बात पुरानी 70 – 80 के दशक की करें जब प्रचुर मात्रा में बाल साहित्य की पुस्तकें छपती थी और बच्चें बड़े चाव से उनको पढ़ते थे और उनका मानसिक विकास और स्वस्थ मनोरंजन होता था। बच्चों को कहानियां सुनने के शोक को पूरा करती थी दादी और नानी। दोनों ही स्थितियों में जबरदस्त बदलाव आया है, परंतु आज भी बच्चें बाल साहित्य से दूर नहीं हैं अंतर इतना है कि वे मोबाइल या कंप्यूटर के गैजेट पर अपनी मर्जी की कहानी या कविता सुनते हैं ।
कार्टून क्या है ? इसमें भी चित्र हैं,कहानी हैं संवाद हैं, बच्चें खूब देखते हैं। एक मां और घर की अन्य महिलाएं बाल मनोविज्ञान को बहुत अच्छी तरह से समझती हैं। एक मां मोबाइल पर कोई भी कार्टून लगा कर बच्चे को दे देती है और बच्चा जब उस पर उंगली घूमता है तो रोटी का कोर मुंह में डाल देती है। मां से अच्छा बाल मनोविज्ञान को भला कौन समझ सकता है ?
कई साहित्यकार कहते हैं वे बाल पुस्तकें पढ़ कर लिखना सीखना सीखे हैं। आज साहित्यकार कहते हैं बाल साहित्य लिखना बहुत कठिन हैं। मैं कहती हूं जो साहित्यकार बच्चों के बीच रहते है और उनके मनोविज्ञान को समझते हैं उनके लिए बाल साहित्य लिखना बहुत सरल हैं। वे अच्छा बाल साहित्य लिख सकते हैं और ऐसे बाल साहित्य में प्रभावशीलता होगी, सरलता होगी, तरलता होगी और मनोरंजन होगा जो बच्चों के मन पर सीधा असर डालने वाला होगा। देखना यह भी होगा कि वे किस स्तर के बच्चों के लिए लिख रहे हैं।
एकल परिवार होने से और माता – पिता से बच्चों के लिए समय नहीं दे पाते जिससे बच्चें अपनी समस्याओं और प्रश्नों में उलझे रहते हैं, इनके उत्तर उन्हें नहीं मिलते हैं। माता – पिता का ध्येय बच्चे को 90 – 95 अंक ला कर अच्छी पढ़ाई करा कर केवल कमाने वाली तकनीकी मशीन बनाना होता है। कमाने वाली तकनीकी मशीन को रेखांकित कर कहती हैं जिसमें न कोई संवेदना होती है, न कोई संस्कार और न ज्ञान – विज्ञान का विस्तार, बस केवल कितनी ज्ञान से वे कमाई करने की मशीन बन कर रह जाते हैं। ऐसे में अगर माता-पिता बच्चों की जरूरतों और शोक पर जहां खूब खर्च करते हैं, वे बहुत कम कीमत की बाल साहित्य पुस्तक भी उन्हें खरीदकर दें और उनमें बाल साहित्य पढ़ने की आदत विकसित करें।
प्रयास होना चाहिए कि डिजिटल दुनिया के बाहर बच्चें बाल साहित्य से जुड़े। बाल साहित्य पढ़ने से उनमें संवेदना और संस्कार जाग्रत होंगे और समस्याओं और उलझनों से बाहर निकलने का रास्ता भी मिलेगा और वे पढ़ लिख कर मजबूत राष्ट्र के कर्णधार बनेंगे। हमें भी गर्व होगा की हम एक संस्कारित और संवेदनशील नागरिक देश को दे कर जायेंगे। बाल साहित्य से बच्चों की जोड़ कर हम एक सुदृढ़ राष्ट्र के निर्माण में बड़ा योगदान कर सकते हैं।
बच्चों की साहित्यिक वृति, कौशल, समझ,विकसित करने के साथ – साथ स्वस्थ मनोरंजन के लिए समय – समय पर बाल वर्क शॉप जैसे आयोजन किया जाना कारगर कदम रहेगा। बच्चों को विभिन्न प्रतियोगिताओं में विजेता रहने पर पुरस्कार के साथ – साथ बाल साहित्य की पुस्तक भी दी जानी चाहिए।
