Monday, December 23, 2024
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डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल की रचनावली का प्रकाशन

डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल की रचनावली का संपादन और प्रकाशन हर्ष का विषय है। गीत और कविताओं से आरंभ करके साहित्य की विविध विधाओं में साहित्य-सृजन उनकी लेखन-क्षमता का पुष्ट प्रमाण है। इसी आधार पर उनकी रचनावली को ग्यारह भागों में प्रकाशित किया गया है-1. ग़ज़ल समग्र; 2. काव्य समग्र दो (कविताएँ, गीत, मुक्तक, दोहा); 3. कहानी समग्र;4. गद्य समग्र (निबंध, साहित्यिक अनुभव, शोध, समीक्षा आदि); 5. जीवनी समग्र; 6. नाटक समग्र एक (बाल-नाटक); 7. नाटक समग्र दो (हास्य-नाटक, सामाजिक नाटक, नुक्कड़ नाटक); 8.व्यंग्य समग्र एक; 9. व्यंग्य समग्र दो; 10. भूमिका समग्र; 11. बालसाहित्य समग्र।

गिरिराज की सबसे प्रिय विधा ग़ज़ल है। ग़ज़ल के उनके छह संग्रह प्रकाशित हुए हैं, जिनमें 500 से अधिक ग़ज़लें संकलित हैं। ग़ज़ल के विषय में डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल ने स्वयं लिखा है-‘ग़ज़ल हृदय की अनुभूति की सूक्तिमय शैली है। इसकी अपनी भाषा, अपना भाव, अपनी उपमाएँ और अलंकार होते हैं। ग़ज़ल में एक विशेष लोच व आकर्षण होता है। किसी बात को सीधे-सीधे कह देना ग़ज़ल को पसंद नहीं, जो कुछ कहना है-संकेतों में। इसलिए ग़ज़ल गागर में सागर है।’ उनकी ग़ज़लों की सबसे बड़ी विशेषता है-आशावाद।

गिरिराजशरण अग्रवाल समग्र के द्वितीय खंड में डॉ. अग्रवाल की कविताएँ (अक्षर हूँ मैं), हास्य कविताएँ (मेरी हास्य-व्यंग्य कविताएँ) मुक्तक (बूँद के अंदर समंदर) रूबाइयाँ, दोहे (जिनमें मुहावरा दोहे तथा पर्यायवाची दोहे भी सम्मिलित हैं) संगृहीत किए गए हैं। अपनी ग़ज़लों में ज़िंदगी की इंद्रधनुषी झाँकियों के बीच निरंतर आशावाद की ध्वजा लेकर चलनेवाले गिरिराजशरण अग्रवाल ने ‘अक्षर हूँ मैं’ के माध्यम से सचमुच अपने जीवन के कड़वे-मीठे, काले-सफ़ेद, निराशापूर्ण और आशाओं से भरे चिंतन को पूरी ईमानदारी से अभिव्यक्ति दी है, जो सीधे पाठक से संवाद करके उसे बाँध लेती है। इसी खंड में अप्रकाशित रूबाइयाँ, दोहे (इनमें पर्यायवाची दोहे तथा मुहावरा दोहे प्रमुख हैं) तथा गीत (जो समय-समय पर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं) तथा हास्य-व्यंग्य शैली की ग़ज़लें भी संगृहीत हैं।

इस रचनावली का तीसरा खंड कहानियों का है। इस खंड में डॉ. अग्रवाल द्वारा लिखी गई 82 कहानियाँ संकलित हैं। इनमें से कुछ कहानियाँ उनके पूर्व प्रकाशित कहानी-संग्रहों-जिज्ञासा एवं अन्य कहानियाँ, छोटे-छोटे सुख, आदमी और कुत्ते की नाक में भी प्रकाशित हो चुकी हैं। इनके अतिरिक्त उनकी अप्रकाशित कहानियाँ भी इस खंड में सम्मिलित हैं। डॉ. कमलकिशोर गोयनका के अनुसार ‘डॉ. अग्रवाल कहानी लिखने की कला में तथा कहानी को जीवन के उच्च सरोकारों से जोड़ने में पूर्णत: पारंगत हैं। इस खंड में उनकी व्यापक जीवन दृष्टि से परिपूर्ण कहानियाँ संगृहीत हैं।’

