्तर तक जागरूकता पहुंचाने के लिए जब तक आंदोलन स्तर पर कोई दिवस न मनाया जाए तब तक संपूर्ण लोगों को जागरूक नहीं किया जा सकता।

वर्तमान में जानवरों की सुरक्षा सबसे बड़ा विषय बनकर रह गया है। पिछले 40- 50 सालों में जानवरों की स्थिति इतनी बदतर हुई है जिसका अंदाजा लगाने से भी रूह कांप जाती है। जानवरों की संख्या में 1970 से 2010 के मध्य लगभग 50% की कमी आई है। आज दुनिया के मानव खुद ही जानवर बनते चले जा रहे हैं। मानवता गायब होती जा रही है । मानव अधिकारों की रक्षा कानून को करनी पड़ रही है । ऐसे में भला भारतीय संस्कृति को याद करने की जरूरत कैसे नहीं होगी ?

हमारी भारतीय संस्कृति में प्रत्येक जीवो में ईश्वर का अंश देखा जाता है। उनके कल्याण के लिए उनकी रक्षा के लिए सुरक्षा प्रदान की जाती है। उन्हें भोजन दिया जाता है। सर्दियों में कपड़े पहनाए जाते हैं। उनको विश्राम के लिए एक निश्चित स्थान दिया जाता है। गाय को माता समझा जाता है। किसी भी पूजा- पाठ, यज्ञ, हवन में कुत्ते को और विभिन्न पशु- पक्षियों को भोजन का एक भाग प्रदान किया जाता है। उन्हें आदर और सम्मान दिया जाता है। तब भला पशुओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए दिवस क्यों नहीं मनाया जा सकता? बात धर्म और संस्कृतियों पर ही खत्म नहीं हो जाती वल्कि समाज का एक वर्ग जो पर्यावरण हितैषी है,वह पशुओं की सुरक्षा के प्रति सदा प्रेम व संवेदनशीलता रखने का संकल्प लिए हुए हैं जो इस दिवस के अवसर पर पशु कल्याण मानकों में सुधार कर जानवरों के प्रति प्यार प्रकट कर उनकी सुरक्षा एवं उनके जीवन को बेहतर बनाने का संकल्प लेकर चल रहा है।पूरे विश्व में लोग आगे बढ़-चढ़कर पशु संरक्षण और संवर्धन का कार्य एक मुहिम के रूप में कर रहे हैं।

4 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय पशु दिवस अथवा विश्व पशु कल्याण दिवस के रूप में पूरी दुनिया में आंदोलन स्तर पर मनाया जा रहा है। यह दिन सेंट फ्रांसिस का जन्म दिवस भी है। जो कि जानवरों के महान संरक्षक थे। जर्मन प्रकाशन “मैन एंड डॉग” के लेखक और संपादक हेनरिक जिंम्मरमैन ने “विश्व पशु दिवस” के उद्घाटन कार्यक्रम की योजना बनाई। और कार्यक्रम में 5000 से अधिक लोग शामिल हुए। जिम्मरमैन ने विश्व पशु दिवस को आगे बढ़ाने के लिए अनगिनत घंटे समर्पित किये।

मई1931 में फ्लोरेंस, इटली में अंतरराष्ट्रीय पशु संरक्षण कांफ्रेस में 4 अक्टूबर को विश्व पशु दिवस के रूप में मान्यता देने के उनके प्रस्ताव को भारी बहुमत से मंजूरी दी गई और एक प्रस्ताव के रूप में अधिनियमित किया गया।संयुक्त राष्ट्र स्थित पशु संरक्षण संगठन ने चरवांच फाउंडेशन द्वारा कार्यक्रम के दर्शकों का विस्तार करने के प्रयास में पेश किया गया था। तभी से प्रत्येक वर्ष इस दिन दुनिया भर के उत्साही पशु समर्थकों द्वारा सभी जानवरों के लिए बेहतर जगह बनाने हेतु पशु संरक्षण और संवर्धन को ध्यान में रखते हुए वैश्विक ताकत के रूप में संगठित होकर पशु कल्याण एवं पशु अधिकारों के दिशा में नई सोच और कार्य प्रणाली देते नजर आ रहे हैं।

यह महत्वपूर्ण दिवस हमें पृथ्वी पर मौजूद उन सभी प्रजातियों की सुरक्षा एवं देखभाल करने के लिए हमारे कर्तव्यों को याद दिलाता है। एक संगठित शक्ति के रूप में मिलकर हम जानवरों पर होने वाले क्रूरता और अत्याचार को खत्म कर सकते हैं इस दृष्टि में काम करने के लिए नई पद्धति और नई नजरिया प्रदान कर सकते हैं।

अतः इस दिवस का आयोजन करके आम जनजीवन को विभिन्न पशुओं के महत्व को बताना आवश्यक है। बढ़ती आबादी के कारण जहां एक ओर जंगल कटते जा रहे हैं वहीं दूसरे ओर जंगली जीवों का लगातार हनन होता दिखाई दे रहा है। ऐसे में जंगल तथा जीवों का संरक्षण अति आवश्यक है। आम आदमी को बताना कितना आवश्यक है कि, जिस तरह पृथ्वी के संतुलन के लिए प्रकृति का होना आवश्यक है उसी प्रकार पशुओं का होना भी आवश्यक है।जंगल के संतुलन के लिए जंगल में निवास करने वाले छोटे बड़े सभी पशुओं का सुरक्षित होना भी आवश्यक है। ‘एनिमल राइट्स’ तथा’ एनिमल एक्टिविट्स’ का मानना है कि पशु हमारे पारिस्थितिक तंत्र के लिए बहुत ही जरूरी हैं इसीलिए पशुओं की लगातार घटती संख्या को सही ढंग से नियंत्रित करने के लिए देशभर में अलग-अलग प्लेटफार्म्स पर कार्यक्रम चलाए जाते हैं। जनता को जंगल और जीवों के महत्व से अवगत कराया जाता है। इसके साथ ही इनके संरक्षण के क्षेत्र में कार्य करने वाली विभिन्न संगठनें सोशल मीडिया के माध्यम से ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अपनी बातें पहुंचाती हैं। लोगों से पशुओं के संरक्षण के अभियान में सहयोग भी मांगा जाता है।

यह दिवस इसलिए अत्यधिक महत्व रखता है क्योंकि पर्यावरण के अभिन्न अंग पशुओं को बचाने और बढ़ाने की दिशा में एक प्रयास है।

डॉ. सुनीता त्रिपाठी “जागृति”
नई दिल्ली