खुशी है की राजस्थान के जयपुर में देश की प्रथम जवाहरलाल नेहरू बाल साहित्य अकादमी की स्थापना की गई है। अकादमी ने अपनी शैशव अवस्था में ही बाल साहित्य के क्षेत्र में लीक से हट कर कार्य करने के संकेत दिए हैं। ऐसी बाल साहित्य अकादमियां पूरे देश में स्थापित हों तो बाल साहित्य के क्षेत्र में सकारात्मक काम होगा और एक वातावरण निर्मित होगा।
दक्षिणी राजस्थान के दूरस्थ आदिवासी अंचल सलूंबर जिला मुख्यालय से देश में ही नहीं दुनिया में बाल साहित्य का प्रतिनिधित्व करने वाली बाल साहित्यकार विमला भंडारी के इन विचारों के साथ एक नजर डालते हैं उनके साहित्य संसार पर। वे बाल साहित्य की दृष्टि से अपने आपने स्वयं में एक संस्था कही जा सकती हैं। सलूंबर का लेखन लालित्य आशय लिए ” सलिला ” नामक उनकी संस्था की अनेक बाल साहित्यिक गतिविधियों और राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रमों से इस बात का उन्हें परम संतोष है की देश के कई बड़े साहित्यकार संस्था के कार्यक्रमों में आए और वे बाल साहित्य पर लिखने लगे हैं।
सलूंबर का इतिहास लेखन के दौरान एक संस्कृत के विद्वान साहित्यकार द्वारा सुझाए गए नाम पर संस्था का यह नाम ‘ सलिला ‘ रखा गया। इनके व्यापक सोच, दृष्टिकोण, पूर्ण समर्पण एवं कर्मनिष्ठा की वजह से स्थानीय साहित्य प्रेमियों के लिए बनी इस संस्था का स्वरूप आप राष्ट्रीय हो गया है और देश में अपनी पहचान बनाने में सफल रही है।
बच्चों और किशोरों के लिए इनकी कहानियों में मनोविज्ञान है, कविताओं में चेतना है, उपन्यासों में दृष्टि और दिशा है, चिल्ड्रन पिक्चर बुक में मनोरंजन है और नाटकों में रोचकता है। साहित्यिक प्रदेश और अंतर राज्य यात्राएं करके साहित्य मशाल को जलाए रखने वाली साहित्यकार की प्रकाशित 39 कृतियों में सर्वाधिक 11 बाल कहानी, 3 बाल उपन्यास, 3 कहानी संग्रह,एक कविता संग्रह, 2 चिल्ड्रन पिक्चर बुक, 3 किशोर उपन्यास, 2 नाटक आधारित कृतियां हैं।
इन्होंने 11 बाल पुस्तकों का संपादन भी किया और इतिहास, यात्रा संस्मरण आदि पर अन्य पुस्तकें और कई शोध पत्र भी इन्होंने लिखे हैं। इनके लेखन, व्यक्तिव और कृतित्व पर 5 शोध कार्य भी किए गए हैं। इनके लेखन की विशिष्टता से 3 पुस्तकें पाठ्यक्रम में शामिल की गई और साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, राजस्थान साहित्य अकादमी और राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी द्वारा बाल साहित्य की 10 पुस्तकों पर इन्हें राष्ट्रीय सम्मान से नवाजा जाना बाल साहित्य जगत में गर्व का विषय है। एक और उल्लेखनीय तथ्य है की ये विश्व 111 हिंदी साहित्यकारों में अपना स्थान रखती हैं।
:
इनके बाल साहित्य से सृजित और राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत बाल कहानी “पृथ्वी ने मांगी चप्पल” का कथानक देखते हैं…
” एक दिन अचानक से पृथ्वी चलती चलती रुक गई। कहने लगी – “इतने सालों से चक्कर लगा रही हूं मेरे पांव में छाले पड़ गए हैं। मुझे भी पांव में पहनने को चप्पल चाहिए।“ जब पृथ्वी चलती चलती रुक गई तो दिन और रात दोनों ही वही ठहर गए। जहां दिन था पृथ्वी के उस भाग में दिन स्थिर हो गया। जिस भाग में रात थी वहां रात स्थिर हो गई। पृथ्वी पर रहने वाले जीव जगत इस स्थिति से घबरा गए। लगातार दिन रहने से तापमान बढ़ने लगा तो दूसरी ओर लगातार रात रहने से ठंडक बढ़ गई। रोशनी के अभाव में जहां के काम वहीं रुक गए। चांद को भी परेशानी होने लगी। वह पृथ्वी के चक्कर लगाता हुआ उसे मनाने की कोशिश करने लगा। पर पृथ्वी मानी नहीं। उसे अपने पांव के छाले बताने लगी और चप्पल की मांग करने लगी। अब तो सूरज भी परेशान हो गया।