चौथा खंड गद्य समग्र का है। इस खंड में गिरिराजशरण अग्रवाल के ‘सवाल साहित्य के’ (साहित्य में लेखक के अनुभव) के साथ उनके समय-समय पर प्रकाशित लेख संगृहीत हैं। डॉ. अग्रवाल सन् 2001-2002 में रोटरी अंतर्राष्ट्रीय के मंडल 3100 के मंडलाध्यक्ष थे। मंडलाध्यक्ष के रूप में दिए गए उनके उद्बोधन और प्रकाशित आलेख भी इसी खंड में रखे गए हैं। इनके अतिरिक्त अनेक महत्त्वपूर्ण आलेखों का संग्रह भी इस खंड में किया गया है, जिसमें डॉ. अग्रवाल के चिंतन, मनन, विवेचन तथा उनकी शोधवृत्ति के दर्शन होते हैं। निबंधों की भाषा सहज, सरल,संप्रेषणक्षम है।

डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल समग्र के पाँचवें खंड में भारतीय साधकों, संतों, महापुरुषों, राजनेताओं और स्वतंत्रता-सेनानियों, साहित्यकारों की जीवनियाँ, क्रांतिकारी सुभाष के जीवन पर आधारित जीवनीपरक उपन्यास ‘क्रांतिकारी सुभाष’, लेखक का आत्मचरित (आत्मकथ्य) संयोजित किया गया है। क्रांतिकारी सुभाष’ जीवनीपरक उपन्यास है, जो महान देशभक्त और स्वतंत्रता-सेनानी सुभाषचंद्र बोस के जीवन को आधार बनाकर लिखा गया है। आत्मकथ्य में डॉ. गिरिराजशरण ने अपने जीवन की उन घटनाओं का उल्लेख किया है, जो सामान्यत: पाठकों के सामने बाहरी व्यक्ति द्वारा नहीं आ सकतीं।

खंड छह और सात में डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल द्वारा लिखित बाल नाटकों, हास्य-व्यंग्य एकांकियों, समाज तथा राजनीति से जुड़े एकांकियों तथा नुक्कड़ नाटकों को संगृहीत किया गया है। डॉ. अग्रवाल ने प्रभात प्रकाशन, दिल्ली के लिए एकांकी नाटकों की एक बड़ी शृंखला का संपादन किया था। इस शृंखला में विषय-क्रम से एकांकियों का संकलन किया गया था। तब भी उन्होंने प्रत्येक खंड के लिए एकांकियों की रचना की थी। उसके बाद तो उनके एकांकियों के अनेक संकलन प्रकाशित हुए। इनमें प्रमुख हैं-नीली आँखें (जो बाद में ‘मंचीय सामाजिक नाटक’ नाम से प्रकाशित हुआ), ग्यारह नुक्कड़ नाटक, मंचीय व्यंग्य एकांकी, बच्चों के शिक्षाप्रद नाटक, बच्चों के हास्य नाटक, बच्चों के रोचक नाटक। इन सभी पुस्तकों में प्रकाशित एकांकी नाटकों को इन दोनों खंडों में संयोजित किया गया है।

खंड आठ तथा नौ में डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल के 202 व्यंग्य संकलित हैं। हास्य और व्यंग्य के क्षेत्र में डॉ. अग्रवाल का कार्य इतना व्यापक है, ऐसा कम लोगों को ही ज्ञात है। उनके व्यंग्य के पाँच संकलन प्रकाशित हुए हैं-बाबू झोलानाथ, राजनीति में गिरगिटवाद, मेरे इक्यावन व्यंग्य, आदमी और कुत्ते की नाक तथा आओ भ्रष्टाचार करें। हास्य-व्यंग्य-लेखन की एक विशिष्ट शैली को विकसित करने में डॉ. अग्रवाल का योगदान विशेष सराहनीय है। उन्होंने स्वयं कहा है-‘विसंगतियों और विडंबना-विकारों के रहते हुए व्यंग्य हास्यशून्य नहीं हो सकता और हास्य भी व्यंग्य के बिना अपना अस्तित्व बनाकर नहीं रख सकता।’

