नई दिल्लीः देश के बुजुर्गों को पूरे साल भर कोरोना महामारी के कारण काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। देखने में आया है कि कोविड-19 स्थिति और उसके कारण सरकार द्वारा लगाये गये लाॅकडाउन और प्रतिबंधों ने लगभग हर बुजुर्ग के दैनिक जीवन को काफी हद तक प्रभावित किया है। एजवेल फाउंडेशन द्वारा किए गए नवीनतम सर्वेक्षण के अनुसार, कोविड-19 के खतरे के चलते बुजुर्ग समुदाय की जरूरतें बहुत तेजी से बदली हैं, जिन्हें पूरी करना उनके लिए मुश्किल हो गया है, इसलिए उन्हें आज राहत की काफी जरूरत है। ‘‘भारत में बुजुर्गों की बदलती जरूरतें (वर्तमान वृद्धावस्था देखरेख व समर्थन परिदृश्य पर विशेष प्रकाश)‘‘ नामक शीर्षक वाला राष्ट्रीय अध्ययन जनवरी-फरवरी 2021 के दौरान सम्पन्न किया गया। स्टडी रिपोर्ट यूनाइटेड नेशन्स की वेबसाइट पर ओपन-एंडेड वर्किंग ग्रुप आॅन एजिंग के 11वें सत्र के तहत संबंधित हितधारकों के लिए संन्दर्भ के रूप में उपलब्ध है।
एजवेल फाउंडेशन के वाॅलन्टियरों ने देश के 27 राज्यों में 10,000 बुजुर्गों के साथ सम्पर्क साधा। बुजुर्गों की बदलती जरूरतों का आकलन करने के अलावा सर्वेक्षण के दौरान, बुजुर्गों पर महामारी के प्रभाव का आकलन भी किया गया। अध्ययन से पता चला है कि कोरोना महामारी ने बुजुर्गों के स्वास्थ्य और सामाजिक जीवन को तो प्रभावित किया ही है और साथ ही उनकी मानसिक और आर्थिक स्थिति को भी प्रभावित किया है। इस नवीनतम पहल के बारे में बात करते हुए, एजवेल फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष, हिमांशु रथ ने कहा, ‘‘वर्तमान समय में वृद्धावस्था स्वास्थ्य देखभाल और सामाजिक
सुरक्षा का परिदृश्य बहुत निराशाजनक है। सरकार को देश की तेजी से बढ़ती बुजुर्ग आबादी, उनकी तेजी से बदलती व निरंतर बढ़ती जरूरतों को ध्यान में रखते हुए उनके मुद्दों पर विशेष ध्यान देना चाहिए। सभी स्तरों पर ऐसे कारगर कदम उठाए जाने चाहिए कि बुजुर्ग मुख्य धारा में जुड़े रह सकें।‘‘
इस अवसर पर, श्री आर. सुब्रह्मण्यम, आई.ए.एस., सचिव, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार ने कहा, ‘‘ आज देश के बुजुर्गों की देखभाल सुनिश्चित करने के लिए भारी आर्थिक निवेश की आवश्यकता है। इसके साथ ही भावनात्मक निवेश और अंतर-पीढ़ीगत संबंध विकसित करने की भी जरूरत है। निरंतर बदलती पारिवारिक संरचना के कारण आज अंतर-पीढ़ीगत संबंध भी तनावग्रस्त हो चुके हैं। पारम्पारिक परिवार संरचनाओं को मजबूत करने और बुजुर्गों की देखभाल के लिए व्यावहारिक विकल्प प्रदान करने के लिए इस सामाजिक वास्तविकता की पहचान करना और इसका समाधान खोजना नितांत आवश्यक हो गया है।‘‘ एजवेल फाउंडेशन के सर्वेक्षण के प्रमुख निष्कर्ष ऽ 64.6ः बुजुर्ग उत्तरदाताओं ने दावा किया कि बुढ़ापे में उनकी स्वास्थ्य की स्थिति बहुत खराब/खराब है। बुजुर्ग उत्तरदाताओं के अनुसार, उनकी स्वास्थ्य स्थिति औसत है और लगभग 11ः बुजुर्ग उत्तरदाताओं ने कहा कि उनकी वर्तमान स्वास्थ्य स्थिति अच्छी/बेहतर है।
शहरी क्षेत्रों में बुजुर्गों की स्वास्थ्य स्थिति में अपेक्षाकृत थोड़ा सुधारहुआ है, जहां 51.2ः उत्तरदाताओं ने दावा किया कि उनकी वर्तमान स्वास्थ्य स्थिति अच्छी/बेहतर है। जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में बुजुर्गों ने स्वीकार किया कि उनकी वर्तमान स्वास्थ्य स्थिति को अच्छा या बेहतर कहा जा सकता है।