पृथ्वी के स्थिर खड़े हो जाने से उसका तो कैलेंडर ही गड़बड़ा गया। दिन और रात नहीं बदलेंगे तो तारीख कैसे आगे बढ़ेगी? तारीख के साथ-साथ सप्ताह के सातों वार भी तो चिंतित हो गए। सोमवार के बाद मंगलवार को आना था पर पृथ्वी के रुकते ही सब वहीं का वहीं ठहर गया। जो पृथ्वी 365 दिन में सूर्य का पूरा चक्कर लगा लेती थी और वह 365 दिन मिलकर 1 वर्ष कहे जाते हैं। जब वही गड़बड़ हो गए तो वर्ष के 12 महीने और सप्ताह के सातों दिन का चिंतित होना स्वाभाविक ही था।
पृथ्वी के साथ इन सब को स्थिर देखकर ऋतु चक्र विचलित हो गया। पृथ्वी के झुके झुके चलने के कारण ही तो ऋतुओं का आना-जाना होता है। अब? कैसे बदले की ऋतुएं? प्रश्न इतना गहरा था कि अब कैसे सर्दी गर्मी और बरसात होगी? समुद्र और जमीन सभी को चिंता थी। हवा का मूड ही बहुत खराब था। उसकी सारी अठखेलियां और हेकड़ी ठहर गई।
चांद, सूरज की चिंता से अब आकाश के तारे भी प्रभावित होने लगे। पृथ्वी के एक हिस्से में उन्हें लगातार टिमटिमाना पड़ रहा था और दूसरे भाग में तो तेज सूर्य की रोशनी के कारण उन्हें कोई देख ही नहीं सकता था। पृथ्वी की चाल रुकते ही इतना कुछ प्रभावित होगा ऐसा अभी तक किसी ने सोचा नहीं था। पृथ्वी का चलना बहुत जरूरी है। वह अपने अक्ष पर भी घूम रही थी और साथ ही झुकी-झुकी सूर्य के चक्कर भी लगा रही थी।
सब कुछ यथावत चल रहा था। बादल बन रहे थे। बारिश हो रही थी। तरह तरह के पेड़ पौधे उग रहे थे। फूलों और फलों का सारा संसार हरा भरा था। जंगल में कई तरह के जीवों वह का अपना अस्तित्व था। सारा जीव जगत आपस में विचार करने लगा- अब क्या होगा? निरंतर धूप वाली जगह से पृथ्वी का सारा पानी सूख जाएगा। जीव जगत में चाहे वह वनस्पति हो या जीव जंतु दोनों का ही अस्तित्व संकट से गिर गया। लगातार रात रहने वाले हिस्से में भी यही हालात थे। धूप नहीं होगी तो पेड़ पौधे नष्ट हो जाएंगे। यह प्रकाश संश्लेषण करके अपना भोजन नहीं बना पाएंगे। पौधे नहीं होंगे तो जीव जंतु खाएंगे क्या? भूखे ही मर जाएंगे।
“पृथ्वी को चप्पल दिलाना जरूरी हो गया है।“ चट्टान पर बैठे एक मेंढक ने कहा। “पृथ्वी की तकलीफ को भी हम जलचर को समझना चाहिए।“ तालाब की एक मछली ने पानी से मुंह बाहर निकाल कर कहा। “क्या पृथ्वी इतनी नाजुक है?” बरगद के पेड़ ने पूछा। “क्या उसके पांव में चलने से छाले हो गए?” डाल पर बैठे कौवे ने आश्चर्य से पूछा। “उसके नाप की चप्पल कहां मिलेगी? कोई अगर मुझे बताए तो मैं ला सकता हूं पृथ्वी के लिए चप्पल।“ कछुए का सवाल भी वाजिब था। सब मिलकर चर्चा कर रहे थे। चिड़िया ने कहा, “मैं उड़ती हूं और ढूंढ लेती हूं कि कहां चप्पल मिल रही है ताकि पृथ्वी की परेशानी खत्म हो।“ “पृथ्वी खुश तो हम पृथ्वीवासी भी खुश। हमें पृथ्वी की चिंता करनी होगी।“ पास ही खड़ी एक छोटी लड़की ने कहा।