खंड दस भूमिका खंड है। डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल ने सन् 1986 से 2004 तक प्रत्येक वर्ष की श्रेष्ठ हास्य-व्यंग्य रचनाओं का संपादन किया। इनके अतिरिक्त विषय-आधारित कहानियों के ग्यारह खंडों, एकांकियों के दस खंडों, व्यंग्य के दस खंडों का संपादन किया। इन सभी खंडों में विषयानुसार भूमिकाएँ लिखीं। पिछले दशक के श्रेष्ठ हास्य-व्यंग्य एकांकी, पिछले दशक की श्रेष्ठ हास्य-व्यंग्य कविताएँ, पिछले दशक की श्रेष्ठ हास्य-व्यंग्य कहानियाँ संपादित कीं। अपनी अनेक पुस्तकों की भूमिकाओं के साथ-साथ कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण पुस्तकों की भूमिकाओं को लिखने का अवसर भी उन्हें मिला। इन सभी भूमिकाओं को दसवें खंड में सम्मिलित किया गया है। ‘शोध दिशा’ त्रैमासिक के जुलाई 2006 और उसके बाद लिखे गए महत्त्वपूर्ण संपादकीय भी दसवें खंड में सम्मिलित हैं।

गिरिराजशरण अग्रवाल की रचनावली के खंड ग्यारह में उनके द्वारा रचित बालसाहित्य को सम्मिलित किया गया है। उन्होंने बच्चों के लिए एक महत्त्वपूर्ण पुस्तक लिखी ‘मानव विकास की कहानी’, जो पहले ‘आओ अतीत में चलें’ नाम से प्रकाशित हुई थी और जिस पर अनेक संस्थाओं ने पुरस्कार देकर प्रतिष्ठा की मुहर लगाई थी। इस पुस्तक में डॉ. अग्रवाल ने मानव-सभ्यता का इतिहास रोचक कहानी के रूप में प्रस्तुत किया है। इस कहानी को पढ़ते समय किसी प्रकार का बोझ बच्चे के मन-मस्तिष्क पर नहीं पड़ता और वह आसानी से मानव विकास की कहानी को समझ लेता है। इसी खंड में डॉ. अग्रवाल द्वारा लिखी हुई 29 बालकहानियाँ भी सम्मिलित हैं। इनमें कई कहानियाँ वैज्ञानिक और बालमनोविज्ञान के दृष्टिकोण से लिखी गई हैं।

यह डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल रचनावली के ग्यारह खंडों का संक्षिप्त विवरण है। इन सभी खंडों में आप उन के व्यक्तित्व से उनके साहित्य की और साहित्य से उनके व्यक्तित्व की पहचान कर सकते हैं। डॉ. अग्रवाल एक तपस्वी साहित्यकार हैं, मौन साधक हैं, ज्ञान के जिज्ञासु और प्रसारक हैं। उनका काम बड़ा और विस्तृत है। यह रचनावली उनके जीवन की सार्थकता का प्रमाण है और इसका भी कि संभल या बिजनौर जैसे एक छोटे नगर से कोई कैसे राष्ट्रीय बनता है और अपनी पहचान को स्थायी बनाता है।

संपादन
डॉ. कमलकिशोर गोयनका
डॉ. मीना अग्रवाल
प्रकाशक : हिन्दी साहित्य निकेतन, 16 साहित्य विहार, बिजनौर (उ.प्र.)
सभी ग्यारह खंडों का मूल्य 10,000 रुपए. पृष्ठ संख्या 6000
सभी खंड एक साथ मँगाने पर डाक व्यय सहित मूल्य 6000 रुपए

प्रेषक
वैश्विक हिंदी सम्मेलन की वैबसाइट -www.vhindi.in
‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’ फेसबुक समूह का पता-https://www.facebook.com/groups/mumbaihindisammelan/
संपर्क – vaishwikhindisammelan@gmail.com

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