गण गणेश उत्सव समिति ने की
लीक से हटकर निराली तैयारी
राजनांदगांव। संस्कारधानी में गणेशोत्सव की चिर प्रतिष्ठित परंपरा का उत्साह आज भी बना हुआ है। मंगल मूर्ति गजानन महाराज की आकर्षक प्रतिमाएँ, मनोहारी स्थल सजावट से लेकर विसर्जन झांकियों की अथक परिश्रम के साथ की जा रही तैयारियाँ यहाँ की समितियों के समर्पण भाव की जीवंत प्रमाण है। विसर्जन झांकियों में वैसे तो पौराणिक, धार्मिक, ऐतिहासिक और राष्ट्रीय सन्दर्भों को चित्रित करने का अंतहीन सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है, किन्तु इस वर्ष एक ऎसी विसर्जन झांकी की शानदार, जानदार और समझदार तैयारी देखने में आयी जिसमें मौजूदा दौर की एक बड़ी समस्या को पूरी कारीगरी से उभारकर पानी बचाने का आह्वान किया गया है। सदर बाजार के समीप, रामदेव बाबा मंदिर मार्ग पर गण गणेश उत्सव समिति ने गणपति प्रतिमा की स्थापना के ग्यारहवें वर्ष में प्रवेश के साथ जल संरक्षण पर शायद पहली बार अपने अंदाज़ की यह पहली झांकी निकालने का बीड़ा उठाया है। इस वर्ष यह विशाल व भव्य झांकी बिगड़ते पर्यावरण, घटते जल स्तर से पैदा हुई त्रासदी के विविध रूपों और कारणों की पड़ताल करती हुई बड़े ही प्रेरक और मर्मस्पशी ढंग से पानी बचाने का सन्देश देगी।
स्मरणीय है कि गण गणेश उत्सव समिति ने पिछले साल श्री कृष्ण लीला और उसके पहले कुम्भकरण पर आधारित झांकियों के प्रदर्शन से पौराणिक विषयों की परम्परा में ही अपनी भागीदारी निभाकर भरपूर सराहना प्राप्त की थी, लेकिन इस बार समिति ने देश की जरूरत और तरक्की के लिए पानी बचाने की आवाज़ बुलंद करने का निर्णय किया। झांकी की तैयारी विगत कुछ माह से बड़ी लगन से की जा रही है।
झांकी में तीन अलग-अलग वाहनों में पानी की समस्या से लेकर उसके निदान तक विभिन्न दृश्य उभारे जा रहे हैं जो एक दूसरे के कुछ ऎसी कलाकारी से जुड़े हैं कि वे अपनी कहानी आप कहते चलते हैं। गौर करें कि सबसे पहले धरती माता का विशाल ,किन्तु दरारों वाला मुख मंडल दिखाई देगा, क्योंकि सूखे के संकट की वजह से उसे असीम पीड़ा झेलनी पड़ रही है। इसलिए धरती माँ की आँखों से अश्रुधार निरन्तर बह रही है। झांकी दिखाएगी कि धरती माता दुखी है क्योंकि किसान आत्म हत्या करने विवश है। एक अन्य किसान अपनी आजीविका के सहारे दो बैलों की दारुण स्थिति के साथ खुद चिंता में डूबा हुआ, माथे पर हाथ धरे बैठा है। उसे इंद्र देव की कृपा का इंतज़ार है। ये सभी दृश्य पहले भाग में एकबारगी जी उठेंगे।
जल संरक्षण पर आधारित उक्त झांकी की दूसरी कड़ी में एक बड़ा सा मकान दिखेगा, जिसमें जिम्मेदारी का परिचय देते हुए वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाया गया है, जिससे वर्षा जल को व्यर्थ बहने से रोक जा सके और उसे उपयोगी और उत्पादक भी बनाया जा सके। झांकी का रोमांचक पहलू होगा कृत्रिम वर्षा का दृश्य। इसके लिए बाकायदा कृत्रिम बादल दर्शाने की पहल की जा रही है। इस पानी को बचाने की जुगत जारी है। भवन के बगल में बोरिंग दिखाया गया है, जिस पर एक महिला बाल्टी में पानी भरकर खुश नज़र आ रही है। बचत के पानी के संग्रहण के लिए एक तालाब जैसा बड़ा सा गड्ढा भी दिखेगा। कोशिश यह है कि मानव को धरती माता सब कुछ देती है. इसलिए उस का कर्ज भी जल को उसके गर्भ में यानी पृथ्वी के भीतर भेजकर चुकाया जाये। इसी तरह पानी की कमी दूर हो जाने और उससे होने वाले फायदे की खुशी में झूमते हुए कुछ लोग भी झांकी की शोभा बढ़ाएंगे। यह सीन कहेगा कि खुशहाली लाना है, पानी बचाना है।
अब बारी आती है अंतिम दृश्य की। इसमें एक विशाल पृथ्वी ( ग्लोब ) को गोल घूमते हुए देखा जा सकेगा। जिस पर पानी बचाने की मुहिम के बाद और पहले के जल स्तर के अंतर को दर्शाया गया है। ऊंचे जल स्तर वाले भाग में पौध रोपण का दृश्य होगा। वही, सूखे हिस्से में कटते हुए पेड़ पानी की बर्बादी के नतीजों के गवाह बनेंगे। यहीं गणपति जी की प्रतिमा होगी जिसे पेड़ काटने से रोकते हुए निहारा जा सकेगा। सन्देश यह है कि पर्यावरण बचाना है, पेड़ों को काटने से रोकना है तो पानी बचाना ही होगा। इस तीसरे और अहम हिस्से में झांकी कई पहलुओं को सामने रखेगी। साथ ही उद्घोष करेगी कि – जल है तो कल है। चर्चा के दौरान यह पता चला कि दरअसल तीन दृश्यों में आकर्षक सज्जा के साथ इतनी बड़ी थीम को आकार और अंजाम देने में कोई कसर बाक़ी न रहे , इसका पूरा ख्याल रखा गया है, फिर भी लीक से हटकर विसर्जन झांकी प्रतुत करने की ख़ुशी के साथ संतोष का भाव सदस्यों में साफ झलक रहा था।