पृथ्वी भी सब की चर्चा सुन रही थी। किस को कितनी चिंता है उसकी? पृथ्वी ने देखा एक नन्हें फूल की आंखों में आंसू है और वह मुरझाकर लटक गया है। उसकी यह हालत चिड़िया से देखी नहीं गई। वह पूछ बैठी- “फूल क्या तुम भी पृथ्वी के लिए चिंतित हो?” फूल ने कहा, “मेरा तो 1 दिन का ही जीवन है। मैं तो खिल कर सारे जग को खुशबू देना चाहता हूं पर अब मैं यह काम नहीं कर पाऊंगा क्योंकि मेरा तो एक ही दिन का जीवन है।“
उसने दुखी होते हुए कहा। पृथ्वी ने भी नन्हें फूल की बात सुनी। उसे अपनी गलती का एहसास होने लगा। उसके रुकते ही सब पर संकट आ गया। कहां है उसके पैर? छाले की बात तो पूरी मनगढ़ंत है। काम न करने का एक बहाना है। वह तो अपनी धुरी पर घूमती है। नहीं… नहीं… व्यर्थ की बहानेबाजी छोड़ उसे घूमना होगा। उसे इस नन्हें फूल से ही सही सबक तो लेना ही होगा। अचानक से रुकी हुई पृथ्वी चल पड़ी। पृथ्वी के अपने अक्ष पर घूर्णन करते ही सबका मन प्रसन्नता से खिल गया और सब कुछ पहले की तरह सामान्य हो गया। पर इससे सब को एक सबक जरूर मिला कि हमें पृथ्वी की तकलीफ़ों को समझना चाहिए। वह हमारे लिए महत्वपूर्ण है। ”
बाल कहानियों पर लिखी इनकी कृतियोंं में प्रेरणादायक बाल कहानियाँ (पुरस्कृत), जंगल उत्सव, बालोपयोगी कहानियाँ, बगिया के फूल, करो मदद अपनी, मजेदार बात, अणमोल भेंट (पुरस्कृत) , हवा से बातें, उड़ने वाले जूते – पुरस्कृत, मस्तानों की टोली, मधुबन की सरस कहानियाँ शामिल हैं। इन्होंने बाल उपन्यास इल्ली और नानी भाग-1 और भाग – 2 (पुरस्कृत), और सुनेहरी एवं सिमरू – (पुरस्कृत) लिखे हैं। चिल्ड्रन पिक्चर बुक में किस हाल में मिलोगे दोस्त और पृथ्वी ने मांगी चप्पल (पुरस्कृत) हैं।
बाल पुस्तक (संपादन) में हमारे समय की श्रेष्ठ बालकहानियाँ, देख लो जग सारा, पत्र तुम्हारे लिए, श्रेष्ठ बाल एकांकी संचयन,आत्मकथाओं का सागर, जीवनियों की गुल्लक, बच्चों के ज्ञानवर्धक आलेख कृतियां शामिल हैं। इनकी मोहित की बाल कहानी को भी (पुरस्कृत) किया गया है। किशोर उपन्यासों में सितारों से आगे (पुरस्कृत), कारगिल की घाटी (पुरस्कृत) और दी ऑरबिट आई, मंजूरानी और मूर्तिचोर लिखे हैं। कहानी संग्रह में औरत का सच, थोड़ी सी जगह और सिंदूरी पल हैं।
नाटकों में सत री सैनाणी (राजस्थानी भाषा) और मां तुझे सलाम की रचना की हैं। उपन्यास आभा का सिंधी से राजस्थानी में अनुवाद किया है। ऑनलाइन गाथा डाॅट काॅम. एंडलेस टेल पर कविता संग्रह घर धर्मशाला हो गये प्रकाशित हुआ है। इन्होंने अध्यात्म का वह दिन (पुरस्कृत), लंदन से रोम और सौराष्ट्र में सोमनाथ यात्रा वृतांत पुस्तकें लिखी हैं। इतिहास में सलूम्बर का इतिहास (मेवाड़ का प्रमुख ठिकाना) का लेखन भी किया है। इन्होंने दो दर्जन से अधिक शोध पत्रों का लेखन और प्रस्तुतिकरण किया है।
इन्होंने मुकुन्दलाल पंड्या द्वारा रचित डायरी और प्रो. रघुनाथसिंह मंत्री द्वारा रचित आलेख संग्रह पुस्तकों का संपादन भी किया है। पत्रिका सलिल प्रवाह के विभिन्न विशिष्ट 9 अंकों का वर्ष 2010 -14 तक, राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर की मधुमति के बाल साहित्य विशेषांक तथा समय किरण साप्ताहिक समाचार पत्र में बाल साहित्य पृष्ठ का अप्रेल 2016 से अक्टूबर 2016 तक के अंकों में संपादन भी किया है।