बुजुर्ग महिलाएं बुजुर्ग पुरुषों की तुलना में बुढ़ापे में स्वस्थ जीवन जी रही हैं। 33.8ः पुरुषों की तुलना में 37.8ः बुजुर्ग महिलाओं को कथित तौर पर बेहतर स्वास्थ्य का आनंद लेते हुए पाया गया। ऽ लगभग हर चैथाई बुजुर्ग (23.6ः) उत्तरदाताओं ने पुष्टि की कि उन्हें एक या अधिक सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं के तहत लाभ मिल रहा है।
जहां तक मौजूदा स्वास्थ्य सेवा योजनाओं/सुविधाओं की दशा का संबंध है, लगभग 40 प्रतिशत बुजुर्गों के अनुसार देश की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की वर्तमान स्थिति निराशाजनक है। जब उनके जीवन पर कोरोना महामारी के प्रभाव के बारे में पूछा गया, तो सबसे अधिक बुजुर्गों यानि 29.5ः बुजुर्ग उत्तरदाताओं ने दावा किया कि महामारी ने उनके सामाजिक जीवन को काफी हद तक प्रभावित किया है। इन बुजुर्गों ने कोविड-19 के कारण सामाजिक जीवन पर लगाये गये लाॅकडाइन और प्रतिबंधों को प्रतिकूल प्रभाव के लिए सबसे अहम् जिम्मेदार घटक बताया।
बुजुर्ग उत्तरदाताओं ने दावा किया कि कोविड-19 स्थिति ने उनकी स्वास्थ्य स्थिति को सबसे अधिक प्रभावित किया है और उन्होंने इसे चिंता का प्रमुख कारण माना है। बुजुर्गों के अनुसार, कोरोना महामारी ने कई मनोवैज्ञानिक समस्याओं को जन्म दिया है, जो उनकी प्राथमिक चिंता रही।
बुजुर्ग उत्तरदाता अपनी वित्तीय जरूरतों के लिए अपने बच्चों/दूसरों पर निर्भर नहीं थे और उन्होंने दावा किया कि वे आर्थिक रूप से आत्म-निर्भर हैं या सिर्फ अपने पति/पत्नी पर निर्भर हैं। ऽ 55.1ः बुजुर्ग उत्तरदाता देश की वर्तमान वित्तीय सुरक्षा प्रणाली से संतुष्ट नहीं हैं। आधे से अधिक बुजुर्ग उत्तरदाताओं (52.47ः) ने कहा कि उन्हें बुढ़ापे में कौशल/सॉफ्ट स्किल/डिजिटल प्रशिक्षण की जरूरत है। 44.9ः बुजुर्गों को स्वरोजगार/नौकरी के अवसरों की आवश्यकता है, ताकि वे किसी आयोपार्जन वाले काम में व्यस्त रह सकें। ऽ 68.6ः बुजुर्गों ने कहा कि देश में वृद्धाश्रमों/आश्रय-गृहों की संख्या पर्याप्त
नहीं है।
सर्वेक्षण के निष्कर्षों और टिप्पणियों के आधार पर, एजवेल फाउंडेशन ने निम्न सिफारिशें की हैं-
बुजुर्गों के लिए समर्पित स्वास्थ्य सेवाओं, जैसे कि मुफ्त चिकित्सा परामर्श, होम-विजिट, स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता, स्वच्छता और देखरेख सेवाएँ आदि की व्यवस्था की जाए।
स्थानीय स्तर पर सभी शारीरिक तौर पर असमर्थ/विकलांग/गंभीर रूप से बीमार बुजुर्गों का पंजीकरण किया जाए और उनके लिए घर पर चिकित्सा सहायता सेवाओं का प्रावधान किया जाए।
सेवानिवृत्त/सक्षम वृद्धों के लिए व्यापक बहु-गतिविधि केंद्र और बहु-कौशल मंचों का गठन किया जाए।
बुजुर्गों की विभिन्न समस्याओं अर्थात आर्थिक, चिकित्सा-संबंधी, कानूनी, सामाजिक, सुरक्षा संबंधी समस्याओं के लिए समर्पित हेल्पलाइन/सलाहकार सेवाओं/शिकायत निवारण/परामर्श सेवाओं का प्रावधान किया जाए।
वृद्धावस्था पेंशन और अन्य प्रत्यक्ष सामाजिक लाभ योजनाओं की समीक्षा की जाए और योजनाओं के सामयिक व कुशल कार्यान्वयन पर विशेष जोर दिया जाए।
अटल पेंशन योजना, राष्ट्रीय पेंशन योजना और स्वावलंबन योजनाओं का पुनर्गठन किया जाए।
सीमित आय वाले वृद्धजनों के लिए आयकर छूट की सीमा में वृद्धि की जाए।
राष्ट्रीय महिला आयोग की तर्ज पर राष्ट्रीय वृद्धजन आयोग का गठन किया जाए।
सेवानिवृत्त बुजुर्गों को स्व-रोजगार दिलाने के लिए प्रधानमंत्री स्व-रोजगार योजना शुरू की जाए।
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