रहली, सागर(मध्यप्रदेश)। मध्यप्रदेश के सागर नगर के निकट एक उनींदा सा कस्बा रहली, अचानक गुलजार हो उठा है ,कस्बे की सुबह चमकदार सी हो उठी है, तंग गलियो मे एक दूसरे से जुड़े मकानो से जहा तहा रास्ता निकाल झांकती धूप मे मुस्कराहट सी है, आस पास फुर्सत से बैठे लोगो के जमघट है. कस्बे मे लगने वाले हाट के नियमित खरीददरो के चेहरो मे कुछ अजनबी से चेहरे है.ये नये नये लोग छिटपुट खरीददारी कर रहे है.कस्बे के आस पास छोटे छोटे गॉवो से आये ग्रामीण विस्फारित से नेत्रो से इन नये लोगो को कौतूहल से देख रहे है. कस्बा जगह जगह तोरण द्वारो, रंग बिरंगी झंडियो से सजा हुआ है, मंदिर से घंटो की आवाजे आ रही है,कही लोग ‘आचार्य विद्यासागर’ के जयघोष कर रहे है, अचानक एक शोर सा मचता है जयघोष रूक जाते है लोग एक दूसरे से सवाल पूछ रहे है’ क्या यह सही खबर है, मै तो थोड़ी देर पहले ही वही था , तब तो चर्चा तक नही थी ‘ और इन्ही तमाम सवालो के उधेड़ बुन मे लगे श्रधालुओ का रेला जैन मंदिर की और बढने लगता है…
तमाम घटनाक्रम बदला है जैन मुनि आचार्य विद्यासागरजी महाराज के अचानक ससंघ रहली से विहार करने की खबर से . एक ‘वीतरागी अनियत विहारी’ के यूं ही सब कुछ एकाएक छोड, अगले पड़ाव पर चल देने की. रहली, वह जगह जहां आचार्यश्री पिछले कुछ समय से अपने संघ के मुनियो के साथ विराजे हुए थे और न/न केवल आस पास के लोग बल्कि भारत और विदेशो से उनके भक्त उनके दर्शन के लिये यहा पहुंच रहे थे .इस घोर तपस्वी, दार्शनिक संत की चर्या और विद्वता के प्रभामंडल से प्रभावित,उनकी जीवन चर्या और सदवचनो से प्रेरित हो कितने ही लोग अपने जीवन की धारा को एक नया सकारात्मक अर्थ दे रहे है, जन कल्याण से जुड़ रहे है. घोर तपस्वी, दार्शनिक संत की चर्या और विद्वता के प्रभामंडल से प्रभावित भारी तादाद मे श्र्धालु आचार्यश्री जहा भी हो वहा पहुंच ही जाते है, चाहे वह ऐसा स्थान ही क्यो न/न हो जहा आवा जाही बेहतर कठिन हो.
घटनाक्रम फ्लेशबेक मे चलने लगता है…आज दोपहर तक सब कुछ सामान्य गति से चल रहा था.दिल्ली से मै भी अपने परिवारजनो के साथ सुबह ही उनके दर्शन को पहुंची थी, सुबह के दर्शन के बाद जब उनसे कुछ समय धर्म चर्चा के लिये दिये जाने का आग्रह किया तो मुस्कराते हुए बोले ‘ देखो’ तब एक पल भी नही लगा कि ‘वीतरागी’ ने अगले पड़ाव पर जाने की तैयारी कर ली है,लेकिन किसी को कुछ खबर नही.कुछ देर बाद जब मै अपनी बहिन साधना, इस संक्षिप्त प्रवास मे सागर शहर के साथी संजय भय्या, प्रियांश और धर्मबंधु राकेश भय्या के साथ आचार्यश्री के सदवचनो का लाभ लेने पहुंचे तो पाया उत्साही श्रधालु आचार्यश्री के दोपहर के प्रवचन के लिये जुड़ने लगे थे.आचार्यश्री के दर्शन और उनकी एक झलक पाने को उत्सुक, उत्साह से चमकते श्रधालुओ की भीड़ जमा थी, तभी अचानक वहा हलचल तेज होने लगती है, कुछ व्यवस्थापक और संघ के मुनिजन तेजी से इधर उधर जाते हुए दिखाई देते है,
हम आचार्यश्री के दर्शन के बाद खड़े खड़े पूरे मंजर को देख रहे थे, कुछ समझ नही आ रहा था आखिर हो क्या रहा है.साध्वियो का एक ग्रुप आचार्यश्री से चर्चा कर रहा है. तभी पास से मुनि संघ के वरिष्ठ आचार्य योगसागर आते है. संक्षिप्त चर्चा पर कहते है ‘अब तो चर्चा विहार की है ‘ और यह वाक्य संकेत् दे गया कि आचार्यश्री ने यहा से जाने का या यूं कहे ‘विहार’ करने का मन लिया है.पास खड़े संजय भय्या कहते है ‘ आचर्यश्री कब उठ कर चल दे केवल वे ही यह जानते है,’ साधना पूरा मजर देख कर अभिभूत है.कहती है’ सब कुछ चमत्कारिक सा है’ ‘जाने की बात अब सार्वजनिक हो गई है.
कुछ समय पूर्व दमकते चेहरो पर चेहरो पर उदासी सी फैलने लगी है खास तौर पर स्थानीय लोगो के चेहरे पर उदासी गहरी होती जा रही है.वहीं कपड़े की दुकान के एक मालिक धीमी सी आवाज मे फुसफुसाते से कहते है ‘ सुना था आचार्यश्री कुछ दिन श्रधालुओ को सद्संगत का अमूल्य उपहार दे कर अचानक छोड़ कर चल देते है, लेकिन हमने सोचा नही था हमारे साथ इतनी जल्दी ऐसा ही होगा, शायद इसीलिये इन्हे ‘अनियत विहारी’ कहते है. पल छिन मे सब कुछ छोड़ कर अगले पड़ाव् के लिये यह वीतरागी चल् देता है, और इनके पीछे चल देते है संघ के मुनि जन जो इंजीनियरी तथा उच्च शिक्षा प्राप्त है लेकिन शिक्षा पूरी करने के बाद भौतिक दुनिया को अपनाने की बजाय आत्म कल्याण से जन कल्याण क़ी यात्रा पर निकल पड़ते है’एक व्यवास्थपक बता रहे है आचर्यश्री के निकटवर्ती तारादेही स्थान पर पहुंचने की संभावना है जहा 14 से 21 जनवरी तक आचार्यश्री के सान्निध्य में पंच कल्याणक अनुष्ठान होने जा रहे हैं।
तपस्वी संत अगले पड़ाव पर जा रहे है, उनके संघ के 40 मुनिजन एक के बाद उनके पीछे चल रहे है. विदा देने के लिये साथ चल रहे है उदास चेहरो से इस कस्बे के निवासी लगभग 16 किलो मीटर चल कर वे अगले पड़ाव तक पहुंचेगे. दिसंबर के जाड़े मे दिगंबर अवस्था मे रहने वाले मुनिजन जो नंगे पैरो से हिमालय से कन्याकुमारी तक की हजारो किलोमीटर की पैदल यात्रा करते है.उनके नंगे पैरो से उड़ती धूल, प्रवचन स्थल से उतरते शामियाने, उठाई जा रही दरियॉ, श्रधालुओ की उदास ऑखे,अचानक मेले से सूनेपन मे पसरता कस्बा और इन सब से बेखबर चले जा रहे वीतरागी संत और उनका संघ…