इनकी पुस्तक इल्ली और नानी (बाल उपन्यास), कारगिल की घाटी (किशोर उपन्यास) और मां तुझे सलाम (नाटक) का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद किया जाना और महाराष्ट्र राज्य पाठ्यपुस्तक निर्मिती व अभ्यासक्रम संशोधन मंडल, पुुुणे द्वारा इनकी टीटू और चिंकी और स्वाद का रहस्य बाल सुलभ भारती पुस्तकों को कक्षा 6 के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। पृथ्वी ने मांगी चप्पल, पाठ्य पुस्तक – टिप टिप टॉय सीरीज में शामिल होना इनके लेखन की प्रभावशीलता और लोकप्रियता का प्रमाण है।
आपने युगयुगीन सलूम्बर पर (डाक्यूमेंटरी फिल्म) का निर्माण कराया और हाड़ी रानी अमर बलिदान की कहानी ‘‘सत री सैनाणी’’ नाटक पर फिल्म निर्माणाधीन है। आप तीन साहित्यिक ब्लाॅग और बाल साहित्य लेखन व्हाट्सअप समूह संचालित करती हैं।
लेखिका के लेखन की गहराई,कौशल और मूल्य और व्यक्तित्व की सरसता की वजह प्रभावित हो कर इनके लेखन पर विद्वान लेखकों ने शोध कार्य कर पुस्तकें लिखी हैं और संपादन कार्य किया है। दिनेश कुमारी माली ने
“डाॅ. विमला भंडारी की रचनाधर्मिता” पर पुस्तक लिखी। अंजीव ‘अंजुम’ ने ” डाॅ.विमला भंडारी की चुनिंदा बाल कहानियां”;का संपादन किया। डाॅ. जयश्री शर्मा ने अनुकृति, साहित्यिक त्रैमासिक पत्रिका, डाॅ. विमला भंडारी पर केंद्रित का संपादन किया। मोतीराम बाबूराम राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, हल्द्वानी, नैनीताल, उत्तराखंड की शोधार्थी
डाॅ.प्रभा पंत ने “श्रीमती विमला भंडारी के साहित्य का अनुशीलन” पर लघु शोध प्रबाध लिखा। रूलर इंस्टीटृयट, विद्या भवन, उदयपुर
के एक शोधार्थी जितेंद्र ने भीनी पर लघ शोध प्रबन्ध लिखा है।
विमला भंडारी के द्वारा जनमानस में साहित्य स्थापन, उन्नयन, समृद्धि और संरक्षण कार्यों के अंतर्गत 4 सितम्बर 1994 को सलूंबर में स्थापित की गई ‘सलिला संस्था’ सलूंबर के साहित्यिक रूचि रखने वालों के लिए वैचारिक मंच देने के लिए आरंभ की गई है । आज यह संस्था देशभर में बाल साहित्य की विशिष्ट अग्रणी संस्था बन गई है। संस्था के माध्यम से 2010 से प्रतिवर्ष ज्वलंत राष्ट्रीय थीम पर आधारित 2 से 7 दिन अवधि के राष्ट्रीय बाल साहित्यकार सम्मेलन राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर, नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया, नई दिल्ली, भारतीय बाल साहित्य संस्थान कानपुर जैसी कई संस्थाओं के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किए जाते हैं।
जिसमें राजस्थान सहित देश के अनेक राज्यों के वरिष्ठ एवं नवोदित बाल साहित्यकार पत्र वाचन, संगोष्ठी, कार्यशाला, लेखन कार्यशाला, चित्र कौशल कार्यशाला, कार्टून, कोलाज, पत्रिका व पुस्तकों की प्रदर्शनी, डॉक्यूमेंट्री फिल्म प्रदर्शन,बालकों और शिक्षकों द्वारा पुस्तक समीक्षा, नई पुस्तकों का लोकार्पण, कवि सम्मेलन,बाल साहित्यकारों के शोध पत्र वाचन आदि कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। सलिल प्रवाह स्मारिका भी प्रकाशित की जाती है , जिसमें बाल साहित्यकारों को शामिल करने के साथ – साथ बालकों की साहित्यिक गतिविधियों को भी शामिल किया जाता है। इन कार्यक्रमों से हजारों बच्चों में बाल साहित्य के प्रति रुचि जाग्रत हो कर साहित्य के प्रति उनका रुझान बढ़ा और बड़े कवि भी बाल साहित्य लिखने की और अग्रसर हुए।
आप ‘बाल साहित्यकार पटल’ नाम से व्हाट्सअप समूह का संचालन बाल साहित्य लेखन कार्यशाला की तरह चला रही है। जिसमें प्रतिदिन विभिन्न विधाओं पर बाल साहित्य सृजन, लेखन, समीक्षा, आलोचना, सुझाव एवं सूचनाओं का समावेश रहता है। वर्तमान में इसे बाल साहित्यकार कार्यशाला का स्वरूप दे दिया गया है।
आपके पुरस्कार और सम्मान चर्चा क्या करें। आपके बाल साहित्य पर किए गए श्लांघणीय कार्यों और उपलब्धियों के सामने सब बौने हैं।
देश का कोन सा ऐसा बड़ा बाल साहित्य और अन्य बड़ा पुरस्कार है जो इनकी झोली में नही आया हो। लेखन और पत्रकारिता के रूप में देश की केंद्र और राजों की अकादमियों तथा निजी ट्रस्टों एवं साहित्यिक संस्थाओं द्वारा 6 दर्जन से अधिक पुरस्कार और सम्मान प्राप्त करने का इन्हें गौरव प्राप्त हुआ। ‘सलूंबर का इतिहास’ पुस्तक बहुत चर्चित एवं लोकप्रिय हुई एवं विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, भागलपुर, बिहार द्वारा 2011 में इनको विद्यावाचस्पति की मानद उपाधि से नवाजा गया। अंतर्राष्ट्रीय वामा संस्कृति एवं साहित्य अकादमी के केंद्रीय बोर्ड की (बाल साहित्य) की अध्यक्ष हैं। राजस्थान साहित्य अकादमी और जवाहरलाल नेहरू बाल साहित्य अकादमी की पूर्व सदस्य है और विविध साहित्यिक संस्थाओं से जुड़ी हैं।
देश और दुनिया में बाल साहित्य से पहचान बनाने वाली साहित्यकार डॉ.विमला भंडारी का जन्म 1 फरवरी 1955 को राजस्थान में राजसंद जिले के ग्राम राजनगर में हुआ। आपने विज्ञान विषय में बी.एससी, पत्रकारिता में पत्रकारिता और जन संचार में स्नातक और हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर की शिक्षा प्राप्त की है। कह सकते हैं कि ये संवेदना से साहित्यकार, दृष्टि से इतिहासकार, मन से बाल साहित्यकार और कर्म से सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ता है। जिला परिषद सदस्य के रूप में राजनीति में आकर समाज सेवा की भावना से कार्य किया। राजनीति, समाज सेवा और साहित्य लेखन सब साथ – साथ चलता रहा। देश के अनेक पत्र – पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं, साक्षात्कार प्रकाशित हुए और जयपुर दूरदर्शन से साक्षात्कार, व जयपुर, उदयपुर एवं चितौड़गढ़ आकाशवाणी केन्द्र से हिन्दी व राजस्थानी में नाटक, कहानी, वार्ता के प्रसारण हुए हैं।
बच्चों को बाल साहित्य की पुस्तकों से जोड़ने के लिए सदैव चिंतित और प्रयास रत रहने वाली साहित्यकार की चलते – चलते “पसंद’ कविता की पंक्तियां…..
दिल की फसल
लेने लगे हैं
अब तो लोग।
पेड़ लगा लिए हैं दिल के
चाहे जितने उगाओ,
तोड़ो और बांटो।
जज्बातों की अब किसे पड़ी
प्रतीकों पर
यह सारी दुनिया खड़ी।
भाव और रस
टिक गए हैं
न जाने किस कोने में।
मत पूछो धड़कने की बात
कान बहरे
और आंखे शातिर है।
यहां धड़कन नहीं,
नजर रंगत और टैग पर लिखी
ब्रांड और कीमत पर है।
सम्पर्क :
भंडारी सदन, पैलेस रोड,
पोस्ट: सलूम्बर- ( राजस्थान )
मोबाइल: 9414759359
—————
( लेखक पर्यटन विषय के विशेषज्ञ हैं और सामाजिक और साहित्यिक विषयों पर 45 साल से लिख रहे हैं। )
डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवम् पत्रकार, कोटा